निशा मन में विजय को और तंग करने के नये-नये तरीके सोच रही थी। सुबह हुई तो निशा ने विजय को जगाया और कहा, "उठो मेरी रानी साहिबा, देर हो गयी है।"
विजय की आँखें खुलते ही उसे रात वाली बात याद आ गयी। उसे बेसब्री थी यह जानने की कि आज निशा ने उसके लिए कौन से कपड़े चुने हैं।
"जानू, आज मुझे क्या पहनना होगा?" विजय ने उठते हुए पूछा।
निशा ने हँसते हुए कहा, "अरे बिल्कुल भी घबराओ मत, आज तुम्हें मेरी छोटी बहन का रोल प्ले करना है। सोचो, कितना मज़ेदार होगा! आज के लिए तुम विजया हो, मेरी प्यारी छोटी बहन, और मैं तुम्हारी बड़ी दीदी। इसलिए आज से तुम मुझे दीदी या जीजी कहकर बुलाओगे और मैं तुम्हें प्यार से विजया कहकर पुकारूँगी। ये एक मजेदार खेल है, है ना?और इस खास रोल के लिए, मैंने तुम्हारे लिए कुछ खास और आरामदायक कपड़े चुने हैं। क्योंकि मेरी छोटी बहन हमेशा कम्फर्टेबल रहती है। इसलिए पहले जाकर आराम से नहा लो और फिर ये ब्रा और पैन्टी पहन लेना। ये तुम्हारे लिए बिल्कुल परफेक्ट साइज़ की हैं और बहुत ही सॉफ्ट मटेरियल की बनी हैं, जिससे तुम्हें बिल्कुल भी परेशानी नहीं होगी। और हाँ, नहाने के पहले ये हेयर रिमूवल क्रीम अपने हाथों और पैरों पर लगा लेना। इससे तुम्हारे हाथ-पैर बिल्कुल मुलायम और चिकने हो जाएँगे। क्रीम लगाने के बाद अच्छी तरह से धो लेना और फिर ये लोशन लगा लेना। इससे तुम्हारी त्वचा और भी मुलायम और खूबसूरत हो जाएगी, बिल्कुल मेरी प्यारी छोटी बहन विजया जैसी! तो जल्दी से जाओ और तैयार हो जाओ, मेरी प्यारी विजया!"
विजय के मन में अजीब सी घबराहट थी। निशा उसे फिर से क्रीम लगाने को क्यों कह रही है
"लेकिन निशा, ये क्या है? मुझे ये सब दुबारा करने की ज़रूरत क्यों है?" विजय ने झिझकते हुए पूछा।
निशा ने विजय को प्यार से देखा और बोली, "अरे,घबराओ मत। यह क्रीम तुम्हारी त्वचा को मुलायम और चमकदार बनाएगी। और हाँ, आज से तुम मुझे दीदी कहकर बुलाओगे।"
निशा की बात मानकर विजय बाथरूम में चला गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। एक अजीब सी झिझक उसके मन में थी।फिर हिम्मत करके उसने क्रीम अपने हाथों और पैरों पर लगाई। थोड़ी देर बाद जब उसने क्रीम साफ़ की तो उसकी त्वचा पहले से ज़्यादा मुलायम हो गयी थी। विजय ने नहाया और ब्रा पैन्टी पहन ली। उसे अजीब तो लग रहा था, पर साथ ही एक अलग तरह की उत्तेजना भी महसूस हो रही थी।
उधर निशा ने अपनी अलमारी के एक कोने से, जहाँ उसने अपने कुछ ख़ास कपड़े रखे थे, एक गुलाबी रंग की फ्रिली मिनी स्कर्ट निकाली। स्कर्ट पर छोटे-छोटे घुँघरू लगे हुए थे और उसकी फ्रिल्स बेहद नाज़ुक और सुंदर लग रही थीं। इसके साथ उसने एक बैंगनी रंग का टॉप भी निकाला। यह दोनों कपड़े उसने बड़े प्यार से तह करके बिस्तर पर विजय के लिए रख दिए। विजय जब कमरे में आया और उसने उन कपड़ों पर नज़र डाली तो उसकी आँखें फ़टी की फ़टी रह गयीं। उसका मुँह खुला का खुला रह गया और वो कुछ देर तक तो बस उन्हें देखता ही रहा। "ये क्या है निशा? मैं ये नहीं पहनूँगा!" विजय ने नाक-भौं सिकोड़ते हुए, घबराहट भरे स्वर में कहा। निशा ने उसे प्यार से डांटा, "ऐसी बातें नहीं करते विजया। दीदी ने तुम्हारे लिए बड़े प्यार से ये कपड़े चुने हैं। ख़ास तुम्हारे लिए। और तुम्हें भी हल्के कपड़े चाहिए थे ना ,तो इससे हल्के और क्या होंगे। देखो कितने सुंदर और आरामदायक हैं ये।" निशा ने समझाते हुए कहा। "लेकिन ये तो बहुत छोटा है! मैं ये नहीं पहनूँगा। मुझे शर्म आएगी।" विजय ने ज़िद करते हुए विरोध किया। उसे ये सोचकर ही अजीब लग रहा था कि वो ये कपड़े पहनेगा। "अरे विजया, दीदी की बात मानो। ये बहुत सुंदर है। तुम पर बहुत जंचेगा। सोचो, गुलाबी और बैंगनी का कॉम्बिनेशन! कितना प्यारा है!" निशा ने उसे चिढ़ाते हुए और हँसते हुए कहा। "पर..." विजय कुछ कहने ही वाला था, शायद वो फिर से मना करने वाला था, कि निशा ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा, "कोई पर-वर नहीं, जाओ जल्दी से बदल कर आओ।
विजय मन मसोस कर बाथरूम में चला गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि निशा के साथ कैसे पंगा लिया जाए।
