"निशा, बस बहुत हुआ। अब इसे उतारने दो।" भाई विजय ने मिन्नत की, उसका चेहरा परेशानी और झुंझलाहट से भरा हुआ था। "कितनी देर से ये सब ड्रामा हो रहा है। मुझे समझ नहीं आ रहा तुम क्या करने की कोशिश कर रही हो।"
"अरे भैया, अभी तो मेहंदी भी लगवानी है।" निशा ने शरारत से कहा, उसकी आँखों में चमक और शरारत भरी हुई थी, मानो किसी मासूम शिकार को फंसाने की योजना बना रही हो।
और फिर क्या था! निशा ने पार्लर वाली से अपने भाई विजय के हाथों पर मेहंदी भी लगवा दी। विजय, जो पहले से ही लाल रंग के लहंगे और चमकते गहनों में दुल्हन की तरह सजा हुआ था, अब पूरी तरह से तैयार था, मानो किसी अजीबोगरीब सपने में फंस गया हो। निशा ने अपने मोबाइल से कुछ तस्वीरें खींची, हर क्लिक के साथ उसकी हंसी तेज होती जा रही थी जैसे कैमरे की हर फ्लैश विजय की बेबसी पर एक तमाचा हो। "भैया, आप तो सच में बहुत सुंदर लग रहे हो!" निशा ने ठहाका लगाते हुए कहा, "अब मैं ये फोटो फ्रेम करवा कर अपने कमरे में लगाऊंगी। सोचो, हर सुबह उठते ही आपका ये रूप देखकर मेरा दिन कितना अच्छा जाएगा!"
विजय ने गुस्से से, दांत पीसते हुए कहा, "निशा, अगर तुमने ऐसा किया तो..." उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया था, मानो ज्वालामुखी फटने वाला हो, लेकिन निशा के लिए ये सब और भी मजेदार था। वो तो जैसे आग में घी डाल रही थी।
निशा ने भाई का ये गुस्से वाला रूप भी अपने फ़ोन में कैद कर लिया। वो जानती थी कि बाद में ये तस्वीरें उसे बहुत हँसाने वाली हैं, एक खजाना जो उसे बार-बार विजय को चिढ़ाने का मौका देगा। "अरे वाह, भैया! ये गुस्से वाला लुक भी आप पर बहुत जंच रहा है," निशा ने कहा, उसकी आवाज़ में हंसी के छींटे पड़ रहे थे, जैसे बारिश की बूंदें किसी गर्म तवे पर गिर रही हों।
"चलो भैया, अब थोड़ी फोटोशूट कर लेते हैं।" निशा उत्साह से बोली, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी उमंग थी, और इससे पहले कि विजय कुछ और कहे, निशा ने पार्लर में रखे कुछ प्रॉप्स भी उठा लिए - एक नकली वरमाला, लाल रंग का एक दुपट्टा, और एक नकली सेहरा, जैसे किसी नाटक की तैयारी हो रही हो।
विजय पहले तो थोड़ा झिझका, मानो किसी अनजान रास्ते पर चलने से पहले कदम पीछे खींच रहा हो, लेकिन फिर निशा के उत्साह और जिद को देखते हुए मान गया। निशा ने अलग-अलग पोज़ में उसकी तस्वीरें लीं - कभी हँसते हुए, कभी शरमाते हुए, कभी गुस्से से देखते हुए, मानो वो एक कठपुतली हो और निशा उसकी कठपुतली नाच रही हो। विजय को खुद पर हंसी आ रही थी, लेकिन वो ये दिखाने से बच रहा था, मानो हंसना अपनी हार मान लेना हो। निशा का उत्साह देखते हुए, वो खुद को इस माहौल में बहने दे रहा था, जैसे नदी का बहाव रोकना नामुमकिन हो।
फोटोशूट खत्म होने के बाद, निशा ने विजय को आइना दिखाया। "देखा भैया, आप कितने सुंदर लग रहे हैं।" उसकी आवाज़ में अब भी शरारत थी, मानो वो खुद को इस शरारत की रानी घोषित कर रही हो।
