सुबह अलार्म की आवाज़ से विजय की आँख खुली। उसने झट से उठकर अलार्म बंद किया और जब उसने अपने आप को साड़ी मे देखा तो फिर से एक बार खुद को याद दिलाया कि आज उसे एक आदर्श पत्नी बनना है, वो भी निशा के लिए!
उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये अजीब सी घबराहट उसे हो क्यों रही है। उसने सोचा कि आज उसे निशा के लिए एक अलग ही रोल निभाना था। उसने उठकर सबसे पहले अपनी साड़ी ठीक की जो रात को थकान की वजह से वैसे ही पहने सो गया था। अब बारी थी घर की साफ़ सफाई की क्योंकि निशा इसको चेक करने वाली थी और गंदगी मिलने पर सजा भी मिल सकती है तो फिर वो उठा और उसने सोचा कि पहले बाथरूम चला जाए और नित्यकर्म से निवृत होकर फिर घर की सफाई शुरू की जाए। बाथरूम जाने के लिए उसने धीरे से अपनी साड़ी उठाई और जैसे ही वो पहला कदम बढ़ाने ही वाला था कि अचानक उसका ध्यान अपने पैरों पर गया जो साड़ी में उलझ गए थे और अगले ही पल वो ज़ोर से धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ा।
गिरते समय उसके मुँह से एक हल्की सी चीख निकल गयी। उसे लगा जैसे उसके शरीर में सब हड्डियाँ टूट गयी हैं पर ज़्यादा कुछ नहीं हुआ था वो बच गया जैसे तैसे।
"ये क्या हुआ?" उसने खुद से कहा, "अब निशा को कैसे जगाऊँगा?"
उसने उठने की कोशिश की, लेकिन उसके शरीर में इतनी ताकत नहीं थी। उसने फिर से कोशिश की, और इस बार धीरे-धीरे उठने में कामयाब हो गया।
"काश! ये सब एक बुरे सपने से ज्यादा कुछ न होता," उसने मन ही मन सोचा।
फिर उसे निशा की बात याद आई कि अगर काम समय पर नहीं हुआ तो सजा मिलेगी। उसने हिम्मत करके एक बार फिर से उठने की कोशिश की और इस बार वो किसी तरह खड़ा होने में कामयाब हो गया।"अब तो मुझे जल्दी से काम निपटाना होगा," उसने सोचा। विजय लड़खड़ाते कदमों से बाथरूम का रास्ता तय किया और नित्यकर्म से निवृत हुआ।
विजय ने हिम्मत जुटाकर झाड़ू उठाई और सफाई शुरू कर दी। साड़ी पहने होने की वजह से उसे झुकने और उठने में थोड़ी परेशानी हो रही थी। साड़ी का पल्लू बार-बार उसकी कमर से खिसक रहा था, जिससे उसे बार-बार उसे ठीक करना पड़ रहा था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो कोई अनजान सी चीज पहनकर कोई अनजान सा काम कर रहा हो। झाड़ू चलाने में भी उसे थोड़ी अटपटा लग रहा था। उसके हाथों को समझ नहीं आ रहा था कि झाड़ू को कैसे पकड़ा जाए और कैसे चलाया जाए।
लेकिन विजय ने हार नहीं मानी। उसने मन ही मन सोचा, "अगर मैं निशा के सामने ये छोटा सा काम भी ठीक से नहीं कर पाया, तो वो क्या सोचेगी? वो सोचेगी कि मैं कोई काम ढंग से नहीं कर सकता और शायद मुझ पर हँसेंगी भी और सजा तो देगी ही ।" इसी सोच के साथ विजय ने साड़ी को अपने एक हाथ से संभालते हुए, थोड़ी बहुत अटपटी चाल और झिझक के साथ किसी तरह झाड़ू-पोछा लगाया।
उसके बदन में दर्द हो रहा था क्योंकि वो इतनी देर तक एक ही अवस्था में झुककर काम नहीं करता था, लेकिन निशा के सामने अच्छा बनने के लिए और उसकी नज़रों में अपनी इमेज अच्छी बनाने के लिए, उसने हिम्मत नहीं हारी और सफाई करता रहा।
झाड़ू-पोछा करने के बाद उसने रसोई का रुख़ किया। रसोई में आते ही उसे कल रात की सारी घटनाएँ याद आ गईं। उसे याद आया कि कैसे उसने निशा की मदद से खाना बनाया था और कैसे निशा ने उसे एक आदर्श पत्नी बनने के गुण सिखाए थे।