कुछ देर बाद विजय एक गुलाबी रंग की फ्रिल वाली मिनी स्कर्ट और बैंगनी रंग के टाइट टॉप में कमरे से बाहर आया। स्कर्ट इतनी छोटी थी कि उसके घुटनों से काफी ऊपर थी, अगर वो जरा भी बैठता तो उसकी पैन्टी साफ दिखाई दे जाती। टॉप भी इतना चुस्त था कि उसके शरीर की हर एक बनावट, हर एक कर्व साफ नजर आ रहा था, मानो उसके शरीर को गले लगा रहा हो। स्कर्ट में लगे घुँघरू उसकी हर हलचल के साथ छन-छन की आवाज़ कर रहे थे, जैसे कोई मधुर संगीत बज रहा हो। विजय को इस हसीन रूप में देखकर निशा अपनी हंसी नहीं रोक पाई और ठहाके लगाकर हंसने लगी। उसके हँसी के फव्वारे कमरे में गूंजने लगे। "वाह मेरी प्यारी विजया! तुम तो बिलकुल परी जैसी लग रही हो, इतनी सुंदर! और ये घुँघरू," निशा ने विजय को घुमाते हुए और उसके स्कर्ट के घुँघरूओं को छूते हुए कहा, "ये मैंने तुम्हारे लिए खास तौर पर रात भर जागकर लगाए हैं, ताकि तुम्हारी चाल में और भी नज़ाकत आये और तुम और भी खूबसूरत लगो साथ में तुम्हारी चाल की एक आवाज भी तो है। " निशा की आँखों में शरारत भरी चमक थी और उसके चेहरे पर एक खुशी की लहर दौड़ रही थी, जैसे उसने कोई बड़ा कारनामा कर दिखाया हो। विजय शर्माते हुए निशा की ओर देख रहा था, उसके गाल लाल हो गए थे और वो कुछ बोलने की कोशिश कर रहा था, लेकिन शर्म के मारे उसकी आवाज़ नहीं निकल रही थी। वो बस नज़रें झुकाए खड़ा था और अपने नए रूप को निहार रहा था। उसके हाथ बेचैनी से स्कर्ट को समेटने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन छोटी स्कर्ट की वजह से ये मुमकिन नहीं हो पा रहा था। घुँघरूओं की आवाज़ उसके दिल की धड़कनों की तरह तेज होती जा रही थी।
विजय गुस्से से निशा को घूर रहा था। उसके चेहरे पर गुस्सा साफ़ दिखाई दे रहा था। उसे इस तरह के कपड़े पहनना बिलकुल पसंद नहीं आ रहा था।
"अच्छा जी, मुझे डर लग रहा है।" निशा ने विजय का गुस्से वाला चेहरा देखकर नाटक करते हुए कहा।
फिर निशा ने बड़े प्यार से विजय के बालों की विग को संभाला और उसमें बीच की मांग निकाली। मांग निकालने के बाद, उसने विजय के बालों को अच्छी तरह से सुलझाया ताकि कोई गांठ न रहे और बाल रेशमी मुलायम दिखें। फिर उसने एक सुंदर सी चोटी बनाई, जिसके हर लट में उसकी उंगलियां कलाकारी करती प्रतीत हो रही थीं। चोटी को और भी आकर्षक बनाने के लिए निशा ने एक रंगीन रबर बैंड से उसे बांध दिया और कुछ छोटे-छोटे सजावटी छोटे रिबन भी लगा दिए। इस सजावट के बाद विजय और भी ज्यादा खूबसूरत लगने लगीं। उसका चेहरा दमक उठा और आँखों में एक अलग सी चमक आ गई। निशा को विजय को इस तरह सजाने में एक अजीब सा मजा आ रहा था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी गुड़िया से खेल रही हो और उसे अपने मन मुताबिक सजा रही हो। हर एक स्पर्श, हर एक सजावट के साथ निशा का उत्साह बढ़ता जा रहा था। इसके बाद निशा ने विजय का हल्का सा मेकअप करने का फैसला किया। उसने सबसे पहले विजय के चेहरे पर एक अच्छा सा फाउंडेशन लगाया, जिससे उसका रंग एक समान हो गया और चेहरे के दाग-धब्बे छुप गए। फाउंडेशन के बाद, उसने कॉम्पैक्ट पाउडर लगाया ताकि मेकअप लंबे समय तक टिका रहे और चेहरे पर एक चमक आ जाए। इसके बाद निशा ने विजय की आँखों में काजल लगाया, जिससे उसकी आँखें बड़ी और खूबसूरत लगने लगीं। फिर उसने पलकों पर हल्के गुलाबी रंग का आईशैडो लगाया, जो उसकी आँखों की खूबसूरती में चार चाँद लगा रहा था। आईशैडो के बाद, उसने मस्कारा लगाया जिससे उसकी पलकें घनी और लंबी दिखने लगीं। आखिर में, निशा ने विजय के गालों पर गुलाबी रंग का ब्लश लगाया, जिससे उसके गालों पर एक प्राकृतिक लालिमा आ गई। और अंत में, उसने विजय के होंठों पर गहरी गुलाबी रंग की लिपस्टिक लगा दी, जिससे उसके होंठ मुलायम और आकर्षक लगने लगे। पूरा मेकअप करने के बाद, विजय एकदम परी जैसी लग रही थी।
लिपस्टिक लगाने के बाद निशा ने विजय को गहने पहनाने शुरू कर दिए। उसने सबसे पहले विजय के गले में एक सुंदर सा मंगलसूत्र पहनाया, जिसमे छोटे-छोटे काले मोती पिरोये हुए थे। फिर उसने विजय की नाक में एक छोटी नथ पहनाई जो उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रही थी। इसके बाद निशा ने विजय के कानों में झुमके पहनाए, जो उसके चेहरे पर और भी ज्यादा निखार ला रहे थे।