विजय ने खुद को एक बार फिर गौर से देखा। वो इस बात से इनकार नहीं कर सकते थे कि वो वाकई अच्छे लग रहे थे। लहंगा, गहने, मेकअप - सब कुछ उन पर जंच रहा था, मानो ये सब उनके लिए ही बना हो।
"मानना पड़ेगा निशा, तुमने कमाल कर दिया।" विजय ने हँसते हुए कहा, उसकी आवाज़ में अब गुस्सा नहीं बल्कि हंसी और हार थी, मानो उसने इस जंग में हथियार डाल दिए हों।
"तो क्या मैं ये तस्वीरें सबको दिखा सकती हूँ?" निशा ने शरारत से पूछा, उसकी आँखों में चमक और शरारत अब भी बरकरार थी, मानो वो इस जीत का जश्न मना रही हो।
"नहीं, बिलकुल नहीं!" विजय ने तुरंत जवाब दिया, उसकी आवाज़ में एक दबाव था, एक गुहार थी। "ये तस्वीरें सिर्फ़ हमारे बीच रहेंगी।"
"अब तो ये तस्वीरें मेरी अमानत हैं, भैया।" निशा ने शरारत से कहा, मानो उसने कोई कीमती खजाना हासिल कर लिया हो। "अब से जब भी मेरी कोई बात नहीं मानोगे, मैं ये तस्वीरें सबको दिखा दूंगी।"
विजय ने हार मानते हुए कहा, "ठीक है, निशा। तुम जीत गई।" उसकी आवाज़ में अब लाचारी थी, मानो वो किस्मत के आगे झुक गया हो।
"अरे, ये तस्वीरें मम्मी-पापा को तो नहीं दिखाओगी न?", विजय ने गुस्से से कहा, उसकी आवाज़ में अब भी हार का भाव साफ़ झलक रहा था, मानो वो आखिरी उम्मीद की किरण ढूंढ रहा हो।
"देखती हूँ," निशा ने आँख मारते हुए कहा, मानो वो कोई राजकुमारी हो जो अपनी प्रजा को वचन दे रही हो। "अगर तुम मेरे आगे अच्छे से पेश आओगे, मेरी हर बात मानोगे, तो शायद मैं ये तस्वीरें किसी को न दिखाऊं।"
विजय ने मन ही मन सोचा कि उसे अपनी इस शैतान बहन से बचकर रहना होगा। लेकिन उसे ये समझ नहीं आ रहा था कि निशा से पंगा लेना कितना महंगा पड़ सकता है। निशा के पास अब उसके खिलाफ़ एक ऐसा हथियार था जिसके दम पर वो उससे कुछ भी करवा सकती थी, एक ऐसा वीडियो जो उसकी इज्जत मिट्टी में मिला सकता था।
"अच्छा चलो अब ये सब उतरवाओ," विजय ने कहा, उसकी आवाज़ में घबराहट और बेबसी साफ़ झलक रही थी।
"अरे इतनी जल्दी क्या है, भैया? अभी तो हमने तुम्हें दुल्हन बनाया है, अब तो तुम्हें थोड़ा डांस भी करना पड़ेगा ना अपने होने वाले साजन के लिए।" निशा ने विजय को चिढ़ाते हुए कहा और ज़ोर से ठहाका लगाया। उसकी हंसी में विजय के लिए ज़हर घुला हुआ था, मानो वो कह रही हो कि देखो तुम्हारी मर्दानगी का क्या हाल बना दिया है मैंने।
"डांस? क्या बकवास कर रही हो तुम?" विजय ने गुस्से से कहा, पर मन ही मन डर भी रहा था कि कहीं निशा सच में उसे नचवाना न शुरू कर दे। उसके चेहरे पर दहशत साफ़ झलक रही थी।
"अरे बकवास कैसी भैया? दुल्हन तो डांस करती है ना? चलो अब ज़्यादा नखरे मत करो।" निशा ने फ़ोन निकाला और एक गाना बजा दिया। फ़ोन के स्पीकर से कनेक्ट किया और गाना बाजा दिया "साजन जी घर आए दुल्हन क्यों शर्माए" गाने पर निशा ज़ोर-ज़ोर से ठुमके लगाने लगी और विजय को भी नाचने के लिए उकसाने लगी। वो जानती थी कि विजय शर्म और डर के मारे कुछ नहीं कहेगा।
विजय की हालत देखने लायक थी। एक तरफ उसके अंदर का भाई उसे गुस्सा कर रहा था, दूसरी तरफ उसका डर उसे निशा की बात मानने पर मजबूर कर रहा था। वो फंस चुका था, निशा के जाल में, जहाँ से निकलना नामुमकिन सा लग रहा था।
