ये कहानी निशा और विजय की है, जहाँ निशा अठारह बरस की नटखट और चुलबुली लड़की थी और विजय उससे दो साल बड़ा, उसका शरारती भाई। विजय को निशा को चिढ़ाने और परेशान करने में बड़ा मज़ा आता था। कभी उसके बाल खींचकर, कभी उसे 'छोटी बच्ची' कहकर, विजय हमेशा कोई न कोई शरारत करता रहता था। अपने बड़े भाई होने का रौब दिखाना, उसे बहुत पसंद था। बेचारी निशा, भाई के इस रवैये से परेशान होकर अक्सर सोचती, "काश! मैं विजय को सबक सिखा पाती।"
ऐसा नहीं था कि विजय हमेशा उसे परेशान ही करता था। कभी-कभी वह निशा से बहुत प्यार भी करता था, उसकी हर छोटी-बड़ी बात का ख्याल रखता था। लेकिन निशा को चिढ़ाना, मानो उसका सबसे पसंदीदा काम था। एक दिन निशा ने एक फिल्म में एक लड़के को लहंगा चोली पहन कर नाचते देखा। उसे तुरंत अपने भाई का ख्याल आया। उसके मन में शरारत का कीड़ा कुलबुलाने लगा और उसने सोचा, "काश! मैं विजय को लहंगा पहनाकर अपनी उंगलियों पर नचा पाती। उसे तब पता चलेगा कि लड़की होना कितना मुश्किल है।"
बस, यहीं से निशा के मन में एक शरारत भरा प्लान सूझने लगा। उसने विजय को सबक सिखाने की ठान ली। उसने एक सुन्दर सा लहंगा, गहने, मेकअप का सामान इकट्ठा करना शुरू कर दिया। साथ ही, वह विजय को मनाने के लिए हर तरह की तरकीब सोच रही थी। वह हर तरीका आजमाना चाहती थी जिससे उसकी यह इच्छा पूरी हो जाए।
एक महीने बाद, किस्मत ने भी निशा का साथ दिया। माँ और पापा ने बताया कि उन्हें एक जरूरी काम से एक सप्ताह के लिए शहर से बाहर जाना पड़ेगा। निशा को अपने प्लान को अंजाम देने का इससे बेहतर मौका नहीं मिल सकता था। उसने सोचा कि जब माँ-पापा घर पर नहीं होंगे, तब वह भैया को जबरदस्ती लहंगा पहनाकर उनकी तस्वीरें खींचेगी और बाद में उन्हें खूब चिढ़ाएगी। उसने सोचा कि अगर विजय ने एक बार लहंगा पहन लिया, तो वह उसकी तस्वीरें खींच लेगी और उसे हमेशा के लिए ब्लैकमेल करेगी। उसे कल्पना होने लगी कि कैसे वह उन तस्वीरों को दिखाकर विजय को अपना गुलाम बना लेगी और उसे घर के सारे काम करने पड़ेंगे। विजय को झाड़ू पोछा करते, खाना बनाते देखने की कल्पना मात्र से ही निशा के चेहरे पर शरारती मुस्कान फैल जाती।
लेकिन निशा को पता था कि विजय को लहंगा पहनने के लिए मनाना आसान नहीं होगा। उसे कोई ऐसा तरीका ढूंढना था जिससे विजय को शक भी न हो और वो आसानी से उसके जाल में फंस जाएँ। उसने पहले अपने भाई को मेकअप के लिए मनाने की योजना बनाई। उसे पता था कि यह काम आसान नहीं होगा, क्योंकि विजय को मेकअप से सख्त नफ़रत थी, इसलिए उसने सोचा कि पहले उसे किसी बहाने से पार्लर ले जाएगी।
निशा ने सोचा, "भैया को अगर पता चला कि मैं उन्हें पार्लर क्यों ले जा रही हूँ, तो वो कभी नहीं मानेंगे।" उसे कुछ ऐसा बहाना ढूंढना था जो एकदम सच्चा लगे। ऐसा बहाना जो विजय को मना कर ही न सके।
अचानक उसके दिमाग में एक तरकीब आई। उसने अपने भाई को फ़ोन किया और एक बनावटी उदासी से बोली, "भैया, मुझे बहुत बुरा लग रहा है। मेरा पार्लर जाने का मन था, मैंने अपॉइंटमेंट भी ले ली थी, लेकिन मेरी सहेली ने आखिरी समय पर प्लान कैंसिल कर दिया। अब अकेले जाने का बिलकुल मन नहीं कर रहा है। सब तैयार होकर बैठी हूँ, जाने का मन ही नहीं हो रहा।" निशा ने नाटक करते हुए एक लंबी साँस ली, मानो सचमुच बहुत निराश हो।