फिर निशा ने मानो किसी कलाकृति को सजा रही हो, विजय के पैरों में बिछिया पहनाई। इसके बाद निशा ने विजय के पैरों में पायल पहनाई, जिनमें घुँघरूओं की भरमार थी। हर घुँघरू जैसे खुशी का एक छोटा सा झंकार बजा रहा हो। अंत में, निशा ने विजय के हाथों में एक-एक करके ढेर सारी चूड़ियाँ पहनाई। हर चूड़ी को पहनाते समय निशा का स्पर्श अत्यंत कोमल था। वो इस बात का पूरा ध्यान रख रही थी कि चूड़ियाँ बहुत ज़्यादा टाइट न हों और विजय को असहज महसूस न हो।
निशा विजय को देखकर फूली नहीं समा रही थी। उसे अपनी इस जीत पर बहुत गर्व हो रहा था। उसने सोचा, "वाह! विजय सचमुच एक सुंदर लड़की लग रही है।"
निशा ने विजय के लिए एक जोड़ी सैंडल भी निकालीं जो गुलाबी रंग की थीं और उन पर छोटे-छोटे मोती जड़े हुए थे। लेकिन आज सैंडल मे हील्स की ऊँचाई ज्यादा थी चूंकि अब तक विजय नॉर्मल हील्स ही पहन रहा था तो वो घबरा रहा था कि कहीं वो गिर न जाये। "डरो मत विजया,ये तुम्हारी पहली चुनौती है पर मैं तुम्हें संभाल लूंगी।" निशा ने विजय की घबराहट भांपते हुए कहा।
विजय ने हिचकिचाते हुए सैंडल पहनी। हील्स की वजह से उसका कद थोड़ा और बढ़ गया था और उसकी चाल लड़खड़ा रही थी।
निशा विजय का हाथ थामे हुए उसे आईने के सामने ले गई। आईने में अपनी परछाईं देखकर विजय एक पल के लिए ठिठक गया, मानो उसे अपनी आँखों पर यकीन ही नहीं हो रहा था। वह खुद को पहचान ही नहीं पा रहा था। गुलाबी रंग की छोटी, चमकदार स्कर्ट में उसके पैर किसी परी के पैरों जैसे लग रहे थे, नाज़ुक और सुंदर। स्कर्ट की लंबाई उसके घुटनों से थोड़ा ऊपर थी, जिससे उसके पैर और भी आकर्षक लग रहे थे। बैंगनी रंग का फिट टॉप उसके शरीर पर कसकर चिपका हुआ था,जो उसकी जवानी के उभारों को और भी ज़्यादा निखार रहा था। टॉप के गले का डिज़ाइन भी काफ़ी आकर्षक था, जो उसकी गर्दन की सुंदरता को बढ़ा रहा था।चेहरे पर किया गया मेकअप उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था। आँखों में लगा काजल उसकी आँखों को बड़ा और गहरा बना रहा था, और होंठों पर लगी गुलाबी लिपस्टिक उसके चेहरे पर एक अलग ही नूर ला रही थी कानों में लटके झुमके, गले में पड़ा लंबा मंगलसूत्र और हाथों में पहनी चूड़ियाँ उसकी सुंदरता में और भी इज़ाफ़ा कर रही थीं। स्कर्ट के निचले हिस्से में लगे घुँघरू उसकी हरकत के साथ हल्के-हल्के बज रहे थे, जो एक मधुर संगीत पैदा कर रहे थे। विजय को ऐसा लग रहा था जैसे वह सपना देख रहा हो। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि वह इतना खूबसूरत लग सकता है। निशा मुस्कुराते हुए उसे देख रही थी, उसकी आँखों में विजय के लिए एक अलग ही चमक थी।
"कैसी लगी मेरी विजया?" निशा ने विजय के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा।
विजय कुछ नहीं बोला, बस शर्म से अपनी नज़रें झुका ली।
"अरे बोलो तो सही विजया, दीदी ने तुम्हें कैसे सजाया है?" निशा ने विजय की ठुड्डी पकड़ कर उसका चेहरा ऊपर किया।
"दीदी..." विजय ने धीमी आवाज़ में कहा। उसकी आवाज़ में एक अजीब सी मासूमियत थी।
"आज तो तुम मेरी प्यारी छोटी बहन विजया हो।" निशा ने विजय को गले लगाते हुए कहा। चलो अब किचन में चलते हैं दोनों बहने मिलकर चाय नाश्ता बनाएंगे। विजय तीन दिनों मे रसोई के काम तो सीख गया था। जैसे ही वो रसोई की तरफ बड़ा वैसे ही चलते समय विजय की पायल और हील्स की आवाज मधुर जुगलबंदी कर रहीं थीं और चूडियों की आवाज उस पर चार चांद लगा रहीं थीं।
रसोई में पहुँचकर निशा ने विजय को चाय बनाने को कहा और खुद नाश्ता बनाने लगी। विजय चाय बनाते समय बार-बार अपनी स्कर्ट को नीचे खींच रहा था। उसे डर लग रहा था कि कहीं उसकी पैन्टी न दिख जाए।
"अरे विजया, तुम चाय बनाते समय अपनी स्कर्ट क्यों खींच रही हो? दीदी ने तुम्हें इतनी छोटी स्कर्ट पहनाई है तो घबराओ मत, दिखा दो सबको।" निशा ने विजय को चिढ़ाते हुए कहा।
विजय ने गुस्से से निशा को देखा और बोला, "दीदी, प्लीज! मुझे बहुत शर्म आ रही है।"
"अच्छा बाबा, शर्म मत करो।" निशा ने हंसते हुए कहा। "चलो, जल्दी से चाय और नाश्ता तैयार करो। हमें आज बहुत काम है।"
नाश्ते के बाद निशा ने विजय को घर के कामों में व्यस्त कर दिया। उसने विजय को निर्देश दिया कि पहले पूरे घर में झाड़ू लगाए और फिर अच्छी तरह से पोंछा भी लगाए। विजय मन ही मन सोच रहा था, "अरे यार, निशा ने मुझे इतनी छोटी स्कर्ट पहना दी है। इस छोटी सी स्कर्ट में झाड़ू-पोंछा लगाना तो बहुत ही मुश्किल होगा। कैसे करूँगा यह सब?" वह बार-बार स्कर्ट को नीचे की ओर खींचते हुए झाड़ू लगाने की कोशिश कर रहा था। उसकी यह अटपटी हरकत देखकर निशा खिलखिलाकर हंस रही थी।