"देखो, अगर तुमने ये वीडियो किसी को दिखाया तो..." विजय ने धमकी देने की कोशिश की, लेकिन निशा उसकी बात काटते हुए बोली, "तो क्या कर लोगे भैया? मुझे ब्लैकमेल करोगे? अरे भूल गए क्या, तुम्हारी इज़्ज़त अब मेरे हाथ में है।" निशा ने विजय की आँखों में देखते हुए कहा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सा दंग था।
निशा की बात सुनकर विजय हताश हो गया। उसे समझ आ गया था कि अब निशा के चंगुल से निकलना आसान नहीं होगा। उसे डर था कि कहीं निशा वाकई में ये वीडियो कहीं वायरल न कर दे।
"अच्छा ठीक है, मैं नाचता हूँ पर मुझे नाचना नहीं आता।"
"अरे, ये कोई बहाना नहीं चला भैया! जब दुल्हन बन ही गए हो तो थोड़ा बहुत तो सीखना ही पड़ेगा।" निशा ने मोबाइल में कोई वीडियो ढूंढते हुए कहा। "लो देखो, ये रहा एक आसान सा स्टेप।" और उसने विजय को एक वीडियो दिखाया जिसमें एक लड़की शादी के गाने पर डांस कर रही थी।
विजय मन ही मन अपनी किस्मत को कोस रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो अपनी इस शैतान बहन से कैसे निपटे।
"चलो भैया, अब देर मत करो।" निशा ने ज़िद करते हुए कहा।
विजय ने झिझकते हुए डांस स्टेप्स को फॉलो करने की कोशिश की। लाल रंग का लहंगा, भारी भरकम गहने और मेकअप - ये सब उसे और भी अजीब लग रहा था।
निशा ठहाके लगाते हुए विजय का वीडियो बना रही थी। विजय का हर अटपटा स्टेप, उसका परेशान चेहरा, ये सब कैद हो रहा था निशा के मोबाइल में।
"वाह भैया, क्या बात है! आप तो कमाल के डांसर हैं।" निशा ने व्यंग्य से कहा।
विजय ने गुस्से से निशा को देखा, लेकिन निशा को चिढ़ाने में मज़ा आ रहा था।
"अरे भैया, गुस्सा मत करो। बस थोड़ा और डांस कर लो, फिर ये टॉर्चर ख़त्म।" निशा ने हँसते हुए कहा।
विजय को समझ आ गया था कि आज उसे निशा के आगे हार माननी ही पड़ेगी। "पर तुम वादा करो कि ये वीडियो किसी को नहीं दिखाओगी।" विजय ने हार मानते हुए कहा। उसके पास और कोई चारा नहीं था।उसके बाद निशा ने तीन गाने और लगाए पहला गाना था" मेरे हाथों मे नौ नौ चुडिय़ां हैं" जो कि शुद्ध लडकियों वाला गाना था। निशा उससे जबरदस्ती ठुमके लगाने को कह रही थी। विजय को डर था कि अगले दो गाने भी ऐसे ही ना हों। उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
दूसरा गाना बजते ही विजय की आँखें खुली की खुली रह गयीं। गाने के बोल थे "बोले चूडियां बोले कंगना " विजय को समझ नहीं आ रहा था कि निशा इतनी क्रूर कैसे हो सकती है। वो उसे जानबूझकर ज़लील कर रही थी। उसने आधे मन से, झिझकते हुए दो-तीन स्टेप्स लिए। निशा ज़ोर-ज़ोर से हंसते हुए उसका वीडियो बना रही थी। उसका मन कर रहा था कि वो फ़ोन छीनकर तोड़ दे, लेकिन बेबसी उसके कदम रोक रही थी।
तीसरा गाना लगा "ये गलियां ये चौबारा यहाँ आना ना दोबारा " विजय अब पूरी तरह से टूट चुका था। उसकी आँखों में आंसू आ गए थे। उसने निशा से गुहार लगायी, "बस कर दे निशा, बहुत हो गया। प्लीज़ ये वीडियो डिलीट कर दे।" उसकी आवाज़ में गिड़गिड़ाहट थी, एक भाई की लाचारी थी।
