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रस्सियों का बंधन और नाचने की सजा - निशा का शातिर दिमाग...

 विजय मन ही मन बहुत पछता रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उसने ऐसा क्या कर दिया जो निशा उसे इतना परेशान कर रही है।

निशा, एक शरारती मुस्कान लिए, विजय के पास पहुँची। उसके हाथों में एक मोटी रस्सी थी, जिसकी गांठें देखकर ही विजय का दिल धक-धक करने लगा था। निशा ने विजय को कुर्सी पर बैठाया फिर कुर्सी से बाँधना शुरू कर दिया। पहले उसने उसके हाथ कुर्सी के पीछे कसकर बाँध दिए, रस्सी इतनी कसी हुई थी कि विजय को लगा उसके हाथों का खून जम जाएगा। फिर उसने विजय के पैर बाँध दिए, हर गांठ के साथ विजय की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। विजय को ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी जाल में फँस गया हो, एक अजीब सी घुटन उसके सीने में दस्तक दे रही थी।

उसके बाद निशा ने रस्सी को उसकी छाती के चारों ओर कसकर घुमा दिया। रस्सी इतनी कसी हुई थी कि विजय को सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी। अंत में, निशा ने रस्सी को विजय की पीठ के पीछे ले जाकर कुर्सी से बाँध दिया ताकि विजय हिल भी ना सके।

पूरी तरह से बंधे हुए विजय की नजरें अब निशा पर टिकी थीं। उसकी आँखों में डर और बेबसी साफ झलक रही थी, उसका चेहरा पसीने से तर था, और उसकी साँसें तेज़ हो गई थीं।

"डरो मत बीबी जी, ये तो बस एक खेल है," निशा ने शरारत भरे लहजे में कहा, उसकी आँखें विजय की घबराहट भरी आँखों में देख रही थीं। विजय को इस तरह असहाय और बंधा हुआ देखकर निशा को बहुत हंसी आ रही थी, उसके होंठों पर एक शरारती मुस्कान फैल गई।
"कैसा लग रहा है, बीबी जी?" निशा ने विजय से पूछा, उसकी आवाज़ में एक शातिर मुस्कान थी।

"अच्छा नहीं लग रहा है," विजय ने उदास और घबराहट भरे चेहरे से कहा, "मुझे खोल दो ना,जानू प्लीज़।"

"अरे, अभी तो गेम शुरू भी नहीं हुआ है," निशा ने शरारती अंदाज़ में कहा, उसकी आँखों में एक चमक थी जो विजय को समझ नहीं आ रही थी। "और तुम अभी से ही हार मान रहे हो? ये तो गलत बात है। हार तो मानने का नाम ही नहीं लेना चाहिए, खासकर जब तक खेल खत्म न हो जाए।"

"लेकिन ये गेम तो बहुत मुश्किल है," विजय ने कहा, उसकी आवाज़ में एक अनजाना डर साफ़ झलक रहा था। "मैं एक घंटे में कैसे खुल पाऊंगा? ये तो नामुमकिन सा लगता है।" उसे समझ नहीं आ रहा था कि निशा आखिर कर क्या रही है, और ये सब क्यों कर रही है।

"अरे, तुम कोशिश तो करो," निशा ने कहा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सा उत्साह था। "हो सकता है कि तुम जीत जाओ। और अगर नहीं भी जीते, तो कम से कम कोशिश तो करोगे।" उसकी बातों में एक अजीब सी धमकी थी जो विजय के दिल को धड़का रही थी।

"अब मैं तुम्हारे मुँह को बाँधूंगी ताकि तुम कुछ बोल ना पाओ," निशा ने अचानक कहा, और विजय को समझ में आ गया कि अब कुछ बुरा होने वाला है। उसने विरोध करने की कोशिश की, लेकिन निशा ने उससे पहले ही एक रुमाल लेकर उसे फोल्ड करके उसके मुंह में डाल दिया। विजय ने छूटने की कोशिश की, लेकिन निशा ने उसके मुंह पर एक गुलाबी टेप चिपका दिया।


अब विजय पूरी तरह से लाचार था। वह न तो हिल सकता था और न ही बोल सकता था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी बुरे सपने में फंस गया हो। डर उसके चारों ओर मंडरा रहा था, और उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।

निशा एक काला दुपट्टा उसे दिखाते हुए आगे बड़ी और उसकी आँखों पर भी बाँध दिया। अब अंधेरा ही अंधेरा था, और डर और भी बढ़ गया था। विजय को समझ नहीं आ रहा था कि निशा उसके साथ क्या करने वाली है, और ये सब क्यों हो रहा है।

"अब मैं तुम्हें एक घंटे के लिए अकेला छोड़ रही हूँ," निशा ने कहा, "अगर तुम एक घंटे में खुद को खोलने में कामयाब हो गए, तो तुम जीत जाओगे। और अगर नहीं, तो..."

निशा ने अपनी बात पूरी नहीं की, लेकिन उसकी आँखों में एक शरारती चमक थी जिससे विजय का दिल दहल गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि निशा उसके साथ ऐसा क्यों कर रही है।

"चिंता मत करो, मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगी," निशा ने विजय के मन की बात जैसे पढ़ ली हो, "बस थोड़ी सी मस्ती करना चाहती हूँ।"

"जानू, ये गलत है! मुझे खोल दो!" विजय चिल्लाया, लेकिन उसकी आवाज़ मुहँ में ही दब कर रह गई। यह कहकर निशा कमरे से बाहर चली गई और दरवाजा बंद कर दिया। लकड़ी के दरवाज़े ने एक खोखली, निर्णायक आवाज़ की, जो विजय के कानों में गूंजती रही। विजय अकेला रह गया, डर और बेबसी से घिरा हुआ। चारों दीवारें उस पर टूट पड़ रही थीं,  उसे एक ऐसे पिंजरे में कैद कर रही थीं जहाँ से भागना नामुमकिन था।

वह न तो देख सकता था, न बोल सकता था। क्योंकि वो भारी साड़ी पहना था तो उसे और मुश्किल हो रही थी।  साड़ी का रेशमी कपड़ा, जो कभी आकर्षक और मोहक लगता था, अब  उसे घुटन और उलझन का एहसास करा रहा था। उसकी छटपटाहट से उसकी पायलें और चूडियाँ काफी आवाज कर रही थीं जो कमरे में एक अलग ही संगीत पैदा कर रही थीं। यह एक विचित्र सिम्फनी थी - पायल की झंकार और चूड़ियों की खनक -  जो उसकी लाचारी की गूंज को और भी तेज कर रही थी।

विजय को अपनी ही साँसों की आवाज़ सुनाई दे रही थी जो उसके दिल की धड़कन की गति बयान कर रही थी। हर एक सांस एक संघर्ष थी, उसके सीने में दर्द की एक लहर दौड़ा देती थी। समय धीरे-धीरे रेंग रहा था। हर एक मिनट एक घंटे जैसा लग रहा था।

अब बारी थी रस्सियों को खोलने की जो कि नामुमकिन था क्योंकि उसके हाथ इतने कसकर बंधे हुए थे कि थोड़ा सा भी हिलाना भी मुश्किल था। रस्सियों ने उसकी त्वचा में गहरे निशान बना दिए थे, जो उसके दर्द और लाचारी की निशानी थे। उसने अपने शरीर को अलग-अलग दिशाओं में घुमाने की कोशिश की ताकि रस्सियाँ ढीली हो जाएँ लेकिन  सब बेकार। निशा ने उसे बहुत ही चालाकी से बांधा था। हर गाँठ उसकी चालाकी का सबूत थी। उसे एहसास हुआ कि खुद को छुड़ाना लगभग असंभव है। निराशा की एक लहर ने उसे अपनी चपेट में ले लिया, उसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया जैसे एक तूफान एक नाजुक फूल को कुचल देता है।