"अरे विजया, अगर तुम ऐसे ही झाड़ू लगाओगी तो सारा दिन निकल जाएगा और काम पूरा नहीं होगा।" निशा ने विजय को हल्के-फुल्के अंदाज में चिढ़ाते हुए कहा। "स्कर्ट को ऐसे बार-बार नीचे मत खींचो, उसे यूँ ही रहने दो और आराम से झाड़ू लगाओ। जल्दी काम खत्म करो।"
"निशा, प्लीज यार! मुझे बहुत शर्म आ रही है। " विजय ने लजाते हुए गिड़गिड़ाते हुए कहा। उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया था और वह असहज महसूस कर रहा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि कैसे इस छोटी स्कर्ट में घर के काम करे।
"अरे, बस करो अब बकबक! ज्यादा नाटक मत करो और मेरी बात मानो।" निशा ने थोड़ी सख्ती से कहा। "और हाँ, एक बात ध्यान रखना, मुझे दीदी कहकर बुलाओगे, समझ गए? वरना..." निशा ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी, लेकिन उसके चेहरे के भाव से साफ था कि अगर विजय ने उसकी बात नहीं मानी तो उसे सजा मिलेगी। विजय डर के मारे काँप गया और मन ही मन सोचने लगा कि अब क्या होगा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। एक तरफ छोटी स्कर्ट में काम करने की झिझक और दूसरी तरफ निशा की सख्ती। वह फंस गया था। उसे लगा कि आज उसका दिन अच्छा नहीं जा रहा है। वह चुपचाप झाड़ू लगाने लगा, लेकिन उसका मन कहीं और था। वह बार-बार निशा की तरफ देख रहा था, डर और शर्म से उसका चेहरा पसीने से तर हो गया था। उसे उम्मीद थी कि जल्दी ही यह सब खत्म हो जाएगा।
विजय समझ गया कि अगर उसने निशा की बात नहीं मानी तो उसका क्या हाल होगा। उसने मजबूरन अपनी स्कर्ट से ध्यान हटाकर झाड़ू लगाने लगा। उसे ऐसा लग रहा था जैसे सारा घर उसे ही घूर रहा हो।
झाड़ू लगाने के बाद अब बारी थी पोंछा लगाने की, जो विजय के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं थी। हील्स पहने हुए, झुककर पोंछा लगाना एक टेढ़ी खीर साबित हो रहा था। अगर वो घुटनों के बल बैठकर पोंछा लगाता, तो ठंडे फर्श की चुभन तो सहनी ही पड़ती, साथ ही छोटी स्कर्ट की वजह से पैन्टी दिख जाने का डर भी उसे सता रहा था। ये दुविधा उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी। एक तरफ फर्श की सफाई का काम था, तो दूसरी तरफ अपनी मर्यादा बनाए रखने की चुनौती। हर पल उसे एहसास हो रहा था कि निशा की नजरें उस पर गड़ी हैं, और ये एहसास उसे और भी बेचैन कर रहा था।
निशा विजय की इस कशमकश को भली-भांति समझ रही थी, बावजूद इसके वो जानबूझकर उसे तंग कर रही थी। शायद उसे विजय को इस असहज स्थिति में देखकर एक अजीब सा मजा आ रहा था। विजय की बेबसी और लाचारी देखकर उसकी शरारत और भी बढ़ती जा रही थी। विजय ने हिम्मत जुटाकर आखिरकार पोंछा लगाना शुरू किया। वो बेहद एहतियात से, धीरे-धीरे पोंछे को आगे बढ़ा रहा था। हर एक कदम फूंक-फूंक कर रख रहा था, इस बात का पूरा ध्यान रखते हुए कि कहीं उसकी स्कर्ट ऊपर न उठ जाए और उसकी नाजुक स्थिति का कारण न बन जाए। उसकी नजरें लगातार नीचे जमीं पर टिकी थीं, मानो वो फर्श के हर दाग़ को अपनी शर्मिंदगी का सबब मान रहा हो।
"अरे वाह मेरी विजया, कितनी समझदार है तू!" निशा ने विजय को और तंग करते हुए कहा। उसकी आवाज में एक बनावटी मिठास थी, जो विजय के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसी थी। "ऐसे ही अगर तुम मेरी बात मानोगी तो तुम्हें कोई तकलीफ नहीं होगी।" निशा के इस कथन में एक धमकी भी छिपी हुई थी, जो विजय के दिल को और भी डरा रही थी। ये शब्द उसके कानों में गूंज रहे थे, उसे अपनी लाचारी का एहसास दिला रहे थे।
विजय मन ही मन कुढ़ रहा था, पर वो कुछ कर नहीं सकता था। उसे निशा की हर बात माननी पड़ रही थी।
"दीदी, क्या मैं अब अपनी ड्रेस बदल सकता हूँ? मुझे बहुत असहज लग रहा है।" विजय ने निशा से गुहार लगाई।
"अभी कहाँ जल्दी है विजया, अभी तो पूरा दिन बाकी है।" निशा ने मुस्कुराते हुए कहा। "अभी तो तुमने मेरा दिया हुआ सिर्फ़ एक ही काम पूरा किया है।"
"एक काम?" विजय ने हैरानी से पूछा। "मैंने तो सारा घर साफ़ कर दिया है, अब और क्या काम बचा है?"