"अरे, ऐसे कैसे घर पर बैठी रहोगी? चलो, मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ। तैयार हो जाओ, मैं थोड़ी देर में आता हूँ तुम्हें लेने।" भैया ने फौरन कहा। निशा को उम्मीद नहीं थी कि भैया इतनी आसानी से मान जाएंगे।
निशा मन ही मन मुस्कुराई। उसकी योजना सफल हो गई थी। भैया को मनाने का इससे बेहतर तरीका और क्या हो सकता था? वह जल्दी से तैयार हो गई और कुछ ही देर में भैया उसके साथ पार्लर पहुँच गए।
पार्लर पहुँचकर निशा ने बड़े प्यार से भैया का हाथ पकड़ते हुए कहा, "भैया, आप प्लीज़ बोर मत होना। मैं जल्दी से तैयार हो जाती हूँ। आप थोड़ी देर आराम कर लीजिये।" भैया मुस्कुराते हुए सोफ़े पर बैठ गए। उनके चेहरे पर थकान साफ़ दिख रही थी। निशा को भैया की थकान देखी नहीं गयी और उनके मन में शरारत सूझी। उसने पार्लर वाली से कहा, "दीदी, एक छोटा सा काम है। क्या आप मेरे भाई को थोड़ा सा फेशियल वगैरह दे सकती हैं? वो थोड़े थके हुए लग रहे हैं।"
भैया ने पहले तो मना किया, "अरे नहीं, मेरा क्या फेशियल? तुम अपना काम करो। मुझे इन सब चीजों में कोई दिलचस्पी नहीं है।" लेकिन निशा और पार्लर वाली के ज़िद करने पर वो मान गए। निशा मन ही मन बहुत खुश हो रही थी। उसने पार्लर वाली को इशारे से लहंगे वाला बॉक्स दिखाते हुए कहा, "दीदी, बस थोड़ा सा दुल्हन वाला मेकअप कर दीजियेगा।" और फिर धीरे से फुसफुसाते हुए बोली, "भैया को कुछ पता ना चले। सरप्राइज है उनके लिए।"
पार्लर वाली समझ गई और मुस्कुरा दी। भैया अनजान थे कि उनके साथ क्या होने वाला है। वो आँखें बंद किए आराम से चेयर पर बैठे थे। पार्लर वाली ने पहले तो उनके चेहरे पर क्रीम लगाई, फिर धीरे-धीरे मेकअप का सामान निकालना शुरू कर दिया।
निशा चुपके से भैया के पास आई और उनके कान में धीरे से बोली, "भैया, बस थोड़ी देर और। सरप्राइज ख़राब मत करना। और हाँ, आँखें मत खोलना।" निशा ने शरारत से कहा। भैया को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हो क्या रहा है, लेकिन उन्होंने फिर भी आँखें बंद रखीं। शायद उन्हें लगा होगा कि निशा उनकी थकान मिटाने के लिए कोई खास तरह का फेशियल करवा रही है।
धीरे-धीरे पार्लर वाली ने भैया के चेहरे पर मेकअप करना शुरू कर दिया। पहले तो उन्होंने हल्का सा फाउंडेशन लगाया, फिर आईलाइनर, मस्कारा और लिपस्टिक। निशा यह सब देखकर अपनी हंसी रोकने की कोशिश कर रही थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसका भैया इतनी आसानी से मान गए। वो सोच रही थी कि भैया को जब पता चलेगा कि उनके चेहरे पर क्या गुल खिलाया गया है, तो उनका क्या रिएक्शन होगा।
जब मेकअप पूरा हो गया, तो पार्लर वाली ने निशा को इशारे से बुलाया और कहा, "लो जी, तैयार हैं आपके भैया।" निशा ने देखा और अपनी हंसी नहीं रोक पाई। भैया एकदम अलग ही रूप में नज़र आ रहे थे। उनके चेहरे पर लगा हुआ मेकअप किसी दुल्हन से कम नहीं लग रहा था।
"ये मैं हूँ?" उन्होंने हैरानी से पूछा, आइने में अपना चेहरा देखते हुए। आइने में अपनी छवि देखकर वो खुद भी चौंक गए। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि हँसे या गुस्सा करें। उनका चेहरा एकदम बदल गया था, जैसे किसी और ने उनकी जगह ले ली हो। बाल बिखरे हुए थे, आँखें लाल और चेहरे पर एक अजीब सा भाव था।