निशा ने उस पर तरस नहीं खाया और ठठ्ठा करते हुए कहा, "अरे भैया, अभी तो पार्टी शुरू हुई है। अभी तो और भी बहुत कुछ बाकी है।" उसकी आवाज़ में शैतानी सी झलक रही थी।
ये वीडियो तो मैं सबको दिखाऊंगी। सोचो कितना मज़ा आएगा जब सब तुम्हें इस रूप में देखेंगे।"
"पर ये वीडियो..." विजय ने घबराहट भरी आवाज़ में कहा।
"चिंता मत करो भैया, ये वीडियो मेरे पास ही सुरक्षित रहेगा। जब तक..." निशा ने विजय को घूरते हुए कहा, उसकी आँखों में शरारत की चमक थी।
"जब तक क्या?" विजय ने डरते हुए पूछा।
"जब तक तुम मेरी हर बात मानोगे।" निशा ने मुस्कुराते हुए कहा।
विजय समझ गया कि वो अब निशा के जाल में फँस चुका है। अब उसे निशा की हर बात माननी पड़ेगी, नहीं तो उसकी इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी।
"चलो भैया, अब घर चलते हैं।" निशा ने विजय को बाहर निकालते हुए कहा।
"लेकिन ये लहंगा?" विजय ने घबराते हुए पूछा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी कंपकंपाहट थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि निशा के दिमाग में क्या चल रहा है। "अरे इस लहंगे को मैं अपने पास रखूंगी, और आप ऐसे ही लहंगे मे ही घर चलेंगे," निशा ने शरारत से कहा, उसकी आँखों में एक चमक थी जो विजय को और भी डरा रही थी। "याद है न, तुम्हारी ये फोटो और ये वीडियो, ये सब मेरी अमानत हैं।" निशा ने अपने फ़ोन में मौजूद कुछ तस्वीरें और वीडियो दिखाते हुए कहा।
निशा की बात सुनकर विजय के होश उड़ गए। लहंगे में घर जाना? ये तो उसके लिए और भी बड़ी मुसीबत थी। उसके दिमाग में तरह-तरह के ख्याल आने लगे। "निशा, प्लीज़ यार, ये मत करो।" विजय ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, उसकी आवाज़ में अब दया की भीख थी। "लोग क्या कहेंगे?" उसने आगे कहा, उसका चेहरा अब शर्म और घबराहट से पीला पड़ गया था।
"अरे वही तो मज़ा है भैया! सबको पता चलेगा कि मेरे भाई में कितनी हिम्मत है, जो लहंगा पहनकर घूम रहा है।" निशा ने कहा और ठहाका लगाया। उसे विजय की दुविधा पर मज़ा आ रहा था। वो जानती थी कि विजय ऐसा कभी नहीं करेगा, लेकिन उसे चिढ़ाने का उसे एक अलग ही मज़ा आ रहा था।
विजय समझ गया कि निशा से बहस करना बेकार है। उसे मजबूरन निशा की बात माननी पड़ी। वो लहंगा पहने हुए, शर्म से पानी-पानी होता हुआ, निशा के पीछे-पीछे चल पड़ा।
घर पहुँचते ही विजय सीधा अपने कमरे में घुस गया। निशा ने उसका पीछा करते हुए कहा, "अरे भैया, गुस्सा मत हो। बस थोड़ा सा मज़ाक था।"
"मज़ाक?" विजय ने गुस्से से कहा, "तुम्हें ये सब मज़ाक लगता है? तुमने मेरा क्या हाल बना दिया है, ये तुम नहीं समझोगी।"
"अरे भैया, इतना गुस्सा क्यों करते हो? देखो, तुम्हारी वजह से आज कितना मज़ा आया।" निशा ने विजय को चिढ़ाते हुए कहा। "और हाँ, ये फोटो और वीडियो तो मेरी ज़िन्दगी भर की याद बन गए हैं।"
विजय ने हार मानते हुए कहा, "निशा, तुम सचमुच बहुत शैतान हो।"