"अरे पगली, ये तो बस शुरुआत है।" निशा ने विजय की पीठ थपथपाते हुए कहा, उसकी आवाज़ में एक शरारती लहजा था। "अभी तो तुम्हें कपड़े धोने हैं, वो भी इसी स्कर्ट में, रेशमी, चमकदार, बिल्कुल नई स्कर्ट में। और हाँ, एक और ज़रूरी बात, कपड़े हाथ से ही धोने हैं। मशीन का इस्तेमाल करने की बिलकुल इज़ाज़त नहीं है। सोच भी मत लेना मशीन के पास भी जाने की।" निशा ने अपनी बात पर ज़ोर देते हुए कहा, उसकी आँखों में शरारत साफ़ दिखाई दे रही थी।
"हाथ से?" विजय ने घबराते हुए कहा, उसकी आवाज़ में एक कंपकंपी थी। उसने बाल्टी की तरफ देखा, जो गंदे कपड़ों से लबालब भरी हुई थी। "लेकिन दीदी, इतने सारे कपड़े! और वो भी हाथ से? ये तो बहुत मुश्किल है! देखो, कितने सारे कपड़े हैं, एक, दो, तीन... नहीं, गिन भी नहीं सकती! इतने सारे कपड़े हाथ से धोना तो नामुमकिन सा लग रहा है।" विजय ने बाल्टी की ओर इशारा करते हुए कहा, उसका चेहरा चिंता से भर गया था।
"हाँ , हाथ से ही।" निशा ने अपनी आँखें मींचते हुए कहा, मानो किसी गहरी सोच में डूबी हो। "और हाँ, एक और बात, एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात जो तुम्हें ज़रूर याद रखनी है।" निशा ने अपनी आँखें खोलते हुए विजय की ओर देखा, उसकी नज़र में एक शरारती चमक थी।
"अब क्या हुआ दीदी?" विजय ने निराशा से पूछा, उसका चेहरा और भी ज़्यादा मुरझा गया था। उसे लग रहा था जैसे निशा जानबूझकर उसे परेशान कर रही है।
"कपड़े धोते समय ये स्कर्ट गीली नहीं होनी चाहिए। अगर एक भी बूँद पानी इस पर गिरा, तो समझ लेना सजा पक्की है।" निशा ने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा क्योंकि उसे पता था कि विजय कुछ भी कर ले मगर थोड़ा बहुत पानी तो स्कर्ट पर जाएगा ही। वो मन ही मन विजय की मुश्किल का मज़ा ले रही थी। "समझी मेरी प्यारी बहना? ये एक चुनौती है तुम्हारे लिए।" निशा ने विजय के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
"पर दीदी, ये कैसे मुमकिन है? कपड़े धोते वक़्त पानी के छींटे तो उड़ेंगे ही, हो सकता है स्कर्ट गीली हो जाए। मैं पूरी कोशिश करूँगी कि स्कर्ट गीली न हो, लेकिन अगर गलती से हो भी गई तो...?" विजय ने अपनी परेशानी बताई, उसकी आवाज़ में अब एक विनती का भाव था। वो समझ नहीं पा रही थी कि निशा की इस अजीब शर्त को वो कैसे पूरा करेगी।
"अरे तो थोड़ा ध्यान से धोना ना।" निशा ने लापरवाही से जवाब दिया, मानो ये कोई बड़ी बात ही न हो। "और हाँ, अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी, अगर तुम्हारी स्कर्ट ज़रा भी गीली हुई, तो..." निशा ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी और विजय को एक खौफनाक निगाहों से देखा, उसकी आँखों में एक चेतावनी साफ़ दिखाई दे रही थी। विजय समझ गया कि अगर उसने निशा की बात नहीं मानी तो उसका क्या हाल होगा। उसने मन ही मन सोचा कि उसे बहुत सावधानी से कपड़े धोने होंगे, वरना निशा उसे कोई न कोई कठिन सज़ा ज़रूर देगी। वो निशा की नज़रों से डरती थी, क्योंकि वो जानती थी कि निशा अपनी बात से कभी नहीं पलटती।
"ठीक है दीदी, जैसा आप कहें।" विजय ने मायूसी से कहा।
निशा विजय को इस तरह देखकर मन ही मन बहुत खुश हो रही थी। उसे विजय को इस तरह परेशान करना बहुत पसंद आ रहा था।
"अच्छा तो जाओ अब जल्दी से कपड़े धो डालो।" निशा ने विजय को हुक्म दिया। "और हाँ, ध्यान रखना, स्कर्ट गीली नहीं होनी चाहिए।"
विजय मन मसोस कर बाथरूम की तरफ चल दिया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो निशा के इस अत्याचार से कब छुटकारा पायेगा।
विजय बाथरूम में घुसा तो एक और नई मुसीबत उसके सामने खड़ी थी। बाथरूम में कपड़े धोने के लिए एक छोटा सा स्टूल रखा था। विजय ने सोचा, "अगर मैं इस स्टूल पर बैठकर कपड़े धोऊँगा तो मेरी स्कर्ट तो पक्का गीली हो जाएगी।"
विजय ने हिम्मत करके निशा को आवाज़ दी, "दीदी, ये स्टूल तो बहुत नीचा है। मैं इस पर बैठकर कपड़े कैसे धोऊँगा?"
"तो मत धो।" निशा ने बेरुखी से जवाब दिया। "कौन कह रहा है तुमसे धोने को? अगर नहीं धोना तो मत धो।"
विजय समझ गया कि निशा जानबूझ कर उसे परेशान कर रही है। उसने सोचा, "अगर मैंने निशा की बात नहीं मानी तो वो मुझे और कोई सजा देगी।"
विजय ने हिम्मत जुटाकर, थोड़ी झिझक के साथ, स्टूल पर बैठ गया और कपड़े धोने लगा। उसके हाथ काँप रहे थे, जैसे कोई नया काम सीख रहा हो, और मन में एक अजीब सी घबराहट थी, मानो कोई अनहोनी होने वाली हो। वो बहुत ही सावधानी से, एक-एक करके कपड़े धो रहा था, इस बात का पूरा ध्यान रखते हुए कि उसकी छोटी सी स्कर्ट गीली न हो। वह स्कर्ट, जो उसके घुटनों से भी ऊपर तक ही आती थी, उसे और भी असहज बना रही थी। वो बार-बार अपनी स्कर्ट को नीचे की ओर खींच रहा था, अपनी उँगलियों से उसे पकड़कर, ताकि पानी के छींटे उस पर न पड़ें। लेकिन स्कर्ट इतनी छोटी थी कि चाहे जितनी सावधानी बरती जाए, पानी के छींटे उस पर तो पड़ ही रहे थे, साथ ही उसकी पैन्टी पर भी। पानी की ठंडक से उसकी जांघों पर सिहरन दौड़ रही थी, एक अजीब सा एहसास उसे बेचैन कर रहा था। विजय की धड़कनें तेज़ हो रही थीं, जैसे कोई ढोल उसके सीने में बज रहा हो। उसे डर था कि कहीं निशा उसे इस हालत में देख न ले। वो जल्दी-जल्दी कपड़े धोने लगा, अपने हाथों को तेज़ी से चलाते हुए, ताकि जल्द से जल्द इस असहज स्थिति से बाहर निकल सके। उसके हाथों की गति बढ़ गई थी और वो बेसब्री से कपड़ों को निचोड़ रहा था, जैसे उनमें से सारा पानी एक ही बार में निकाल देना चाहता हो। विजय जैसे-तैसे सारे कपड़े धोकर,अपनी गीली स्कर्ट और पैन्टी को समेटते हुए, बाथरूम से बाहर आया। उसकी स्कर्ट और पैन्टी पूरी तरह से गीली हो चुकी थीं और उसके शरीर से चिपकी हुई थीं, मानो उसकी दूसरी त्वचा बन गई हों। उसे ठंड लग रही थी, उसके शरीर में कंपकंपी दौड़ रही थी, और साथ ही डर भी, जो उसके दिल में एक साँप की तरह कुंडली मारकर बैठा था। उसे डर लग रहा था कि निशा उसे देखेगी तो क्या होगा। वो सोच रहा था कि उसे निशा से क्या बहाना बनाना चाहिए। क्या वो कहेगा कि वो गलती से पानी में गिर गया था?