उसने चाय बनाने की तैयारी शुरू कर दी। चाय बनाते समय उसने ध्यान रखा कि चाय बिल्कुल वैसी ही बने जैसी निशा को पसंद है। चाय और नाश्ता तैयार करके उसने एक ट्रे में सजाया और निशा के कमरे में ले गया।
"निशा, उठ जाओ।" उसने धीरे से आवाज़ दी, "चाय का समय हो गया है।"
निशा की आँखें धीरे-धीरे खुलीं। उसने विजय को देखा जो उसके लिए चाय और नाश्ता लेकर खड़ा था।
"वाह बीबी जी, आप तो सचमुच में एक आदर्श पत्नी बनने की राह पर हैं।" निशा ने मुस्कुराते हुए कहा, "आपने तो सुबह-सुबह मेरा सारा काम कर दिया।"
"ये तो मेरा फ़र्ज़ था। " विजय ने कहा।
"अच्छा ठीक है, अब आप ट्रे टेबल पर रख दो।
विजय ने चाय और नाश्ता टेबल पर रखा।
"अच्छा, अब नाश्ता करते हैं।" निशा ने कहा।
दोनों ने साथ में नाश्ता किया।
नाश्ता करते समय निशा ने विजय से कहा, "और हाँ, एक बात और।" उसकी आवाज़ में एक अलग ही तरह की शरारत थी, मानो कोई नया खेल शुरू करने वाली हो।
"क्या?" विजय ने उत्सुकता से पूछा, निशा की बातों से थोड़ा असमंजस में पड़ गया। निशा के इस तरह अचानक से कुछ भी कह देने की आदत तो उसे थी, पर आज क्या नया करने वाली है, ये सोचकर वो थोड़ा घबराया हुआ भी था।
"आज आपको मुझे पतिदेव, बाबू सोना, मेरे प्राणनाथ कहकर बुलाना है। हाँ, बस ऐसे ही प्यार से भरे हुए शब्द, जो आपके दिल से निकलते हों। और मैं भी आपको बीबी जी कहकर बुलाऊँगी।" निशा ने शरारती मुस्कान के साथ कहा, उसकी आँखों में एक चमक थी, मानो हज़ारों सितारे एक साथ जगमगा उठे हों। वो जानती थी कि विजय को ये सब थोड़ा अजीब लगेगा, क्योंकि वो थोड़ा शर्मीला किस्म का इंसान था, पर निशा आज उसे अपने इस प्यार भरे खेल में पूरी तरह से शामिल करना चाहती थी।
विजय एक बार फिर से हैरान रह गया। निशा की बातें सुनकर, उसके चेहरे पर एक अजीब सा भाव उभर आया। "ये क्या मजाक है निशा?" विजय ने पूछा, उसकी आवाज में घबराहट साफ़ झलक रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि निशा अचानक ऐसा क्यों कह रही है।
"अरे बीबी जी, मजाक वाली क्या बात है?" निशा ने आँखें मटकाते हुए कहा, "आज आप मेरी बीबी हैं और मैं आपका पतिदेव।" उसकी आवाज़ में एक अलग ही तरह का आत्मविश्वास था, जो विजय को और भी उलझा रहा था। विजय समझ नहीं पा रहा था कि निशा के इस अजीब खेल का क्या मतलब है। क्या वो सच में उसे अपनी बीबी मान रही है या ये सब बस एक मजाक है? उसकी आँखों में एक शरारत थी, जो विजय को और भी उलझा रही थी।
विजय समझ गया कि निशा पूरी तरह से इस खेल में डूब चुकी है। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। एक तरफ तो उसे ये सब बहुत अजीब लग रहा था, उसे ये बचकाना हरकतें बिलकुल पसंद नहीं आ रही थीं।
"अरे, तुम भी ना!" विजय ने हँसते हुए कहा, निशा की शरारत भरी नज़रों से नज़रे चुराते हुए। "ऐसे नाम तोह फिल्मों में अच्छे लगते हैं, असल ज़िन्दगी में थोड़ा अजीब लगता है ना?", विजय ने कहा।
निशा ने अपनी ठोड़ी पर उंगली रखकर सोचने का नाटक किया। "हम्म, मानती हूँ। लेकिन सोचो ना, अगर प्यार से बुलाना ही है तो कुछ तो अलग होना चाहिए, ना कि 'सुनो जी ' या 'ए जी '।" उसकी आँखों में अब भी शरारत तैर रही थी, लेकिन साथ ही एक अलग ही तरह की चमक थी, जो विजय के दिल की धड़कनें बढ़ा रही थी।