" अगर ये बात है तो उतार लो अपने आप मेक अप, ज्वेलरी और लहंगा " निशा ने कहा। इतना कह कर वो चली गई अपने कमरे में।
विजय के माथे पर बल पड़ गए थे। लहंगा, जो देखने में जितना सुंदर लग रहा था, पहनने में उतना ही कष्टकर साबित हो रहा था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे किसी ने उसे कीमती रत्नों से सजी किसी जंजीर में जकड़ दिया हो। लहंगे का वजन ही इतना ज़्यादा था कि उसे अपनी कमर झुकी हुई सी लग रही थी। उसने सोचा था कि लहंगा उतारना आसान होगा, पर ऐसा बिलकुल नहीं था। लहंगे की परतें एक के ऊपर एक इस तरह से सजाई गई थीं कि उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि शुरुआत कहाँ से की जाए।
गांठें इतनी कसी हुई थीं मानो किसी गाँठ बाँधने वाले ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी हो। लहंगे की गांठें ढूंढने में ही उसके पसीने छूट गए। ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी जंग में उतरा हो और सामने दुश्मन की बजाय ये लहंगा हो। लगभग आधे घंटे की मशक्कत के बाद आखिरकार वो उस भारी-भरकम लहंगे से बाहर निकलने में कामयाब हुआ। उसने राहत की साँस ली और लहंगे को एक तरफ रख दिया, लेकिन उसकी मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई थीं। अब बारी थी चोली की, जो अपने आप में एक चुनौती से कम नहीं थी। चोली की डोरियाँ पीछे बंधी थी और हुक इतना छोटा था कि उसे नज़र ही नहीं आ रहा था। उसने आईने के सामने घूम-घूम कर डोरियों को पकड़ने की कोशिश की, पर नाकाम रही। थका -हारा वह बिस्तर पर जा गिरा । उसने एक बार फिर हिम्मत जुटाई और उठ खड़ा हुआ
और एक बार फिर आईने के सामने जाकर खड़ा हो गया। इस बार उसने फैसला किया कि वो किसी तरह डोरियों तक पहुँचकर ही रहेगा। उसने अपने एक हाथ को पीछे ले जाकर डोरियों को ढूंढने की कोशिश की। डोरियाँ उसके हाथों को छू तो रही थीं, पर वो उन्हें पकड़ नहीं पा रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे वो कोई अदृश्य सांप हो जो उसके हाथों से फिसलता जा रहा हो। उसने अपनी पूरी ताकत लगा दी, पर डोरियाँ उसके हाथ से दूर होती जा रही थीं। अचानक उसके दिमाग में एक तरकीब आई। उसने सावधानी से डोरियों को पकड़ा और धीरे-धीरे उन्हें खींचने लगा। उसके होंठों पर एक छोटी सी मुस्कान फैल गई। क्या वो आखिरकार अपने आप को आज़ाद कर पाएगा?उसने एक गहरी साँस ली और एक आखिरी बार अपनी सारी शक्ति एक ही बार में लगा दी। चोली की डोरियाँ उसके हाथों में आ गईं। उसने राहत की साँस ली और धीरे-धीरे डोरियों को खोला। चोली को उतारते वक़्त उसे एहसास हुआ कि वो कितना थक गया था।