"जी हाँ, भैया। आप ही हैं।" निशा ने ठहाका लगाते हुए कहा। उसे भाई का ये नया रूप देखकर बहुत हँसी आ रही थी। उसने भाई का एक फोटो चुपके से ले लिया ताकि बाद में ये यादगार पल हमेशा के लिए कैद रहे।
"ये तुमने क्या किया, निशा?" भैया ने गुस्से से कहा, उनकी आवाज़ में झुंझलाहट साफ़ झलक रही थी। "ये मेकअप, ये लिपस्टिक, ये सब क्या है?" उन्होंने निशा की तरफ इशारा करते हुए कहा, जो आईने के सामने खड़ी अपने चेहरे पर एक के बाद एक ब्रश चला रही थी।
निशा अपनी हंसी रोक नहीं पाई। "अरे भैया, गुस्सा क्यों होते हो? बस थोड़ा सा मज़ाक कर रही हूँ।" उसने कहा, आखिरकार आईने से मुँह हटाकर भैया की तरफ देखते हुए। "अब चलो, गुस्सा मत करो। असली काम बाकी है।"
"असली काम?" भैया ने उलझन में पूछा, उनकी भौंहें और भी सिकुड़ गईं। "अब और क्या बाकी है? मुझे तो लगा बस तुम्हारी शरारतें ही काफ़ी हैं आज के लिए।"
निशा मुस्कुराई, उसके गाल डिंपल बन गए। उसने पास रखे एक बड़े से बॉक्स को उठाया और भैया की तरफ बढ़ाते हुए बोली, "इसे पहनना है।"
भैया ने बॉक्स को देखा, उस पर लगे गुलाबी रिबन और चमकदार कागज़ मे पैक एक लाल और गोल्डन कलर का लहंगा था जो कि बहुत सुन्दर लग रहा था। फिर उसने निशा को देखा, उसकी आँखों में चमक और शरारत देखकर भैया को समझ आ गया कि मामला क्या है। "ये क्या बकवास है, निशा? मैं ये नहीं पहनने वाला।" उसने सपाट आवाज़ में कहा, हालाँकि उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई थी।
"अरे भैया, प्लीज ना।" निशा ने मिन्नत की, उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं। "बस एक बार के लिए। तुम्हें बहुत अच्छा लगेगा। प्लीज, भैया, मेरे लिए?"
"नहीं, मतलब नहीं।" भैया ने साफ़ मना कर दिया, हालाँकि अब उनकी आवाज़ में पहले जैसी सख्ती नहीं थी। "मैं तुम्हारी इस बचकानी हरकत में शामिल नहीं होने वाला।"
निशा को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। भैया को किसी भी कीमत पर राजी करना था। उसने भैया को मनाने की बहुत कोशिश की, तरह-तरह के वादे किए, इमोशनल ब्लैकमेल करने की कोशिश की, लेकिन भैया टस से मस नहीं हुए। आखिरकार, निशा को अपना आखिरी हथियार चलाना ही पड़ा। उसने अपना फ़ोन निकाला और भैया को वो फोटो दिखाई जो उसने कुछ देर पहले ली थी, जिसमें भैया की मेक उप वाली तस्वीर थी ।
"अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी, तो मैं ये फोटो सबको दिखा दूंगी, मम्मी-पापा को, दादी को, यहाँ तक कि तुम्हारी नई गर्लफ्रेंड को भी।" निशा ने धमकी दी, उसकी आँखों में शरारत की चमक लौट आई थी। वो जानती थी कि ये फोटो उसके भैया के लिए कितनी शर्मनाक हो सकती है। भैया समझ गए कि अब उनके पास कोई चारा नहीं है। निशा को पता था कि वो इस फोटो को लेकर कितने संजीदा हैं, और वो इसका फ़ायदा उठाने में माहिर थी। वो अक्सर अपने भैया को इस तरह की छोटी-छोटी बातों पर ब्लैकमेल करके अपना काम निकलवा ही लेती थी।
भैया ने एक गहरी साँस ली, हार मानते हुए। "ठीक है, ठीक है। मैं ये लहंगा पहनूँगा।" उन्होंने कहा, उनकी आवाज़ में हार और थोड़ी सी झुंझलाहट थी। "लेकिन ये फोटो किसी को मत दिखाना, वादा करो।"
निशा ख़ुशी से उछल पड़ी। "वादा करती हूँ, भैया! चलो अब जल्दी से तैयार हो जाओ!"