उसने निशा के इरादों के बारे में सोचना शुरू कर दिया। वो ऐसा क्यों कर रही थी? क्या ये सिर्फ एक खेल था या कुछ और? क्या वो उसे सजा देना चाहती थी? लेकिन किस बात की? उसके मन में  सवालों का तूफान उठ रहा था और डर उसे अंदर ही अंदर खाए जा रहा था। एक बात थोड़ी ठीक हो गई थी कि इतना हिलने की वजह से आँखों की पट्टी थोड़ी हिल गई जिसकी वजह से उसे थोड़ा थोड़ा धुँधला टाइप का दिखने लगा था।

कमरे की खामोशी में, उसे अपनी साँसों और धड़कनों के अलावा कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। समय मानो थम गया था। विजय को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या सोचे, क्या करे।

तभी उसकी नज़र अपनी साड़ी के एक पल्लू पर पड़ी जो कुर्सी के नीचे से झांक रहा था। उस पल उसके दिमाग में एक योजना कौंधी। उसने सोचा, "क्या इस पल्लू की मदद से मैं अपने हाथ खोल सकता हूँ?" यह विचार आते ही उसके अंदर एक उम्मीद की किरण जागी।

उसने बड़ी सावधानी से, धीरे-धीरे अपने बंधे हुए हाथों को उस पल्लू तक पहुँचाने की कोशिश शुरू कर दी। उसकी हरकत इतनी धीमी और नियंत्रित थी जैसे कोई शिकारी अपने शिकार पर झपटने से पहले पल-पल की चाल सोचता है। पल्लू तक पहुँचने के लिए उसे अपने शरीर को असहज तरीके से मोड़ना पड़ रहा था जिससे उसके शरीर में चुभन  होने लगी थी। हर एक हरकत दर्द दे रही थी लेकिन उसके मन में एक ही दृढ़ निश्चय था - अपने हाथों को खोलना।

आखिरकार, बहुत मुश्किल से, उसका हाथ पल्लू को छू गया। यह स्पर्श उसे एक नई आशा दे रहा था। उसने पल्लू को अपने बंधे हुए हाथों पर रगड़ना शुरू कर दिया। उसकी योजना थी कि पल्लू से रस्सी को रगड़-रगड़ कर ढीला कर देगा। लेकिन रस्सी काफी मजबूत थी और आसानी से ढीली होने वाली नहीं थी। उसकी हर कोशिश रस्सी के आगे बेकार साबित हो रही थी।

समय बहुत तेजी से बीत रहा था। विजय को लग रहा था कि एक घंटा तो क्या, वो पूरी जिंदगी भी ऐसे ही बंधा हुआ बिता देगा। उसके माथे पर पसीना आ गया था और उसकी साँसें और भी तेज हो गई थीं।

तभी उसे एक आइडिया आया। उसने सोचा कि

अगर वो पल्लू को रस्सी पर घिसने के बजाय उसमें फंसाकर खींचे तो शायद रस्सी ढीली हो जाए। यह सोचकर विजय ने पूरी ताकत से पल्लू को रस्सी में फंसाकर खींचना शुरू कर दिया। उसे उम्मीद थी कि शायद इस तरह रस्सी ढीली पड़ जाए और वह अपने हाथ खोल सके। पर उसकी सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया। रस्सी ढीली होने की बजाय और टाइट हो गई। विजय की कोशिशों से हालत और बदतर होती जा रही थी। अब साड़ी का पल्लू भी उसकी इस जद्दोजहद में साथ छोड़ रहा था। रेशमी पल्लू धीरे-धीरे फटने लगा था और विजय को डर था कि कहीं उसका यह आखिरी सहारा भी खत्म न हो जाए। काफी देर तक विजय ने अलग-अलग तरीकों से रस्सियों को खोलने की कोशिश की, लेकिन वह हर बार नाकाम रहा। थक हार कर उसे समझ आ गया था कि निशा ने उसे बहुत ही कसकर और चालाकी से बाँधा है।

एक घंटा लगभग बीत ही गया था। "अब क्या होगा?" विजय ने मन ही मन सोचा।

तभी उसे कमरे में किसी के आने की आहट सुनाई दी।तभी अचानक उसके मुँह से टेप और आँखों से से पट्टी हटा दी गई और उसे एक धुंधली सी आकृति दिखाई दी।

"निशा?" विजय ने पूछा।

"हाँ बीबी जी, मैं ही हूँ," निशा हँसते हुए बोली।

"तुमने मुझे बहुत डरा दिया," विजय ने राहत की साँस लेते हुए कहा।

उसने देखा कि विजय अब भी बंधा हुआ है।

"लगता है तुम हार गई ,बीबी जी," निशा ने विजय के पास आते हुए कहा।

"देखा, मैंने कहा था ना कि तुम ये गेम नहीं जीत पाओगे," निशा ने विजय की आँखों में देखते हुए कहा, "अब बताओ, हारने वाले को क्या सजा मिलनी चाहिए?"

विजय निशा की आँखों में देख रहा था। उसकी आँखों में अब डर नहीं, बल्कि एक अजीब सी बेचैनी थी।

"जानू, प्लीज मुझे खोल दो," विजय ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, "मुझे बहुत दर्द हो रहा है।"

"दर्द?" निशा ने विजय की आँखों में देखते हुए कहा, "क्या तुम्हें वाकई दर्द हो रहा है?"

"हाँ जानू," विजय ने कहा, "बहुत दर्द हो रहा है।"

निशा कुछ देर चुप रही। पर इतनी जल्दी क्या है पहले तुम्हें हारने की सजा तो बता दूँ। फिर उसने कहा कि सजा ये है कि मेरी बीबी जी को अपने जानू के लिए नाचना पड़ेगा। विजय ने बोला कि जो करवाना हो करवा लेना पर पहले वो उसे खोल दे।

निशा ठहाका मारकर हंसी, "अरे इतनी जल्दी नहीं बीबी जी! पहले पूरी बात तो सुनो की क्या क्या पहन कर नाचना है और कैसे कैसे नाचना है।" विजय को समझ नहीं आया, उसने उलझन भरी निगाहों से निशा को देखा और पूछा, "मतलब?" निशा ने शरारती अंदाज में जवाब दिया, "अब मैं अपनी बीबी जी को साड़ी मे थोड़ी ना डांस करवाऊंगी, सोच रही हूँ केवल ब्रा और पैंटी में कैसा रहेगा।"

ये सुनते ही विजय के चेहरे का रंग उड़ गया, मानो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई हो। उसने हकलाते हुए कहा, "जानू, प्लीज... ये तुम क्या कह रही हो? तुम जानती हो ना ये मुमकिन नहीं है।"

"अरे बाबा, डरते क्यों हो?" निशा ने विजय के गाल खींचते हुए कहा, "मैं तो बस तुम्हारे साथ थोड़ी मस्ती कर रही थी।"

"मस्ती?" विजय ने गुस्से से कहा, "ये तुम्हें मस्ती लगती है? ... और तुम ये सब सोच भी कैसे सकती हो?"