"क्या हुआ विजया, इतनी देर क्यों लगा दी?" निशा ने विजय को देखते हुए पूछा। "और ये क्या, तुम्हारी स्कर्ट तो गीली है साथ में पैन्टी भी गीली कर ली ?"
"दीदी, वो... मैं..." विजय हकलाने लगा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या जवाब दे।
"क्या हुआ? जुबान लड़खड़ा रही है तुम्हारी? इतनी देर बाथरूम में क्या कर रहे थे? और हाँ, मेरा सवाल का जवाब तो दो, स्कर्ट और पैन्टी गीली क्यों है?" निशा ने विजय को घूरते हुए कहा।
"दीदी, मैं ... मैं कपड़े धो रहा था।" विजय ने डरते-डरते जवाब दिया। "स्टूल बहुत नीचा था, तो गलती से स्कर्ट पर पानी गिर गया।"
"गलती से?" निशा ने ऊँची आवाज़ में कहा। "तुम्हें पता है ना विजया, इस की सज़ा क्या होती है?"
विजय कांपने लगा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे।
"चलो मेरे पीछे!" निशा ने हुक्म दिया और विजय को खींचते हुए अपने कमरे में ले गई।
कमरे में पहुँचते ही निशा ने दरवाज़ा बंद कर दिया और विजय की तरफ पलटी। विजय डर के मारे पीछे हटने लगा।
"कहाँ जाओगे विजया?" निशा ने विजय का हाथ पकड़ते हुए कहा। "अभी तो तुम्हें अपनी गलती की सज़ा मिलनी बाकी है।"
"दीदी, मुझे माफ़ कर दो।" विजय ने गिड़गिड़ाते हुए कहा। "मैंसे दोबारा ऐसी गलती नहीं होगी।"
"अब बहुत हो चुकी माफ़ी।" निशा ने गुस्से से कहा। "आज तुम्हें ये याद दिलाना ही पड़ेगा कि तुम मेरी नज़र में एक लड़की ही हो।"
निशा ने गुस्से में विजय को बेड पर धकेल दिया। विजय डर के मारे चीख पड़ा, "दीदी, प्लीज! मुझे माफ़ कर दो।"
लेकिन निशा विजय की बातों पर ध्यान नहीं दे रही थी। उसने गुस्से में विजय की गीली स्कर्ट ऊपर खींच दी और उसकी गीली पैन्टी भी उतार दी।
विजय की साँसें थम सी गई थीं। उसकी नंगी टांगें अब पूरी तरह से निशा के सामने थीं। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे।
"दीदी...प्लीज...ये मत करो। मुझे बहुत शर्म आ रही है।" विजय ने गिड़गिड़ाते हुए कहा।"
अब शर्म आ रही है? जब स्कर्ट गीली कर रहे थे तब कहाँ गई थी शर्म?" निशा ने ताना मारते हुए कहा।
"दीदी...मैं...मैं..." विजय कुछ बोल नहीं पा रहा था।" फिर निशा ने विजय की तरफ एक दूसरी मिनी स्कर्ट फेंकी जो कि पीले रंग की थी और कहा कि तुम्हारी सजा ये है कि आज पूरा दिन बिना पैन्टी के ही स्कर्ट पहनो तब तुम्हें शर्म आएगी। इस स्कर्ट मे भी निशा ने घुँघरू लगाए थे।
"नहीं दीदी...प्लीज...ये मत करो।" विजय गिड़गिड़ाते हुए बोला, उसकी आवाज़ में दहशत साफ़ झलक रही थी। "मैं बिना पैन्टी के नहीं रह सकता। प्लीज दीदी, मुझे माफ़ कर दो।"
लेकिन निशा पर विजय की किसी बात का कोई असर नहीं हो रहा था। उसने एक शरारती मुस्कान के साथ कहा, "अब तो तुम्हें मेरी हर बात माननी पड़ेगी विजया समझ गए?"
"चलो अब जल्दी से ये स्कर्ट पहनो।" निशा ने हुक्म देते हुए कहा। "और हाँ, ध्यान रखना, आज पूरा दिन तुम्हें बिना पैन्टी के ही रहना है।
"दीदी, प्लीज... मुझे बहुत डर लग रहा है। मैं बिना पैन्टी के कैसे रहूँगा? सब मुझे देखते रहेंगे।" विजय ने कांपते हुए कहा। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे थे।
"अरे डरो मत मेरी प्यारी बहना।" निशा ने विजय को चिढ़ाते हुए कहा। "जब तुम इस स्कर्ट में घूमोगे तो सब तुम्हारी खूबसूरती देखते रह जाएँगे। कोई तुम्हारी पैन्टी नहीं देखेगा।"
विजय ने मजबूरन वो छोटी सी पीली स्कर्ट बिना पैन्टी के पहनी। स्कर्ट इतनी छोटी थी कि उसके पहनने से ज़्यादा तो उसके हाथ से ही ढकी हुई थी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे वो बिलकुल नंगा हो। निशा ने उसे फिर हल्के हरे रंग का लेस टॉप भी दिया क्योंकि उसे स्कर्ट टॉप की मैचिंग पसंद नहीं आ रही थी।
अब निशा सोच रही थी कि किचन के काम, साफ़ सफाई और कपड़े धोना ये सब तो हो गए हैं। इसके अलावा अब विजय को कौन से काम बताए जाएँ जो घर में किए जाते हों और उसे बिना पैन्टी की स्कर्ट मे मुश्किल हो।
निशा की नज़र उस समय अचानक घर के आँगन में पड़े गीले कपड़ों पर गयी जो उसने धोए थे और अब उन्हें छत पर फैलाना था।
निशा मन ही मन मुस्कुराई, "ये हुई ना बात! यही तो मौका है विजय को और तंग करने का।"