अब बारी थी भाई को वो भारी लहंगा पहनाने की। निशा ने एक पल के लिए सोचा और फिर एक शरारती मुस्कान के साथ, उसने अपने भाई को एक लाल रंग की ब्रा और पैन्टी दी और बोली, "इसे पहन कर आओ।" भाई पहले तो हिचकिचा रहे थे, उनके चेहरे पर झिझक साफ़ दिख रही थी। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि निशा के इस अजीबोगरीब डिमांड पर क्या रिएक्शन दें। लेकिन निशा अपनी ज़िद पर अड़ी रही, उसकी आँखों में एक शरारती चमक थी और वो भाई को इस रूप में देखने के लिए बेताब थी। आखिरकार, निशा की ज़िद के आगे उनकी एक न चली।
निशा ने उनके लिए एक लाल रंग की ब्रा और पैन्टी चुनी थी, और उसे पहनने के लिए कहा। भाई ने पहले तो मना किया, उन्होंने कहा "ये क्या मजाक है निशा? मैं ये सब नहीं पहन सकता।" लेकिन निशा के बार-बार कहने पर, "प्लीज भैया, मेरे लिए, बस एक बार," वो मान गए। शायद वो निशा से ब्लैकमेल होने से डर रहे थे और उसके लिए कुछ भी करने को तैयार थे। उन्होंने वो लाल रंग की ब्रा और पैन्टी पहनी जो निशा ने उनके लिए चुनी थी।
मगर अंदर ही अंदर उन्हें अजीब सा एहसास हो रहा था। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या महसूस कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं। एक अजीब सी घबराहट और झिझक उनके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी।
फिर उसने ब्रा को स्टफ कर दिया ताकि वो भरा हुआ दिखे और फिर उसने भाई को चोली पहनायी और पीछे की डोरियाँ खासकर टाइट बाँध दी ताकि विजय थोड़ा परेशान हो। निशा मन ही मन सोच रही थी कि ये सब कितना मज़ेदार है।
फिर बारी आयी लहंगे की जो भाई को पहनाना था। लहंगा वाकई बहुत भारी था। उसके कई सारे घेर थे, जिनमें बारीक काम किया गया था, सुनहरे धागों से कढ़ाई की गयी थी और छोटे-छोटे आइने जड़े हुए थे। उसे संभालते हुए पहनना अपने आप में एक चुनौती थी। भाई साहब जैसे-तैसे उसे पकड़े हुए थे और उनकी हालत देखकर निशा खिलखिलाकर हंस रही थी।
"अरे बाप रे! इतना भारी लहंगा? इसे तो उठाने में ही मेरी कमर टूट जाएगी।" भाई साहब ने लहंगा उठाते हुए नाक भौं सिकोड़ी और चेहरा दर्द से सिकुड़ गया जैसे उन्हें कोई भारी बोझ उठाने को कह दिया गया हो।
निशा अपनी हंसी रोक नहीं पाई और ठहाका लगाते हुए बोली, "अरे भैया, ऐसे मत बोलो। दुल्हन को तो इससे भी भारी लहंगा पहनना पड़ता है, वो भी घंटों तक। तुम तो बस कुछ देर के लिए पहन रहे हो, थोड़ा सा तो भार सहन कर लो।"
"अच्छा बाबा, सहन कर लूँगा।" भाई साहब ने हांफते हुए कहा और लहंगा पकड़े हुए निशा की तरफ बढ़े। "चलो बताओ, अब इसे कैसे पहनते हैं? कहीं इसका कोई खास तरीका तो नहीं है?"