निशा की नज़रें एक बार फिर उसकी आँखों से जा टकराई और एक शरारती मुस्कान उसके लबों पर फैल गयी।
"अच्छा ठीक है," विजय ने हार मानते हुए कहा, "जैसी आपकी मर्ज़ी।" वो जानता था कि निशा को मनाना मुश्किल है, और वो इस वक़्त बहस नहीं करना चाहता था।
"वैसे आपको कौन सा प्यार का नाम पसंद है?" निशा ने पूछा, उसकी आँखें शरारत से चमक रही थीं। "राजा,जानू,बेबी,बाबु,शोना?" उसने एक-एक करके नाम गिनाए, जैसे किसी मेनू से चुनने का मौका दे रही हो। हर नाम के साथ उसकी आवाज़ में एक अलग ही तरह का मिठास था, जो विजय को और भी परेशान रहा था।
विजय ने झेंपते हुए जवाब दिया, "अरे यार, ये सब क्या बचकाना हरकतें हैं?" उसे ये सब नाम थोड़े अटपटे लग रहे थे, पर निशा के सामने ये कहने की हिम्मत नहीं थी।
निशा ने नकली गुस्से से कहा, "बचकाना? आपको अपने पति को प्यार से बुलाना भी बचकाना लगता है? क्या आप मुझसे प्यार नहीं करते?" उसकी आवाज़ में एक नाटकीय रुआंसी आ गयी थी,और उसकी आँखों में नकली आंसू आ गए थे।
विजय समझ गया कि अगर उसने अभी कुछ नहीं कहा तो मामला बिगड़ जाएगा। निशा के तेवरों को भांपते हुए, उसने घबराकर कहा, "अरे नहीं ऐसा बिलकुल नहीं है। बस थोड़ा अजीब लग रहा है।" वो नहीं चाहता था कि निशा उससे नाराज हो, इसलिए उसने जल्दी से अपनी बात संभालने की कोशिश की।
निशा की हंसी कमरे में गूंज उठी, उसकी आँखों में शरारत और होंठों पर एक शरारती मुस्कान फैली हुई थी। "तो फिर बताइए ना," उसने जिद की, उसकी आवाज़ में एक मीठी तल्खी थी, एक चंचल चुनौती जो हवा में लटकी हुई थी। "मुझे क्या बुलाएँगे?" उसने फिर पूछा, उसकी आँखें विजय की निगाहों से टकरा गईं, उनके बीच एक मूक बातचीत चल रही थी।
विजय कुछ देर के लिए चुप हो गया, उसके माथे पर हल्की सी सिकन थी, मानो वह किसी जटिल गणितीय समीकरण को सुलझाने की कोशिश कर रहा हो। उसकी निगाहें कमरे में इधर-उधर भटक रही थीं, जैसे किसी उत्तर की तलाश में हों। अंततः, उसने हार मानते हुए कहा, "तुम्हें जो पसंद हो।" उसके शब्द धीमे और अनिश्चित थे, मानो वह इस बात को लेकर अनिश्चित था कि क्या कहना सही होगा।
निशा की आँखों में शरारत और गहरा गई,और उसने शरारती अंदाज में जानबूझकर कहा, "तो चलिए, मुझे "जानू" बुला कर देखिये।"
विजय का चेहरा लाल हो गया, और उसने शरमाते हुए, धीमी आवाज़ में कहा, "जानू।" शब्द उसके होंठों से फिसल गए, मानो अपनी मर्ज़ी से बोल रहे हों।
"और ज़ोर से!" निशा ने हँसते हुए कहा, विजय की बेचारगी पर उसे मज़ा आ रहा था। उसे उसे इस तरह शरमाते हुए देखना पसंद था।
"जानू!" विजय ने थोड़ा ज़ोर से कहा, उसकी आवाज़ में झिझक साफ़ झलक रही थी। यह उसके लिए नया और असहज था, लेकिन कहीं न कहीं, उसे यह पसंद भी आ रहा था।
"और प्यार से!" निशा ने उसे और तंग करते हुए कहा, उसकी हंसी अब छिपी नहीं थी।
विजय ने गहरी साँस ली, अपनी सारी हिम्मत जुटाते हुए, और फिर से कहा, "जानू!" इस बार उसकी आवाज़ में प्यार और लाचारी का अजीब सा मिश्रण था, एक ऐसी भावना जो सिर्फ़ निशा ही उसमें जगा सकती थी।
नाश्ता खत्म करते ही निशा ने शरारती मुस्कान के साथ कहा, "चलो बीबी जी, अब मुझे घर दिखाओ। मुझे देखना है कि मेरी प्यारी बीबी ने कितना बढ़िया झाड़ू-पोछा किया है।"
विजय ने अपनी पत्नी की बात सुनकर हैरानी से भरी नज़रों से उसकी तरफ देखा और पूछा, "घर दिखाऊँ? लेकिन अचानक से?"