"विजया, अब तुम ये सारे गीले कपड़े छत पर जाकर फैलाओ।" निशा ने विजय को आदेश दिया, उसकी आवाज़ में एक अजीब सा रौब था। विजय डर के मारे सिहर उठा। उसके मन में एक अजीब सी घबराहट दौड़ गई। उसने अपनी छोटी सी स्कर्ट को नीचे की ओर खींचने की कोशिश की, मानो उसे और छोटा कर देने से उसकी शर्मिंदगी कम हो जाएगी। "लेकिन दीदी... छत पर? इस स्कर्ट में?" विजय ने डरते-डरते कहा, उसकी आवाज़ में काँप साफ़ झलक रहा था। उसकी नज़रें ज़मीन पर गड़ी हुई थीं, मानो वो उसमें कोई जवाब ढूंढ रही हो। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो निशा को कैसे समझाए कि ये स्कर्ट कितनी छोटी है, और बिना पैन्टी के छत पर जाना कितना मुश्किल है। छत पर जाने का मतलब था, मोहल्ले के सभी लोगों के सामने अपनी बेइज़्ज़ती करवाना।
"हाँ विजया, छत पर ही। और हाँ, इसी स्कर्ट में।" निशा ने अपनी आँखें मींचते हुए कहा, मानो वो किसी गहरी सोच में डूबी हो। उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी, जो विजय के डर को और भी बढ़ा रही थी। "और क्या? कोई प्रॉब्लम है?" निशा ने पूछा, उसकी आवाज़ में एक चुभती हुई तीखापन थी। विजय की हालत खराब थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। एक तरफ तो वो छोटी सी स्कर्ट में बिना पैन्टी के था, जिसकी वजह से वो बेहद असहज महसूस कर रहा था, और दूसरी तरफ निशा उसे छत पर कपड़े फैलाने के लिए भेज रही थी। उसके मन में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे।
"लेकिन दीदी... अगर कोई मुझे इस हालत में देख लेगा तो?" विजय ने हिचकिचाते हुए कहा। उसकी आवाज़ में डर और शर्म साफ़ झलक रही थी। उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया था। वो निशा की आँखों में देखने से भी कतरा रहा था। "तो देखने दो ना।" निशा ने लापरवाही से जवाब दिया, मानो उसे विजय की परेशानी से कोई फर्क ही नहीं पड़ता हो। उसका ये रवैया विजय के डर को और भी बढ़ा रहा था। "दीदी, प्लीज... मुझे मत भेजो छत पर।" विजय ने गिड़गिड़ाते हुए कहा। उसकी आँखों में आँसू आ गए थे। "मैं यहीं नीचे कुछ और काम कर लूँगा। बर्तन धो दूंगा, कपड़े प्रेस कर दूंगा, झाड़ू पोछा लगा दूंगा, कुछ भी काम दे दो दीदी, पर मुझे छत पर मत भेजो।"
"नहीं विजया, तुम्हें छत पर ही जाना होगा।" निशा ने सख्ती से कहा। उसके लहजे में कोई ढिलाई नहीं थी। "और हाँ, जल्दी से जाओ। देर मत करो। सारे कपड़े सूखने चाहिए, वरना..." निशा ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी, लेकिन उसकी आँखों में एक धमकी साफ़ दिखाई दे रही थी। "लेकिन दीदी... छत पर तो बहुत हवा चलती है।" विजय ने हिम्मत करके कहा, उसके मन में एक छोटी सी उम्मीद थी कि शायद निशा उसकी बात मान ले। "तो और भी मज़ा आएगा।" निशा ने शरारती अंदाज़ में कहा, उसकी आँखों में एक शैतानी चमक थी। "जब हवा तुम्हारी स्कर्ट को उड़ाएगी तो तुम्हें और भी ज़्यादा मज़ा आएगा। सोचो,जब ठंडी हवा स्कर्ट के अंदर जाएगी , क्या मज़ा आएगा ना?" निशा की बात सुनकर विजय कांपने लगा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे।
विजय समझ गया कि निशा जानबूझ कर उसे परेशान कर रही है। उसे निशा की हर बात माननी पड़ रही थी, चाहे वो कितनी भी शर्मनाक क्यों न हो।
"ठीक है दीदी, जैसा आप कहें।" विजय ने मायूसी से कहा।
विजय समझ गया कि अब उसे निशा की बात माननी ही पड़ेगी। उसने हिम्मत करके गीले कपड़ों की बाल्टी उठाई और धीरे-धीरे सीढ़ियाँ चढ़ने लगा।
और हाँ, सीढ़ियाँ चढ़ते समय अपनी स्कर्ट पर हाथ रखना।" निशा ने पीछे से आवाज़ दी। "कहीं ऐसा न हो कि हवा से तुम्हारी ये प्यारी सी स्कर्ट उड़ने लगे और बाकी जानते ही हो।"
विजय मन ही मन बहुत शर्मिंदा महसूस कर रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। एक तरफ तो वो बिना पैन्टी के था, और दूसरी तरफ उसे छत पर जाना था जहाँ हवा चल रही थी।
धीरे-धीरे विजय छत पर पहुँचा। छत पर हवा वाकई में बहुत तेज़ चल रही थी। विजय ने जैसे ही छत पर पैर रखा, उसकी स्कर्ट हवा से उड़ने लगी। विजय ने झट से अपनी स्कर्ट को दोनों हाथों से पकड़ लिया, लेकिन हवा इतनी तेज़ थी कि उसकी स्कर्ट उसके हाथों से छूट गयी। और ठंडी हवा सीधे उसके प्राइवेट पार्ट से तेजी से गुजर रही थी। साथ मे स्कर्ट मे लगे घुँघरू और ज्यादा आवाज कर रहे थे और उसके private पार्ट पर हल्का हल्का टकराव भी कर रहे थे। उसकी आँखें बंद हो गयीं और शर्म से उसका चेहरा लाल हो गया। विजय ने झट से अपने हाथों से स्कर्ट को नीचे दबाया, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। उसने अपने पैरों को जितना हो सके पास लाने की कोशिश की लेकिन हवा ने उसकी सारी कोशिशों को नाकाम कर दिया। उसे ऐसा लग रहा था जैसे सारी दुनिया उसकी नंगी टांगों को देख रही है।वो जल्दी से दीवार की तरफ भागा और पीठ करके खड़ा हो गया। निशा सीढ़ियों पर खड़ी उसे देख रही थी और मजा ले रही थी और ज़ोर-ज़ोर से हंस रही थी।