"अरे यार, इतना गुस्सा क्यों करते हो?" निशा ने बेफिक्री से कहा, "तुम्हें तो पता है कि मुझे शरारत करना कितना पसंद है। मैं बस तुम्हें चिढ़ा रही थी।" विजय अब भी हक्का-बक्का था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि निशा की इस हरकत पर कैसे प्रतिक्रिया दे।

"लेकिन..." विजय कुछ कहना चाहता था, लेकिन निशा ने उसे टोकते हुए कहा, "अच्छा बाबा, अब गुस्सा मत करो।उसके लिए अलग ड्रेस उसने सिलेक्ट की है और बड़े बड़े घुँघरू भी।"

यह कहकर निशा ने विजय को रस्सियों से खोल दिया।"अब खुश?" निशा ने पूछा।

विजय कुछ नहीं बोला। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे।

वह बस निशा को देखता रहा। उसकी आँखों में अब भी गुस्सा और नाराजगी साफ झलक रही थी। "अरे बाबा, ऐसे क्या देख रहे हो?" निशा ने विजय की ठुड्डी पकड़ कर ऊपर उठाते हुए कहा, "गुस्सा हो गए हो क्या?" विजय ने कुछ नहीं कहा और अपना मुँह घुमा लिया। "अच्छा ठीक है, सॉरी," निशा ने विजय के गाल पर एक चुम्बन करते हुए कहा, "अब तो मान जाओ।"

"निशा, तुम जानती हो कि मैं तुम्हारी इन हरकतों से डर जाता हूँ," विजय ने गंभीर स्वर में कहा, "मुझे समझ नहीं आता कि तुम ऐसा क्यों करती हो?"

"अरे बाबा, डरते क्यों हो?" निशा ने विजय को अपनी बाँहों में भरते हुए कहा, "मैं तो तुम्हारी जानू हूँ। तुम्हें पता है ना कि मैं तुम्हें कभी कुछ नहीं होने दूंगी?"

"हाँ, मुझे पता है," विजय ने निशा की आँखों में देखते हुए कहा, "लेकिन फिर भी..."

"कोई फिर भी नहीं," निशा ने विजय के होंठों पर अपनी उंगली रखते हुए कहा, "अब भूल जाओ ये सब।" अब निशा ने थोड़ा सा पति वाला रोल अदा किया और विजय को अपनी बाँहों में कस लिया और उसके माथे पर एक चुम्बन किया। विजय भी निशा की बाहों में खो गया। उसे निशा की बाहों में सुकून मिल रहा था। निशा

"लेकिन बीबी जी " निशा ने अचानक शरारती लहजे में कहा, "डांस तो तुम्हें करना ही पड़ेगा।"

विजय ने निशा की आँखों में देखा। उसकी आँखों में शरारत और प्यार एक साथ झलक रहे थे। उसे समझ आ गया कि निशा से जीतना मुश्किल है।

"ठीक है, जानू," विजय ने हार मानते हुए कहा, "जैसा तुम कहो।"

निशा विजय की बात सुनकर खिलखिलाकर हंस पड़ी। उसे विजय को इस तरह हार मानते हुए देखना अच्छा लग रहा था। "तुम जानते हो ना, बीबी जी," निशा ने विजय की नाक पर प्यार से चूमा, "तुम्हें मेरे हर खेल में मेरा साथ देना होगा।"

विजय ने निशा की आँखों में देखा। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि निशा के मन में क्या चल रहा है।

"चलो अब," निशा ने विजय का हाथ पकड़ते हुए कहा, "तुम्हें तैयार होना है मेरे लिए।"

विजय थोड़ा घबरा गया था, लेकिन निशा के उत्साह को देखते हुए उसने भी हाँ में हाँ मिला दी। निशा उसे लेकर कमरे में गई और अलमारी खोल दी। अलमारी रंग बिरंगे कपड़ों से भरी हुई थी। निशा ने एक-एक करके कई सारे कपड़े निकाले और विजय को दिखाते हुए बोली, "देखो बीबी जी, ये सारे कपड़े मैंने तुम्हारे लिए ही चुने हैं। बताओ, कौन सा ड्रेस पहनकर तुम मेरे लिए डांस करोगे?"

विजय ने डरते-डरते कपड़ों पर नज़र डाली। वहाँ पर हर तरह के ड्रेसेस थे - अलग अलग रंग की अनारकली ड्रेस और दो तीन लहंगे और गाउन लेकिन इनमें से एक भी ड्रेस ऐसा नहीं था जो विजय ने कभी पहनने की सोची हो। उसे तो साड़ी पहनकर भी अजीब लगता था, और अब निशा उसे ये सब पहनाकर डांस करवाना चाहती थी!

"क्या हुआ बीबी जी, पसंद नहीं आया कुछ?" निशा ने विजय का चेहरा पढ़ते हुए पूछा।

"अरे नहीं जानू, ऐसा नहीं है," विजय ने झट से कहा, "बस... मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या पहनूँ।"

"अरे बाबा, इतना सोचने की क्या बात है?" निशा ने एक शरारती मुस्कान के साथ कहा, "जो भी ड्रेस तुम्हें पसंद आये, पहनो। लेकिन हाँ, एक बात याद रखना - जितना चमकीला और सुंदर ड्रेस होगा, उतना ही अच्छा लगेगा।"

विजय समझ गया कि निशा उसे आज बिल्कुल भी नहीं छोड़ने वाली है। उसे जो करना है, वो करके ही रहेगी। उसने एक गहरी साँस ली और सोचा, "चलो, जो होगा देखा जाएगा।"

"अच्छा ठीक है, जानू," विजय ने एक हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, "तुम जो कहो।"

निशा ने विजय की बात सुनकर एक शरारती मुस्कान दी और शरारत से भरी आँखों से उसे देखते हुए कहा कि वो जिस गाने पे डांस कराना चाहती है उसके हिसाब से ही ड्रेस सिलेक्ट करेगी। फिर वो गाना सोचने लगी जो कि जिसमें नायिका ने भारी लहँगा और खूब सारे गहने पहने हों।

निशा कुछ सोचते हुए धीरे से बोली, "हम्म... मुझे 'हम साथ साथ हैं' फिल्म का 'मैया यशोदा ये तेरा कन्हैया' गाना याद आ रहा है। इस गाने में करिश्मा कपूर ने कितना सुंदर लहंगा पहना था और कैसे कमाल का डांस किया था।"  निशा की आँखों में चमक आ गई, "हाँ, यही गाना परफेक्ट रहेगा!"

विजय ने घबराहट भरी नज़र से निशा को देखा।उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या कहे। "लेकिन जानू," विजय ने हिचकिचाते हुए कहा, "मैं तो डांस करना जानता ही नहीं।  और फिर ये गाना तो..."

निशा ने विजय की बात काटते हुए कहा, "अरे बाबा, डांस सीखने में क्या रखा है?  मैं तुम्हें सिखा दूँगी।  और रही बात गाने की, तो ये गाना तो बहुत ही आसान है।  बस थोड़ा सा ठुमका लगाना है और हाथों को हिलाना है।"  निशा ने उत्साह से कहा, "चलो, मैं तुम्हें ड्रेस दिखाती हूँ।"

निशा ने अलमारी से एक चमकीला नारंगी रंग का लहंगा निकाला।  लहंगे पर सुनहरे रंग की कढ़ाई की हुई थी और उस पर छोटे-छोटे घुंघरू लगे हुए थे।  साथ में उसने मैचिंग का चोली और दुपट्टा भी निकाला।  "देखो बीबी जी, कैसा है ये लहंगा?गाने मे भी तो नारंगी लहँगा था उसी रंग का है बहुत सुन्दर है। " निशा ने लहंगा विजय को दिखाते हुए पूछा।

विजय ने लहंगे को देखकर अपनी आँखें बंद कर लीं।  उसे ये सब बिल्कुल भी पसंद नहीं आ रहा था।  "जानू, प्लीज... मुझे ये सब नहीं करना है," विजय ने मिन्नत करते हुए कहा, "मुझे बहुत शर्म आ रही है।"

निशा ने विजय के पास आकर उसे अपनी बाहों में भर लिया।  "अरे बाबा, शर्माओ मत।"  निशा ने प्यार से कहा, "ये तो बस एक खेल है।  और फिर मैं तुम्हारे साथ हूँ ना।  तुम्हें डरने की कोई ज़रूरत नहीं है।"