आखिरकार, वो उस भारी-भरकम लिबास से आज़ाद हो चुका था। उसे ऐसा लगा जैसे उसने कोई बहुत बड़ी बाधा पार कर ली हो। लहंगा चोली उतारना तो मानो एक जंग जीतने जैसा था, लेकिन अभी चुनौतियां बाकी थी क्योंकि अब शुरू हुई थी गहनों को उतारने की मशक्कत। उसने बड़ी मुश्किल से अपने कानों से भारी झुमके निकाले। हर झुमके का वजन उसके कान की लोब को नीचे खींच रहा था, जिससे उसके कान दुखने लगे थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि औरतें इतना दर्द सहकर भी इन्हें कैसे पहनती हैं। फिर उसने अपनी नाक से नथ उतारी, जिससे उसकी नाक थोड़ी लाल हो गयी थी। नथ इतनी टाइट थी कि उसे अपनी नाक में दर्द होने लगा था। माथे से टीका हटाना थोड़ा आसान था, क्योंकि वो सिर्फ़ चिपका हुआ था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि औरतें इतना भारी-भरकम सामान क्यों पहनती हैं। ये तो उसके लिए एक दिन का काम ही किसी सज़ा से कम नहीं था।
लेकिन अभी तो और भी गहने बाकी थे - चूड़ियाँ, हार, पायल और कमरबंद। हार तो इतना भारी था कि उसे अपनी गर्दन झुका कर रखनी पड़ रही थी। उसे लगा जैसे उसकी गर्दन ही जकड़ सी गयी हो। चूड़ियाँ तो जैसे उसके हाथों में फंस ही गई थीं। पतली सी चूड़ियों को निकालना उसके लिए किसी पहेली से कम नहीं था। एक-एक चूड़ी निकालने में उसे कितनी मशक्कत करनी पड़ रही थी, ये वो ही जानता था। करीब बीस मिनट तक जूझने के बाद, जिसमें उसने कई बार चूड़ियों को तोड़ने की सोची, आखिरकार वो उन्हें निकालने में कामयाब हुआ। अब बारी थी कमरबंद की, जो इतना टाइट था कि उसे साँस लेने में भी तकलीफ हो रही थी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसका शरीर ही उस कमरबंद में जकड़ा जा रहा हो। कमरबंद को खोलने के लिए उसे काफी ज़ोर लगाना पड़ा। उसने जैसे-तैसे करके कमरबंद भी खोल दिया।
सारे गहने उतारने के बाद उसने राहत की साँस ली। उसे लग रहा था जैसे उसने कोई बहुत बड़ा युद्ध जीत लिया हो। सारा शरीर थका हुआ और पसीने से लथपथ था। उसे अब जाकर समझ आया कि औरतें कितनी मेहनत करती हैं, खुद को सजाने संवारने में। अब बारी थी मेकअप उतारने की। उसने बाथरूम का रुख किया और आइने में खुद को देखा। उसका चेहरा एकदम ही अलग लग रहा था। लिपस्टिक उसके होंठों पर फैल चुकी थी और आईलाइनर उसकी आँखों के नीचे तक आ गया था, जिससे वो एक अजीब सी शक्ल बना रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो ये मेकअप उतारे कैसे। उसने सोचा कि पानी से धो लेता हूँ, शायद साफ़ हो जाए।
लेकिन पानी से धोने पर तो और भी बवाल हो गया। लिपस्टिक उसके चेहरे पर और भी फ़ैल गयी और आईलाइनर उसकी आँखों में जाने लगा, जिससे उसकी आँखें जलने लगीं। उसने जल्दी से पानी से अपनी आँखें धोईं। आइने में देखकर उसे खुद पर हंसी आ गयी। उसका चेहरा किसी जोकर जैसा लग रहा था।उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। उसने सोचा कि क्यों न निशा से ही पूछ लिया जाए।
वो निशा के कमरे में गया और बोला, "निशा,प्लीज ये मेकअप कैसे उतारूँ? मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा।"
निशा कमरे से बाहर आयी उसकी हालत देखकर हंस पड़ी। उसने कहा, "अरे भैया, तुम तो सचमुच में बड़े भोले हो। चलो, मैं तुम्हारी मदद करती हूँ।लेकिन ये तो बताओ की लहंगा चोली उतारा कैसे। "
"अरे यार, बहुत मुश्किल से।" विजय ने थके हुए स्वर में कहा। "ये सब इतना जटिल क्यों होता है? और तुम लोग इसे क्यों पहनती हो?"