"देखा विजया, मैंने कहा था ना तुम्हें मज़ा आएगा।" निशा की आवाज़ सीढ़ियों से आती हुई सुनाई दी। "हवा से स्कर्ट उड़ाना कितना मज़ेदार होता है, ये तो तुम अब समझ ही गए होगे की स्कर्ट पहन कर क्या सहना पड़ता है। "
निशा धीरे-धीरे सीढ़ियाँ चढ़ते हुए छत पर आ गई। उसके चेहरे पर एक शरारती मुस्कान थी। वो विजय को इस हालत में देखकर बहुत खुश हो रही थी।
"दीदी... प्लीज... यहाँ से चले चलते हैं।" विजय ने गिड़गिड़ाते हुए कहा। उसकी आवाज़ में डर और शर्म साफ़ झलक रही थी। "मुझे बहुत अजीब लग रहा है।"
"अरे अभी तो मज़ा शुरू हुआ है विजया।" निशा ने हँसते हुए कहा। "अब तो तुम्हें इसी हालत में सारे कपड़े सुखाने पड़ेंगे।"
और ये कहते हुए, निशा ने गीले कपड़ों की बाल्टी विजय के पास रख दी। निशा ने विजय के पास आते हुए कहा। "अभी तो मैंने तुम्हें बताया भी नहीं है कि तुम्हें कपड़े कैसे फैलाने हैं।"
"कैसे फैलाने हैं?" विजय ने डरते-डरते पूछा। उसकी आवाज़ में अब भी घबराहट साफ़ झलक रही थी।
"अरे बहुत आसान है।" निशा ने शरारती अंदाज़ में कहा। "तुम्हें बस इतना करना है कि एक-एक करके सारे कपड़े उठाओ, उन्हें हवा में लहराओ और फिर रस्सी पर डाल दो।"
"लेकिन दीदी... अगर हवा से मेरी स्कर्ट फिर से उड़ गई तो?" विजय ने अपनी आवाज़ में दहशत के साथ पूछा।
"तो उड़ जाने दो ना।" निशा ने लापरवाही से जवाब दिया। "इसमें शर्माने की क्या बात है?तुम्हें ही हल्के कपड़े पहनने थे लेकिन इतना आसान थोड़ी ना होगा इन्हें पहनना।"
विजय समझ गया कि निशा जानबूझ कर उसे तंग कर रही है। लेकिन उसके पास और कोई चारा नहीं था। उसे निशा की हर बात माननी पड़ रही थी, चाहे वो कितनी भी शर्मनाक क्यों न हो।
विजय ने कांपते हाथों से एक-एक करके गीले कपड़े उठाए और उन्हें हवा में लहराने लगा। हवा वाकई में बहुत तेज़ चल रही थी और उसकी स्कर्ट बार-बार उड़ने की कोशिश कर रही थी। विजय अपनी स्कर्ट को दोनों हाथों से जकड़े हुए था, लेकिन उसे डर था कि कहीं उसकी स्कर्ट फिर से न उड़ जाए।
निशा विजय को इस हालत में देखकर बहुत खुश हो रही थी। वो ज़ोर-ज़ोर से हँस रही थी और विजय का मज़ाक उड़ा रही थी।
"अरे वाह विजया! क्या खूब कपड़े फैला रही हो!" निशा ने ताली बजाते हुए कहा। "ऐसे ही करते रहो। आज तो तुमने मेरा दिल जीत लिया।"
विजय मन ही मन बहुत शर्मिंदा महसूस कर रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो कब तक इस यातना को सहन कर पाएगा।
विजय को इस तरह शर्मिंदा होते देखकर निशा को बहुत मज़ा आ रहा था।
"क्या हुआ विजया, शरमा गई?" निशा ने विजय को चिढ़ाते हुए कहा। "अरे अभी तो मज़ा शुरू हुआ है।"
"जल्दी करो विजया, मुझे नीचे और भी काम है।" निशा ने कहा।
विजय ने हिम्मत करके एक-एक करके कपड़े रस्से पर फैलाने शुरू किए।
"और हाँ विजया, ध्यान रखना, कपड़े ठीक से फैलाना।" निशा ने ताना मारते हुए कहा। "कहीं ऐसा न हो कि हवा से तुम्हारी ये प्यारी सी स्कर्ट भी उड़ जाए।"
विजय मन ही मन रो रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो निशा के इस अत्याचार से कब छुटकारा पायेगा।
अब निशा को दूसरा भी ऐसा घर का काम ढूंढना था जिससे विजय को बिना पैन्टी की स्कर्ट मे परेशान कर सके।
"विजया, अब नीचे आ जाओ। मुझे तुम्हारी मदद चाहिए।" निशा ने नीचे से आवाज़ लगाई।
विजय ने राहत की साँस ली। आखिरकार, उसे इस यातना से छुटकारा मिल गया। वो जल्दी से नीचे उतरा और निशा के कमरे में चला गया।
"क्या हुआ दीदी? क्या काम है?" विजय ने थोड़ी राहत भरी आवाज़ में पूछा।
"अरे बस, थोड़ा सामान उठाना है।" निशा ने कहा। "ये लो, इस बक्से को उठाकर अलमारी के ऊपर रख दो।"
विजय ने जैसे ही बक्सा उठाने के लिए झुका, उसकी स्कर्ट फिर से ऊपर उठ गई। और ठंडी हवा ने एक बार फिर से उसके प्राइवेट पार्ट को छू लिया। शर्म से उसका चेहरा एक बार फिर लाल हो गया।
निशा की नज़रें विजय की बेचैनी पर टिकी थीं, उसे विजय को इस तरह तड़पाने में एक अजीब सा मज़ा आ रहा था। "चलो, अब किचन में बर्तन धो लो। " निशा ने आदेश दिया। विजय लाचार था, वो चुपचाप किचन में चला गया और बर्तन धोने लगा। झुकते-उठते उसकी स्कर्ट बार-बार ऊपर उठ जाती, जिससे उसे और भी शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। निशा किचन के दरवाज़े पर खड़ी होकर ये सब देख रही थी और मन ही मन मुस्कुरा रही थी। "अच्छा लग रहा है ना विजया? अब समझ आया घर के काम कैसे होते हैं?" निशा ने व्यंग्य किया। विजय कुछ नहीं बोला, बस आँखों में आँसू भरकर बर्तन धोता रहा। उसे लगा जैसे ये दिन कभी खत्म ही नहीं होगा।
Comments
Post a Comment