"लेकिन..." विजय कुछ कहना चाहता था, लेकिन निशा ने उसके होंठों पर अपनी उंगली रख दी।  "शांत... अब कोई बहस नहीं।"  निशा ने दृढ़ता से कहा, "तुम्हें ये लहंगा पहनना ही होगा और मेरे लिए डांस करना होगा।"

विजय समझ गया कि अब बहस करने का कोई फायदा नहीं है। निशा ने मन बना लिया है तो वो जरूर करा कर ही दम लेगी। उसने एक गहरी साँस ली और कहा, "ठीक है जानू, जैसा तुम कहो।"

"वाह! मेरी बीबी जी मान गई!" निशा खुशी से झूम उठी, "अब तो बीबी जी का डांस देखने लायक होगा।"

निशा ने विजय को लहंगा पकड़ाते हुए कहा, "जल्दी से बदल लो, मैं इंतज़ार कर रही हूँ।"

निशा ने  वो लहंगा विजय को पकड़ाते हुए कहा, "जल्दी से जाओ और चेंज करके आओ।" पर विजय ने मासूमियत से कहा कि उसे लहँगा चोली पहनना नहीं आता।

निशा ने विजय की बात सुनकर ठहाका लगाया और कहा, "अरे मेरी प्यारी बीबी जी, घबराओ मत, मैं हूँ ना। मैं तुम्हें पहनना सिखा दूंगी।"

और फिर निशा ने विजय को अपने साथ बाथरूम में चलने को कहा। विजय थोड़ा झिझका, लेकिन निशा के जिद के आगे उसकी एक न चली। बाथरूम में घुसते ही विजय की नज़र शीशे में अपने प्रतिबिम्ब पर पड़ी। उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था कि ये वो ही है।

"क्या देख रहे हो बीबी जी, खुद को पहचान नहीं पा रहे?" निशा ने विजय को चिढ़ाते हुए कहा, "अभी तो बस शुरुआत है, मेरी रानी बनने के सफर की।"

यह कहकर निशा ने विजय की साड़ी जो उसने पहनी थी वो उतार दी।

और विजय को वहीं खड़ा छोड़कर खुद ही लहँगा और चोली उठाने लगी। विजय शर्माते हुए अपनी आँखें बंद करने लगा। निशा ने विजय की शर्म देखी तो उसे और मजा आने लगा। उसने विजय को चिढ़ाते हुए कहा, "अरे बीबी जी, शर्मा क्यों रहे हो? अभी तो असली मज़ा बाकी है।"

यह कहकर निशा ने विजय के हाथों में चोली पकड़ा दी और खुद उसके पीछे खड़ी होकर लहँगा पहनाने लगी। विजय को निशा की साँसें अपनी नंगी पीठ पर महसूस हो रही थीं।

उसकी हथेलियों की गर्माहट से विजय का पूरा शरीर सिहर उठा। लहँगा पहनाने के बाद निशा ने विजय को पलटकर उसको अपनी तरफ किया और धीरे-धीरे उसकी बाँहों में डालकर चोली पहना दी।

"देखा, कितना आसान था," निशा ने मुस्कुराते हुए कहा, "वाह बीबी जी, आप तो बिलकुल रानी लग रही हो!" निशा ने विजय की तारीफ करते हुए कहा।

निशा ने विजय को ड्रेसिंग टेबल के सामने बिठाया और  हेवी मेकअप करना शुरू कर दिया। उसने सबसे पहले विजय के चेहरे को अच्छी तरह साफ किया और मॉइस्चराइजर लगाया। फिर फाउंडेशन ब्रश की मदद से उसके चेहरे पर फाउंडेशन लगाया और उसे अच्छे से ब्लेंड किया ताकि चेहरा एकदम बेदाग लगे। इसके बाद उसने विजय की आँखों में काजल और आईलाइनर लगाया, जिससे उसकी आँखें बड़ी और सुंदर लगने लगीं। फिर गालों पर गुलाबी रंग का ब्लश लगाया जिससे उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक आ गई। आखिर में निशा ने विजय के होंठों पर गुलाबी रंग की लिपस्टिक लगाई जो उसके रूप को और भी निखार रही थी। फिर उसके बालों को सजाने के लिए ढेर सारे गहने निकाले। विजय चुपचाप बैठा निशा को अपना श्रृंगार करते हुए देख रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या महसूस करे। एक तरफ उसे निशा की यह बचकानी हरकतें अच्छी लग रही थीं, तो दूसरी तरफ उसे खुद पर हँसी भी आ रही थी।

निशा ने विजय के बालों को जूड़ा बनाकर उसमें गजरा लगाया और माथे पर बिंदी और टीका सजाया। फिर उसने विजय को ध्यान से देखा और याद किया कि उस गाने में गहनों को कैसे पहनाया गया था।इसके साथ ही उसने बहुत से गहने अलमारी से निकाले - भारी हार, झुमके, चूड़ियाँ, बाजूबंद, कमरबंद, पायल और मांग टीका। यह देखकर विजय के होश उड़ गए।

"जानू, ये सब मुझे पहनने पड़ेंगे?" विजय ने घबराकर पूछा।"बिलकुल बीबी जी," निशा ने शरारती अंदाज में कहा।

निशा ने एक-एक करके सारे गहने विजय को पहनाने शुरू कर दिए। पहले उसने विजय के कानों में भारी-भारी झुमके पहनाए, जिनके वजन से विजय को लगा जैसे उसके कान फट जाएँगे। सोने के बने ये झुमके जड़ाऊ नगों से जड़े हुए थे और इतने भारी थे कि विजय को अपनी गर्दन पीछे की ओर झुका कर रखनी पड़ रही थी ताकि उनके वजन को संभाल सके। फिर उसने विजय की गर्दन में हार पहनाया, जो इतना भारी था कि विजय का सिर आगे की ओर झुक गया। हार में जड़े हुए मोती और रत्न इतने बड़े थे कि वे विजय के गले में चुभ रहे थे।फिर उसने विजय की कलाईयों में चूड़ियाँ पहनाई, जो इतनी तंग थीं कि विजय को लगा जैसे उसकी कलाईयों में खून का दौरा बंद हो गया हो। चूड़ियों की आवाज़ से पूरा कमरा गूंज रहा था और विजय को अपनी ही साँसों की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी। फिर निशा ने विजय की बाहों में बाजूबंद और उंगलियों में अंगूठियां पहनाई। बाजूबंद इतने कसे हुए थे कि विजय को अपनी बाँहों को हिलाने में भी दिक्कत हो रही थी।  विजय को अब तक सांस लेने में तकलीफ होने लगी थी। निशा ने जब कमरबंद पहनाने के लिए कहा तो विजय ने इंकार कर दिया।

लेकिन निशा कहाँ मानने वाली थी। उसने कहा, "अरे बीबी जी, डरो मत, ये कमरबंद आपकी सुंदरता में चार चांद लगा देगा।" और फिर उसने जबरदस्ती विजय को कमरबंद पहना दिया। कमरबंद इतना टाइट था कि विजय को अपनी साँस रोकनी पड़ रही थी।आखिर में निशा ने विजय के पैरों में पायल पहनाई। पायल की झंकार से विजय को गाने की धुन सुनाई देने लगी।

"नहीं जानू, प्लीज! ये सब तो बहुत ज्यादा हो रहा है।" विजय ने गिड़गिड़ाते हुए कहा। "मुझे घुटन हो रही है और मैं अपने शरीर पर इतना भार नहीं उठा सकता।"

"अरे मेरी प्यारी बीबी जी, डरो मत।" निशा ने प्यार से कहा, "अभी तो आपका श्रृंगार अधूरा है। ये सब तो एक सुहागन के लिए जरुरी है।"निशा ने एक भारी भरकम नथ भी निकाला। विजय ने जब नथ देखा तो घबराकर बोला, “अरे नहीं जानू, यह तो बहुत ज़्यादा हो जाएगा।” निशा ने शरारती हंसी हंसते हुए कहा, “अरे मेरी प्यारी बीबी जी,ये तो बहुत ही ज्यादा जरूरी है। ” और यह कहते हुए निशा ने विजय की नाक में नथ पहना दिया। नथ पहनते ही विजय का चेहरा और भी ज़्यादा खिल उठा। निशा विजय को देखकर खुद को रोक न सकी और उसके गालों को चूमते हुए बोली, “वाह मेरी बीबी जी बिल्कुल रानी साहिबा लग रही हो!”