"क्योंकि हम औरतें हैं भैया! और औरतें ही असली शक्ति होती हैं।" निशा ने मुस्कुराते हुए कहा। "और हाँ, ये सब इतना भी मुश्किल नहीं है जितना तुम सोच रहे हो। आदत की बात है।"उसने मेकअप रिमूवर और कॉटन पैड निकालते हुए कहा। "लो, इसे लगाओ और धीरे-धीरे साफ करो।" और उसने उसके बालों में लगे हेयरपिन निकाले।विजय ने राहत की साँस ली। निशा की मदद से, वो आखिरकार अपने चेहरे से सारा मेकअप उतारने में कामयाब हो गया। उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसने किसी भारी बोझ से छुटकारा पा लिया हो।
"कोई बात नहीं भैया," निशा ने हँसते हुए कहा, "लेकिन याद रखना, आज जो कुछ भी हुआ, वो हमारे बीच ही रहेगा।"
निशा ने मेकअप रिमूवर से विजय का मेकअप साफ़ किया और विजय को ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसे किसी भारी बोझ से मुक्त कर दिया हो। उसे पता था कि निशा के पास उसकी कमज़ोरी है और वो इसका फायदा उठाएगी।
विजय ने गुस्से से निशा को देखा और कहा, "तुम्हें पता है, ये सब तुम्हारी वजह से हुआ है।"
"अरे भैया, गुस्सा मत हो। देखो, तुम्हारी वजह से आज मेरा दिन कितना अच्छा गया।" निशा ने विजय को चिढ़ाते हुए कहा। "और हाँ, ये फोटो और वीडियो तो मैं हमेशा संभाल कर रखूंगी।"
विजय ने हार मानते हुए कहा, "निशा, तुम सचमुच बहुत शैतान हो।"
"थैंक यू, भैया।" निशा ने हँसते हुए कहा।
निशा ने विजय को घूरते हुए कहा, "भाई अभी तो असली खेल शुरू हुआ है! शैतानियों से पिंड छुड़ाना तो दूर की बात है, अभी तो अगले छह दिनों तक तुम्हें इनसे और भी दो-दो हाथ करने पड़ेंगे।"
निशा ने एक शरारती मुस्कान के साथ जवाब दिया, "अरे भोले भाई, मम्मी पापा तो छः दिनों के लिए हैं नहीं,और उन्होंने तुम्हारी देखभाल की ज़िम्मेदारी मुझ पर छोड़ दी है और हाँ, इन छह दिनों तक तुम्हें लड़की बनकर ही रहना होगा।"
"क्या? नहीं तुम मेरे साथ मज़ाक कर रही हो ना?" विजय के होश उड़ गए।
निशा ने अपनी हँसी रोकते हुए कहा, "बिलकुल नहीं भैया!
"छह दिन? तुम पागल हो गई हो क्या?" विजय ने गुस्से से कहा, "ये नामुमकिन है!"
"अरे भैया, नामुमकिन कुछ भी नहीं है।" निशा ने आँख मारते हुए कहा, "और वैसे भी, ये मेरा बदला है उन सब शरारतों का जो तुमने मेरे साथ की थीं। अब भुगतो मेरा क़हर! सोचो इसे अपने बुरे कर्मों का फल!और तुम्हें मैं ल़डकियों के हर रूप मे सजाना चाहती हूँ जैसे बेटी,बहन, बहू और औरत। "
"तुम... तुम सचमुच बहुत बुरी हो निशा!"
विजय ने निराशा से अपने हाथ ऊपर उठा दिए। उसे समझ आ गया था कि निशा से बहस करना समय बरबाद करने जैसा है। उसे अगले छह दिन इस अत्याचार को सहना ही पड़ेगा।
विजय समझ गया कि बहस करना बेकार है। निशा ने अपना मन बना लिया था और वो उसे किसी भी हालत में लड़की बनाकर ही दम लेगी।
"ठीक है, मैं तैयार हूँ।" विजय ने हार मानते हुए कहा।
निशा की आँखों में शरारती चमक और तेज हो गई। उसने ताली बजाई और बोली, "वाह भैया, ऐसे तो तुम मेरी प्यारी बहना लगोगे! चलो अब कल से तुम्हारा ट्रांसफॉर्मेशन शुरू करते हैं!"
"ठीक है, मैं मान गया।" विजय ने हार मानते हुए कहा, "लेकिन ये मत सोचना कि मैं तुम्हारी हर बात मानूँगा।"
"अरे भैया, कोशिश तो करूँगी न कि तुम मेरी हर बात मानो।" निशा ने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा।
विजय जानता था कि निशा से बहस करना बेकार है। वो बहुत ज़िद्दी है और जब तक अपनी बात मनवा न ले, तब तक चैन से नहीं बैठेगी।
"अच्छा ठीक है, अब मुझे जाने दो।" विजय ने कहा।
उस रात विजय को ठीक से नींद नहीं आई। वो पूरी रात निशा की उस हरकत के बारे में सोचता रहा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि निशा उसके साथ ऐसा क्यों कर रही थी।
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