निशा ने एक बार फिर ठहाका लगाया और बोली, "अरे भैया, तुम सच में बहुत मज़ेदार हो! लहंगा पहनने का क्या खास तरीका?
भाई साहब ने झेंपते हुए कहा, "अच्छा ठीक है, बताओ कैसे पहनूँ?"
निशा ने लहंगा थामा और कहा, "पहले तो ये स्कर्ट जैसा हिस्सा पहनो।"
भाई साहब ने निशा के बताए अनुसार लहंगा पहना और निशा ने उसे कसकर उनकी कमर पर कसकर बाँध दिया। विजय ने शिकायत की, "अरे निशा, इतना टाइट मत बांध, मेरी सांस फूल रही है," लेकिन निशा ने कहा कि अगर टाइट नहीं बांधा तो भारीपन की वजह से लहंगा एक जगह नहीं रुकेगा।
"अब ये दुपट्टा लो और..." निशा ने दुपट्टा पकड़ते हुए उसे लपेटने का तरीका समझाया, "इसे ऐसे कंधे पर डालो और फिर..."
भाई साहब ने बड़ी शिद्दत से निशा की बातें सुनीं और उसके बताए अनुसार दुपट्टा लपेटने की कोशिश की। दुपट्टा बार-बार उनके हाथ से फिसल रहा था और लहंगा भी उनकी कमर से नीचे खिसकने को तैयार रहता था।
निशा उनकी ये हालत देखकर हँसी नहीं रोक पा रही थी। आखिरकार, काफी मशक्कत के बाद भाई साहब ने लहंगा पहन लिया।
"अरे भैया, आप तो बिलकुल दुल्हन लग रहे हो।" निशा ने हँसते हुए कहा, "बस अब गहने और चुनरी की कमी है।" और यह कहकर वो ज़ोर से हंसने लगी।
निशा की बात सुनकर भाई का पारा सातवें आसमान पर जा चढ़ा। उसने आग बबूला होते हुए निशा को घूरा और दांत पीसते हुए बोला, "ज़्यादा हो गया निशा! चुप कर जा अब, और मेरा मज़ाक उड़ाना बंद कर। मुझे शर्म आ रही है।" सचमुच, शर्म के मारे उनका चेहरा लाल टमाटर की तरह हो गया था, यहाँ तक कि उनके कान भी गर्म हो गए थे।
लेकिन निशा कहाँ मानने वाली थी! उसे तो जैसे भाई को इस रूप में देखकर मज़ा ही आ रहा था। उसकी हंसी का तो जैसे कोई ठिकाना ही नहीं था। वो ज़ोर-ज़ोर से हंसते हुए लोटपोट हो रही थी। उसने पार्लर वाली से आँख मारते हुए कहा, "दीदी, मेरे पास कुछ गहने हैं। क्या आप इन्हें मेरे भाई को पहना सकती हैं? प्लीज़ दीदी, आज तो इसे दुल्हन ही बना दो।" उसकी आँखों में शरारत भरी चमक साफ़ दिखाई दे रही थी, मानो वो कोई शरारती योजना बना रही हो।
लेकिन उससे पहले, निशा ने पार्लर वाली से विजय को एक विग पहनाने को कहा। और जैसे ही विजय ने वो विग पहना, उसका पूरा लुक ही बदल गया। अब वो वाकई में एक लड़की जैसा दिख रहा था। उसके लंबे, घने बाल, गुलाबी गाल और वो शर्मीली मुस्कान, सब कुछ उसे एक अलग ही रूप दे रहे थे।
पार्लर वाली भी अब तक निशा की शरारत समझ चुकी थी। उसे भी ये सब देखकर बहुत मज़ा आ रहा था। वो मुस्कुराते हुए बोली, "हाँ जी, क्यों नहीं? मुझे तो बहुत मज़ा आ रहा है।"
निशा फ़ौरन अपना बैग उठाई और उसमें से गहनों का एक खूबसूरत सा डिब्बा निकाल लायी। डिब्बे में सोने की चूड़ियाँ, पायल, एक नथ, झुमके, माँग टीका, एक चमकदार हार, दुल्हन की बिछुआ और एक सुंदर सा कमरबंद था। और भी कई गहने थे जो आमतौर पर एक दुल्हन पहनती है, जैसे माथे पर सजाने के लिए छोटे-छोटे टीके, नाक की नथनी, और हाथों में पहनने के लिए अंगूठियां।
ये सारे गहने देखकर भाई साहब के होश फाख्ता हो गए। "अरे नहीं निशा! ये सब क्या कर रही हो? मैं ये सब नहीं पहनूँगा।" उन्होंने साफ़ इनकार कर दिया, लेकिन निशा कहाँ सुनने वाली थी!