अब बारी थी आखिरी चीज़ की जो कि था भारी भरकम दुपट्टा, जिसे निशा ने बड़े ही प्यार से उठाया। सिल्क का बना, जरी की कारीगरी से सजा ये दुपट्टा अपने आप में शाही ठाट-बाट का प्रतीक था। निशा ने सावधानी से विजय के सिर पर उसे डालते हुए कहा, "लो बीबी जी, अब आप नाचने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।"


दुपट्टा डालते ही विजय को ऐसा लगा जैसे उसके ऊपर किसी ने मखमल की भारी चादर डाल दी हो।  दुपट्टे का वज़न विजय के सिर पर ऐसा था मानो किसी ने पहाड़ रख दिया हो।  उसकी कमर झुकने लगी और उसने पास रखी मेज़ पर हाथ टिका कर खुद को संभाला।  निशा ने फ़ौरन विजय को सहारा दिया और कहा, " मेरी रानी साहिबा, शाही ठाट-बाट तो थोड़ा तो सहना ही पड़ेगा।"

निशा सजधज कर तैयार हुई अपनी 'रानी' को देखकर निशा खुशी से झूम उठी। "वाह बीबी जी! आप तो सचमुच की रानी लग रही हो!," निशा ने विजय को घुमाते हुए कहा।

निशा ने विजय को शीशे के सामने घुमाते हुए कहा, "देखो तो, आप कितनी प्यारी लग रही हो।"

विजय ने दर्पण में अपनी ही छवि को देखा, मानो कोई अजनबी उसे घूर रहा हो। नारंगी और सुनहरे रंग के भारी लहँगा ने उसके शरीर को एक अनोखा आकार दिया था,कढ़ाई वाले दुपट्टे ने उसके सिर को ढँका हुआ था, जिसके किनारे से झाँकते उसके बालों में सोने की सजावट चमक रही थी। गले में भारी हार, कानों में झूमर जैसे झुमके, नाक में नथ और माथे पर चाँद जैसा टीका - हर एक गहना उसे एक अलग ही दुनिया में ले जा रहा था। चेहरे पर किया गया श्रृंगार, आँखों में लगा काजल, गालों पर चढ़ा गुलाबी रंग, और होठों पर लगी लाल लाली, ने तो उसे पूरी तरह से बदल दिया था। वह एक स्त्री से कम नहीं लग रही थी, एक ऐसी स्त्री जो किसी राजसी घराने की रानी हो।

“तो रानी साहिबा, कैसी लगी अपनी ये शाही सजावट?” निशा ने शरारत भरी आवाज़ में पूछा, उसकी आँखों में चमक थी।

विजय कुछ नहीं बोला, बस अपनी ही छवि को देखता रहा, मानो उस अनजान चेहरे को पहचानने की कोशिश कर रहा हो।

"अरे वाह! मेरी रानी तो शर्मा रही है!" निशा ने विजय की चुप्पी तोड़ते हुए कहा, उसकी आवाज़ में हंसी और प्यार दोनों थे।

"ये... ये मैं हूँ?" विजय ने धीरे से पूछा, उसकी आवाज़ में अविश्वास और थोड़ी घबराहट थी।

"जी हाँ, मेरी प्यारी बीबी जी।" निशा ने हँसते हुए कहा। "

"अब बस एक चीज की कमी है," निशा ने सोचते हुए कहा। वो फिर से अलमारी के पास गई और उसने एक डिब्बा उठाया। उसे खोलते हुए निशा ने विजय को दिखाते हुए बोली, "और हाँ, यह रहा तुम्हारे लिए एक खास तोहफा"। डिब्बे में से बड़े-बड़े घुंघरू निकले। विजय उन्हें देखकर और भी घबरा गया।  "ये क्या है,जानू?" विजय ने डरते-डरते पूछा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सा कंपन था। "अरे बीबी जी, ये तो घुंघरू हैं," निशा ने हँसते हुए कहा, "इन्हें बाँध लो अपने पैरों में, ये तुम्हारे नाज़ुक पैरों की शोभा बढ़ाएंगे।" निशा ने घुंघरू विजय की तरफ बढ़ा दिए।  "लेकिन जानू, ये..." विजय कुछ कहना चाहता था, शायद विरोध करना चाहता था, लेकिन निशा ने उसे टोकते हुए कहा, "कोई लेकिन नहीं, बीबी जी। जल्दी से बाँध लो इन्हें।" विजय के पास और कोई चारा नहीं था।

उसने हिचकिचाते हुए घुंघरू लिए और उन्हें अपने पैरों में बांधने लगा । एक-एक घुंघरू को ध्यान से बांधते हुए उसकी नज़रें नीचे झुकी हुई थीं मानो किसी अनजान डर से घिरी हो।  घुंघरू की आवाज़ धीरे-धीरे कमरे में गूंजने लगी और फिर जैसे ही उसने अपने पैरों को थिरकाया, पूरा कमरा घुंघरूओं की मधुर ध्वनि से भर गया। "वाह! क्या बात है!" निशा ताली बजाते हुए बोली, उसकी आँखों में प्रशंसा झलक रही थी।


"तो तैयार हो जाइए मेरी रानी साहिबा," निशा ने शरारत से कहा, "आपका डांस देखने के लिए मैं बहुत उत्सुक हूँ।" फिर निशा ने टीवी मे यूट्यूब पर करिश्मा कपूर का "मैया यशोदा ये तेरा कन्हैया " वाला गाना लगाकर विजय से कहा, "बीबी जी थोड़ी देर बैठो और खुद को निहारो और जब तक मैं हाल कमरे को डांस के लिए सेट करके आती हूं तब तक थोड़े बहुत डांस स्टेप याद कर लो।"

और यह कहते हुए निशा झूमते हुए हाल की तरफ चल दी।  

विजय अपनी जगह पर खड़ा रह, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। उसकी नज़रें एक बार फिर शीशे पर टिक गईं। उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था कि वह विजय नहीं, कोई और है।"ये मैं ही हूँ या कोई और?" उसने धीरे से कानाफूसी की, उसकी आवाज घुंघरूओं की झंकार में डूब गई। तभी उसे याद आया कि निशा ने उसे डांस स्टेप याद करने को कहा है। वो टीवी पर गाना देखकर शर्माते हुए ये सोच रहा था कि वो कैसे करेगा ये डांस! यह तो उसने सोचा भी नहीं था। यह तो महिलाओं का नृत्य है। उसे तो स्टेप्स भी ढंग से नहीं आते। विचारों के जाल में उलझा विजय कुछ सोच पाता, उससे पहले ही निशा वापस आ गई।

"चलिए बीबी जी, अब देर किस बात की?" निशा ने विजय का हाथ थामते हुए कहा, "आपकी रानी साहिबा का इंतज़ार कर रहा है आपका नृत्य दरबार!"