"अरे भैया, बस थोड़ी देर के लिए। प्लीज ना, भैया।" निशा ने अपने भाई को मनाना शुरू कर दिया। उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी, शरारत और प्यार का एक अजीब सा मिश्रण। वो भाई को मनाने के लिए तरह-तरह के हावभाव बना रही थी, कभी आँखें सिकोड़कर मिन्नतें करती, तो कभी प्यार से भाई का हाथ थाम लेती।
आखिरकार, भाई साहब को निशा के आगे हार माननी पड़ी। वो निशा की ज़िद के आगे बेबस हो गए। पार्लर वाली ने बड़े प्यार से भाई साहब को सारे गहने पहनाए। पहले उसने बड़े ध्यान से नथ पहनाई, फिर झिलमिलाते झुमके, माथे पर चमकता हुआ माँग टीका, और गले में वो खूबसूरत हार। और अंत में, उसने बड़ी नज़ाकत से भाई साहब के हाथों में चूड़ियाँ पहनाई। हर एक गहना पहनाते हुए पार्लर वाली और निशा अपनी हंसी रोकने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन कभी-कभी तो हंसी फूट ही पड़ती थी।
जब भाई साहब पूरी तरह से तैयार हुए, तो उन्हें देखकर किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था। वह हूबहू एक शर्मीली दुल्हन लग रहे थे। निशा ने अपने मोबाइल से उनकी फोटो खींचनी शुरू कर दी। वो अलग-अलग एंगल से फोटो ले रही थी, कभी भाई को खड़ा करके, तो कभी बैठाकर।
"अरे वाह भैया! क्या लग रहे हो! एकदम हिरोइन जैसे!" निशा ने ठहाका लगाते हुए कहा। वो ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी।
भाई साहब शर्म से पानी-पानी हो रहे थे। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उन्हें अपनी ज़िंदगी में कभी ऐसा दिन भी देखना पड़ेगा। वो शर्म के मारे निशा से नज़रे नहीं मिला पा रहे थे।
तभी निशा ने एक लाल रंग की चुनरी निकाली। "बस अब ये चुनरी और बाँध दूँ, तो आपकी खूबसूरती में चार चाँद लग जाएँगे।"
यह कहकर उसने चुनरी भाई साहब के सिर पर डाल दी। लाल रंग की चुनरी ने उनके रूप में और भी निखार ला दिया था।
"लो जी, तैयार है हमारी दुल्हन!" निशा ने तालियाँ बजाई।
भाई साहब गुस्से में लाल-पीले हो रहे थे, लेकिन निशा की इस शरारत के आगे वह बेबस थे। वो कुछ कहना चाहते थे, पर शायद शब्द ही नहीं निकल रहे थे।
निशा ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी। उसने भाई को शीशे के सामने खड़ा किया और बोली, "देखो, भैया! आप कितने सुंदर लग रहे हो।"
भाई ने झिझकते हुए शीशे में खुद को देखा। लाल रंग का लहंगा, चेहरे पर मेकअप, गहने, माथे पर टीका, और हाथों में लाल चूड़ियाँ। वो खुद को इस रूप में देखकर शर्म से पानी पानी हो रहे थे।
"निशा, ये बहुत ज़्यादा हो गया।" भाई ने शर्म से कहा, "अब प्लीज ये सब उतरवा दो।"
भाई अब शीशे में खुद को देख भी नहीं रहे थे। उन्हें अपनी हालत पर गुस्सा आ रहा था, लेकिन साथ ही साथ हंसी भी आ रही थी। वो समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें, इसलिए बस चुपचाप खड़े रहे।
Comments
Post a Comment