हाल में पहुँचते ही विजय की नज़रें वहाँ के नज़ारे पर टिक गईं। निशा ने वाकई में महल जैसा माहौल बना दिया था। फर्श पर रंगोली सजी थी, चारों तरफ मोमबत्तियाँ जल रही थीं, और हल्का संगीत बज रहा था।हाल के एक कोने में स्पीकर रखा था जिससे निशा ने अपना मोबाइल कनेक्ट रखा था जिसमें से हल्की आवाज मे गाने की धुन बज रही थी।

निशा ने विजय का हाथ पकड़ा और उसे हॉल के बीचों बीच ले आई और गाने की तरह ही उसको घूंघट मे करके सामने बैठ गई और कहा "चलिए मेरी रानी साहिबा, अब तो अपना जलवा दिखाइए।"


विजय घबराए हुई था , उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। उसके पैरों में बंधे घुंघरू मानो उसके डर को और बढ़ा रहे थे। संगीत शुरू हुआ तो विजय ने कहा, "लेकिन जानू, मुझे तो डांस करना आता ही नहीं।"

"अरे मेरी प्यारी बीबी जी, घबराओ मत।" निशा ने विजय को हौसला देते हुए कहा, "बस अपने आप को संगीत के हवाले कर दो और जैसे मैं कहूँ, वैसे ही करना।"

और फिर धीरे-धीरे संगीत की धुन पर निशा ने विजय को घूमर के कुछ स्टेप्स सिखाने शुरू कर दिए। पहले तो विजय को बहुत अटपटा लग रहा था, लेकिन धीरे-धीरे वह निशा की बातों पर ध्यान देने लगा। निशा उसे घूमने, हाथों को लहराने, और आँखों से इशारे करने का तरीका सिखा रही थी। विजय भी पूरी कोशिश कर रहा था कि वह निशा के बताए अनुसार कर सके।

कुछ देर बाद, जब संगीत ने गति पकड़ी, तो विजय भी अपने आप को भूल गया। उसने खुद को संगीत के हवाले कर दिया और निशा के बताए अनुसार नाचना शुरू कर दिया। उसके पैरों में बंधे घुंघरू अब एक अलग ही धुन बना रहे थे। उसकी चाल में, उसके हाथों की लचक में, उसकी आँखों के इशारों में एक अलग ही नज़ाकत आ गई थी।

उसके हाथ हवा में लहराने लगे, उसकी कमर मटकने लगी, और उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान खिल उठी।  वह खुद को भूल गया था, अपनी असलियत भूल गया था। उसे बस इतना याद था कि वह एक रानी है, और उसे नृत्य करना है।

निशा ताली बजाते हुए विजय का उत्साह बढ़ा रही थी।  वह कभी "वाह बीबी जी, क्या बात है!" तो कभी "एक बार फिर से, ज़रा ठुमका लगाकर दिखाओ!" कहकर विजय को और भी झूमने पर मजबूर कर रही थी।

विजय अब पूरी तरह से मस्ती में डूब चुका था। वह कभी करिश्मा कपूर के स्टेप्स कॉपी करने की कोशिश करता, तो कभी अपने ही अंदाज़ में थिरकता।  उसके घुंघरूओं की झंकार, गाने की धुन, और निशा की तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हाल गूंज रहा था।

निशा विजय को देखकर हैरान रह गई। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि विजय इतनी खूबसूरती से डांस कर सकता है। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि विजय में यह हुनर भी छुपा हुआ है। वह विजय की अदाओं पर फिदा होती जा रही थी। निशा विजय को देखकर मुस्कुरा रही थी। उसे अपनी इस प्यारी रानी पर नाज था। विजय का डांस देखकर निशा को लगा जैसे वह कोई सपना देख रही हो। उसकी आँखों में खुशी के आँसू थे। विजय का डांस अब अपने चरम पर था। उसके हर एक इशारे, हर एक अदा में एक अलग ही नज़ाकत थी। घुंघरूओं की झंकार से पूरा घर गूंज रहा था। संगीत थमा तो विजय भी थम गया । उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं, माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं।


निशा दौड़कर विजय के पास आई और उसे गले लगा लिया। "वाह मेरी रानी साहिबा, आपने तो कमाल कर दिया!" उसने विजय के माथे को चूमते हुए कहा। विजय शरमा गई। उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था कि उसने इतना अच्छा डांस किया है।

"ये सब तो आपकी बदौलत हुआ जानू," विजय ने शरमाते हुए कहा, "आपने मुझे इतना अच्छा तैयार किया, इतना अच्छा माहौल बनाया और डांस स्टेप भी बढ़िया से सिखाये।"

"अरे मेरी प्यारी बीबी जी, आप तो ऐसे शर्मा रही हो जैसे सचमुच में रानी बन गई हों।" निशा ने हँसते हुए कहा।

"और हाँ," निशा ने अचानक याद करते हुए कहा, "अब तो अपनी रानी साहिबा को तोहफा भी मिलना चाहिए।"

तोहफा ये है कि आज रात का खाना उसे बनाने की जरूरत नहीं है वो ऑर्डर करके मंगा लेंगे

और हाँ, आज रात का खाना परोसने की ज़िम्मेदारी भी मेरी। मेरी रानी को तो थोड़ा आराम मिलना चाहिए।" विजय ने हँसते हुए कहा, "वाह, ये तो सचमुच इनाम जैसा है।"

फिर विजय ने प्यार से निशा की ओर देखते हुए कहा, "जानू, प्लीज खाना खाने से पहले मुझे इस भारी लहँगा चोली और गहनों से आजादी दे दो। इसे उतार दो क्योंकि यह बहुत भारी-भरकम है और मुझे परेशानी हो रही है। देखो मेरा चेहरा कितना थका हुआ लग रहा है, और पसीने से तर-बतर हो गया है। इतने भारी कपड़ों और गहनों के साथ खाना खाना भी मुश्किल होगा। " निशा ने शरारती मुस्कान दिखाते हुए और विजय की आँखों में देखते हुए कहा, "बस कुछ देर और झेल लो यह परेशानी, ताकि तुम्हें भी एहसास हो कि हम औरतों को क्या-क्या सहना पड़ता है। सोचो, पहले की रानियाँ तो पूरे दिन ऐसे ही भारी-भरकम कपड़ों और गहनों से लदी रहती थीं। उनके लिए तो यह रोज़ का काम था। और एक दुल्हन भी अपनी शादी की रात इतना ही भार, बल्कि उससे भी ज़्यादा भार सहन करती है।  यह तो बस कुछ घंटों की बात है,बीबी जी । थोड़ा सा सब्र रखो।"  निशा ने आगे कहा, "इसके बाद मैं इसे उतार दूँगी और हम आराम से खाना खाएंगे।" विजय ने निशा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, "लेकिन जानू, ये तो बहुत ज़्यादा हो जाएगा। मैं और देर तक ये सब पहन कर नहीं रह सकता और जानू, वो तो रानियाँ थीं, मैं तो सिर्फ़ आपकी बीबी जी हूँ।" विजय ने अपनी बात समझाने की कोशिश की।

"अच्छा जी, अब रानी बनकर नाच भी लिया, और रानी की तरह सजना पसंद नहीं है?" निशा ने नकली नाराज़गी दिखाते हुए कहा।

"अच्छा ठीक है मेरी प्यारी बीबी जी।" निशा ने हँसते हुए कहा,  "तुम्हें जो कहना है कहो, तुम्हें जो करना है करो, पर उसके पहले मुझे तुम्हारा एक और रूप देखना है। एक ऐसा रूप जो मैंने आज तक नहीं देखा, एक ऐसा रूप जो सिर्फ़ मेरे लिए होगा, एक ऐसा रूप जो हमारे प्यार की निशानी होगा।" निशा की आँखों में शरारत भरी चमक थी और उसके होंठों पर एक प्यारी सी मुस्कान खेल रही थी।

विजय ने हैरानी से निशा को देखा। "और कौन सा रूप?मेरे पास तो बस यही एक रूप है जो तुम्हारे सामने है।" उसने थोड़ा घबराते हुए पूछा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि निशा क्या चाहती है।  उसके मन में तरह-तरह के ख्याल आने लगे। क्या वो कोई नया रूप धारण करने की बात कर रही है?क्या वो कोई नया पहनावा पहनने की बात कर रही है? या फिर कुछ और?

"अरे, जब रानी अपने राजा के समक्ष नज़ाकत से, इठलाते हुए, शर्माते हुए,अपनी अदाओं से प्रस्तुत होती है।  जैसे कोई अप्सरा स्वर्ग से उतर कर आई हो।" निशा ने अपनी आँखों से इशारा करते हुए, अपनी पलकों को झपकाते हुए कहा।  "मतलब?" विजय अभी भी समझ नहीं पाया था। वो  निशा की बातों को समझने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। 

"मतलब ये कि तुम्हें मेरे लिए, अपने जानू के लिए, थोड़ा सा कैटवॉक करना होगा।" निशा ने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा। 

"कैटवॉक?" विजय ने आश्चर्य से पूछा। "वो कैसे करते हैं?

"अरे बिल्कुल सिम्पल है बीबी जी ," निशा ने विजय का हाथ पकड़ते हुए कहा, "जैसे मॉडल्स करती हैं, वैसे ही।  थोड़ा सा इठलाना, थोड़ा सा शर्माना, नज़ाकत से चलना, और अपनी अदाओं से मुझे घायल करना।" निशा ने अपनी आँखें मटकाते हुए कहा। "और हाँ,  मुझे अपनी रानी से एक फ्लाइंग किस भी चाहिए।"

विजय पहले तो थोड़ा झिझका, फिर निशा के चेहरे पर प्यार और उत्साह देखकर  मुस्कुरा दिया। "अच्छा ठीक है जानू ,  जैसा हुकुम।"  कहकर विजय ने  अपने लहंगे को थोड़ा सा ऊपर उठाया और  धीरे-धीरे चलना शुरू किया।  उसकी चाल में एक अजीब सा नज़ाकत था,  जो देखकर निशा  ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगी।  विजय  शर्माते हुए  चल रहा था,  और बीच-बीच में  अपनी पलकें भी झपका रहा था।  कैटवॉक के आखिर में, उसने निशा को एक फ्लाइंग किस दिया, जिससे निशा का चेहरा  खुशी से चमक उठा।

"वाह!  क्या बात है मेरी रानी,  आप तो कमाल की कैटवॉक करती हैं।" निशा ने ताली बजाते हुए कहा। "


विजय ने कहा कि और कोई हुक्म बचा है जानू मेरे लिए तो वो भी बता दो।

"अच्छा चलो, अब मुझे कुछ फ़ोटोज़ लेने दो, ताकि तुम्हारी यह 'रानी' वाली छवि हमेशा के लिए कैद हो जाए।" निशा ने अपना मोबाइल निकालते हुए कहा।

विजय ने पहले तो थोड़ा आनाकानी की, लेकिन फिर निशा के आग्रह पर मान गया। निशा ने अलग-अलग अंदाज़ में विजय की कई तस्वीरें लीं। कभी वो उसे शाही अंदाज़ में खड़ा करके तस्वीरें लेती, तो कभी उसे नज़ाकत से बैठने को कहती। विजय भी निशा के साथ मस्ती करते हुए पोज देने लगा।

कुछ देर बाद, जब निशा तस्वीरें देख रही थी, तो वो ख़ुशी से झूम उठी। "वाह विजय, तुम तो कमाल के लग रहे हो इन तस्वीरों में।" निशा ने ख़ुशी से कहा। "इन्हें देखकर तो यकीन ही नहीं होता कि तुम लड़की नहीं हो।"

विजय भी तस्वीरें देखकर हैरान था। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वो इतना ख़ूबसूरत लग सकता है।

"जानू, ये तस्वीरें किसी को मत दिखाना, प्लीज।" विजय ने निशा से कहा।

"अरे डरो मत, मेरी जान।" निशा ने प्यार से कहा। "ये तस्वीरें सिर्फ़ मेरे पास रहेंगी, हमारी इस खूबसूरत याद के तौर पर।"

"और हाँ," निशा ने शरारती अंदाज़ में कहा, "अगर तुमने कभी मुझे तंग किया या फिर मेरी कोई बात नहीं मानी, तो मैं ये तस्वीरें सबको दिखा दूंगी।"

विजय ने निशा को घूरते हुए कहा, "तुम बहुत शरारती हो जानू।"

आज विजय ने एक अलग ही दुनिया देखी थी, एक अलग ही एहसास जिया था। उसे समझ आ गया था कि औरत होना कितना मुश्किल है, कितनी तकलीफें झेलनी पड़ती हैं।

उसने ठान लिया कि वो हमेशा निशा का साथ देगा, उसकी इज्जत करेगा और उसे कभी तकलीफ नहीं देगा।

फिर निशा ने विजय का लहँगा चोली और गहने उतारे, एक-एक करके नथ, झुमके, हार, बाजूबंद सब कुछ।  विजय चुपचाप खड़ा रहा , जैसे एक गुड़िया जिसके साथ खेला जा रहा हो। उसने विजय को एक मुलायम, गुलाबी रंग की सिल्क नाइटी पहनाई।  विजय ने खुद को शीशे में देखा, उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया था। पूरे दिन के भारी भरकम कपड़ों, गहनों और मेकअप से उसे राहत मिली थी।  उसके बाद दोनों ने साथ में खाना खाया।  निशा ने विजय के लिए थाली परोसी और खुद भी उसके साथ बैठकर खाने लगी।  खाना खाने के बाद जब विजय उठने लगी तो निशा ने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा, "बीबी जी कहां जा रहे हो? अभी तो जानू की सेवा करनी है।"  उसकी आवाज़ में एक अजीब सी मीठी धमकी थी जो विजय को समझ नहीं आई।

"क्यों अपने जानू के पैर नहीं दबाने हैं वो तो बच ही गया।" निशा ने कहा।

"लेकिन जानू..." विजय कुछ कहने ही वाली थी कि निशा ने उसकी बात काटते हुए कहा, "कोई लेकिन नहीं बीबी जी। चलो, जल्दी से।"

विजय मन मसोस कर निशा के पास आकर बैठ गई और उसके पैर दबाने लगी। निशा आराम से लेटी हुई थी और विजय की इस दशा पर मुस्कुरा रही थी।

निशा ने विजय को हँसते हुए चिढ़ाते हुए कहा, "अरे बीबी जी देखो ना! मैंने तुमसे एक आदर्श पत्नी के सारे काम करवा लिए, खाना बनाना, घर साफ करना, कपड़े धोना, सब कुछ! बस एक काम रह गया है जो मैं नहीं कर सकती।"

"और वो क्या है जानू ?" विजय ने आँखें चुराते हुए पूछा।

निशा ने अपनी आँखें मटकाते हुए शरारती अंदाज़ में जवाब दिया, "अरे बीबी जी, वो है बिस्तर का सुख! पति-पत्नी के बीच का वो अनोखा रिश्ता, वो प्यार, वो अपनापन, वो  गहराई, वो  सुकून, वो आत्मीयता... वो तो आपको असली बीबी ही दे सकती है ना!  एक पत्नी ही अपने पति को वो  अहसास दिला सकती है, वो  खुशी दे सकती है, वो  प्यार दे सकती है जो  किसी और से  मुमकिन नहीं।" निशा की बातें सुनकर विजय का चेहरा शर्म से लाल हो गया। उसने झेंपते हुए कहा, "अरे जानू, तुम भी ना! बस भी करो अब!  यहाँ  सबके सामने  ऐसी बातें मत करो।" उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो निशा की बातों पर शर्माए या हंसे। एक तरफ उसे निशा की शरारत भरी बातों पर हंसी आ रही थी, तो दूसरी तरफ शर्म भी आ रही थी। निशा की शरारतें कभी खत्म नहीं होती थीं। वो हमेशा उसे चिढ़ाने का, उसे शरमाने का, उसे हँसाने का कोई न कोई तरीका निकाल ही लेती थी।

"अच्छा बाबा, बस करती हूँ।" निशा ने हँसते हुए कहा, विजय के चेहरे की शरमिंदगी देखकर उसे और भी मजा आ रहा था।

"पर ये बताओ, आज का दिन कैसा लगा मेरी रानी साहिबा को? घर के कामों में मज़ा आया? सच-सच बताना, कोई तकलीफ तो नहीं हुई मेरी जान को?" निशा ने प्यार से पूछा।  "बहुत ही कठिन था जानू।" विजय ने एक लंबी साँस छोड़ते हुए कहा, "आज सच में मुझे समझ आया कि औरत होना कितना मुश्किल होता है। ख़ासकर नयी बहू को जो सुबह से लेकर शाम तक, एक के बाद एक, इतने सारे काम एक साथ संभालना,खाना बनाना,घर की सफाई करना,और तो और, साथ में हर किसी की छोटी-बड़ी ज़रूरत का भी ध्यान रखना, वाकई तारीफ के काबिल है तुम औरतें!और

वो भी भारी भरकम साड़ी और गहनों के साथ सज धज कर, अपने सिर पर घूंघट ओढ़े, उस वजन को सहते हुए एक अपरिचित घर में कदम रखती है। अनजान लोग, अनजानी रस्में, अनजाना परिवेश, सब कुछ नया और अपरिचित। फिर भी,वह अपने चेहरे पर मुस्कान सजाए रखती है। वाकई महान हो तुम औरतें। "

निशा ने विजय की आँखों में देखते हुए शरारती अंदाज में कहा, "बीबी जी, आज आपने मुझे इतना खुश कर दिया है कि मैं आपकी कोई एक इच्छा पूरी करने के लिए तैयार हूँ। बस एक छोटी सी शर्त है, लड़कियों के कपड़ों से आजादी वाली इच्छा मत मांगना। क्योंकि अभी दो दिनों तक तो आपके इस सपने के पूरे होने का कोई चांस नहीं है।" निशा ने आगे कहा, "सोच लो क्या मांगना है, आपके पास मौका है अपनी कोई भी दिली ख्वाहिश पूरी करने का।"

विजय के मन में यह बात तो साफ़ थी कि निशा उसे अभी लड़कियों के कपड़ों से पूरी तरह से आज़ाद नहीं करने वाली है। वह यह भी जानता था कि अगले दो दिनों तक तो उसे इससे मुक्ति मिलने से रही, क्योंकि उसके माता-पिता के आने से पहले निशा के पास उसे परेशान करने का सुनहरा मौका था और वह इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी। निशा को विजय को इस तरह सजाने में एक अलग ही मजा आ रहा था। उसे विजय को इस रूप में देखकर हँसी भी आती थी और उसे चिढ़ाने का एक अलग ही आनंद मिलता था। विजय समझ गया था कि निशा के इस मज़ाक से बचने का कोई रास्ता नहीं है। उसे यह भी पता था कि निशा उसे बहुत ज्यादा परेशान नहीं करेगी, बस उसे चिढ़ाने भर की कोशिश करेगी। इसलिए उसने एक नया तरीका अपनाया और

निशा से कहा, "जानू, देखो, मैं तुम्हारी बात समझता हूँ। तुम जो भी कहोगी, मैं वो पहनने को तैयार हूँ।  तुम्हें जो अच्छा लगेगा, मैं वो पहनूँगा। लेकिन मेरा तुमसे एक छोटा सा निवेदन है। क्या अगले दो दिनों के लिए तुम मुझे इन भारी-भरकम साड़ियों लहंगे और गहनों से आजाद कर सकती हो ? मेरा मतलब है

कि मैं कुछ हल्के-फुल्के और आरामदायक कपड़े पहन सकूं, देखो मैं तुम्हें खुश करने के लिए सबकुछ करने को तैयार हूँ, लेकिन इन भारी कपड़ों में मुझे थोड़ी तकलीफ होती है।" विजय ने निशा की आँखों में देखते हुए बड़े प्यार से कहा।

निशा विजय की बात सुनकर मुस्कुराई।

"अच्छा बाबा, मान गई तुम्हारी बात।" निशा ने हँसते हुए कहा, "तुम्हें आजादी मिली। ठीक है, मैं तुम्हें इन भारी-भरकम कपड़ों से दो दिनों के लिए आज़ाद करती हूँ। पर हाँ, ये मत सोचना कि मैं अपना इरादा बदल दूंगी,उसके बाद तो तुम्हें मेरी रानी साहिबा बनना ही पड़ेगा।" विजय जानता था कि निशा मज़ाक नहीं कर रही है, लेकिन उसे इस बात की भी पूरी उम्मीद थी कि अगले दो दिन उसे निशा की शरारतों से थोड़ी भी राहत नहीं मिलने वाली।

"ये हुई ना बात! मेरी जानू सबसे अच्छी है!" विजय ने खुशी से कहा। उसे राहत मिली थी कि कम से कम दो दिन उसे इन भारी-भरकम कपड़ों से निजात मिल जाएगी। और उसके बाद वो अपने असली रूप में आ जायेगा।

"लेकिन कुछ चीजों से अभी आजादी नहीं मिलेगी जैसे सिंदूर,मंगलसूत्र, बिछिया, बजने वाली पायल और ढेर सारी चूड़ियाँ क्योंकि इसके बिना तो सुहागन का सिंगार अधूरा है।"

विजय ने कहा कि "ये गलत है, चूड़ियाँ और पायलें ही तो उसे सबसे ज्यादा परेशान करती हैं। उन्हें पहनकर वो आराम से अपने काम नहीं कर पाता है।" लेकिन वो अपनी बात पर अटल रही और बोली," इनमें कोई भी रियायत नहीं होगी क्योंकि जब तक हाथों में सजी चूडियों की मधुर खन खन और पैरों में पहनी गई पायल की मनमोहक छम छम की आवाज़ उसके कानों तक नहीं पहुँचेगी, उसे असली मजा कैसे आएगा। "

"लेकिन हाँ," निशा ने शरारती अंदाज़ में कहा, "ये मत सोचना कि मैं तुम्हें ऐसे ही छोड़ दूंगी। इन दो दिनों में भी तुम्हें मेरी दूसरी इच्छाएं पूरी करनी पड़ेंगी।"

"जैसे?" विजय ने सावधानी से पूछा, उसे अंदाज़ा हो गया था कि निशा के पास हमेशा कुछ न कुछ शरारत करने के लिए होता है।

"अरे, वो मैं समय आने पर बताऊंगी।" निशा ने आँख मारते हुए कहा, "अभी तो तुम बस ये जान लो कि तुम्हारी परीक्षा अभी खत्म नहीं हुई है।"

विजय ने मन ही मन सोचा, "काश! मैं निशा की इन शरारतों से बच पाता। लेकिन मुझे पता है कि ऐसा हो नहीं सकता।"

"अच्छा ठीक है जानू, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी।" विजय ने हार मानते हुए कहा।

"बस ऐसे ही प्यार से रहो मेरी रानी।" निशा ने विजय की नाक खींचते हुए कहा।

विजय को समझ आ गया था कि उसे अगले दो दिन भी निशा की शरारतों का सामना करना पड़ेगा, लेकिन उसे इस बात की भी खुशी थी कि उसे उन भारी-भरकम कपड़ों और गहनों से थोड़ी राहत मिल जाएगी। फिर विजय और निशा दोनों सोने चले गए। विजय सोच रहा था कि कल उसे कौन से ल़डकियों वाले कपड़े पहनने होंगे जो कि भारी ना हों कहीं वो उसे शॉर्ट स्कर्ट और टॉप ना पहना दे और यही सोंचते सोंचते वो सो गया।

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