ऐसा ने विजय की बात काटते हुए कहा, "लगता है बीबी जी,आप भूल गईं कि अगर घर साफ़ नहीं मिला तो सज़ा मिलेगी।"
विजय ने घबराहट भरे लहज़े में कहा और फिर निशा को घर के अलग-अलग हिस्सों में ले गया। निशा हर जगह बड़े ध्यान से देख रही थी, जैसे कोई सख्त टीचर अपने स्टूडेंट के काम की बारीकी से जाँच कर रहा हो।अचानक निशा की नज़र अलमारी के ऊपर पड़ी। उसने अपनी उंगली उठाते हुए कहा, "बीबी जी, यहाँ तो जाले लगे हैं! आपने सफाई करते हुए इन्हें देखा तक नहीं?"
विजय ने निशा की उंगली की दिशा में देखा। सचमुच, वहाँ कुछ जाले थे जिन्हें वो सफाई करते हुए भूल गया था। उसे अपनी इस छोटी सी गलती पर थोड़ी शर्मिंदगी भी हुई और साथ ही थोड़ा गुस्सा भी आ रहा था कि वो निशा के बनाए इस खेल में खुद को इतना ढाल क्यों रहा है।
फिर भी, उसने नर्म आवाज़ में कहा, "माफ़ करना निशा , वो मैं देख नहीं पाई।"
निशा ने विजय को घूरते हुए कहा, "निशा नहीं जानू बोलो समझे।" उसकी आवाज़ में एक प्यारा सा गुस्सा था, जो विजय के दिल की धड़कन बढ़ा रहा था। "माफ़ करना जानू, वो मैं देख नहीं पाई।" विजय ने शरमाते हुए कहा। उसे अपनी इस गलती पर सज़ा तो मिलनी ही थी, वो भी निशा के हाथों। यह बात वो अच्छी तरह जानता था कि निशा को 'जानू' कहना भूल जाने का भी खामियाजा उसे भुगतना पड़ेगा।
"अच्छा तो सज़ा से बचना है?" निशा ने आँखें तरेरते हुए कहा।। उसके चेहरे पर एक शरारती मुस्कान थी जो विजय को और बेचैन कर रही थी। "पर माफ़ी नहीं, सज़ा मिलेगी।" निशा ने आँख मारते हुए कहा। उसकी आवाज़ में एक मस्ती थी जो विजय के दिल को और धड़का रही थी।
"पर मैं क्या सज़ा दूँ आपको? सोच रही हूँ।" निशा नाटक करते हुए बोली। उसके चेहरे के हाव-भाव देखकर विजय समझ नहीं पा रहा था कि निशा सचमुच गुस्सा है या फिर मज़ाक कर रही है। विजय चुपचाप खड़ा उसकी बातें सुन रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर निशा का इरादा क्या है। निशा की हर अदा, हर बात उसके दिल की धड़कन को बढ़ा रही थी, और वो बस यही सोच रहा था कि आखिर उसकी सज़ा क्या होगी।
"चलिए मेरे कमरे में बीबी जी।", निशा ने उँगली दिखाते हुए कहा।
विजय मन ही मन घबरा गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि निशा अब क्या करने वाली है। उसके दिल की धड़कनें तेज हो गई थीं, और माथे पर हल्का सा पसीना भी आ गया था।
"अरे बीबी जी, डरो मत।" निशा हँसते हुए बोली, जैसे विजय के मन की बात जान गई हो। उसकी आवाज़ में एक अजीब सा सुकून था, लेकिन विजय को ये सुकून किसी तूफ़ान से पहले की शांति की तरह लग रहा था। "सज़ा भी ऐसी होगी कि मज़ा आ जाएगा।" निशा ने अपनी बात खत्म करते हुए एक शरारती मुस्कान विजय पर फेंकी, और अपने कमरे में चली गई।
विजय उसके पीछे-पीछे चलता गया, उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि निशा के दिमाग में क्या चल रहा है। क्या वो सचमुच उसे सज़ा देने वाली है? अगर हाँ, तो किस बात की सज़ा? और कैसी सज़ा? ये सब सवाल विजय के दिमाग में घूम रहे थे।
निशा ने अपने कमरे में जाते ही विजय को कुर्सी पर बैठा दिया। विजय थोड़ा हैरान तो हुआ लेकिन निशा के तेवर देखकर चुपचाप बैठ गया। फिर निशा ने अपनी चुन्नी निकाली और धीरे-धीरे, एक शिकारी की तरह विजय के हाथों को कुर्सी से बाँध दिया। विजय ये सब चुपचाप देखता रहा। उसके मन में अजीब सी घबराहट हो रही थी, पर निशा के हाव-भाव देखकर वो कुछ बोल नहीं पा रहा था। निशा की आँखों में एक अलग ही चमक थी, एक अलग ही जोश था जो विजय को डरा रहा था।
"जानू, ये आप क्या कर रही हैं?" आखिरकार विजय ने हिम्मत करके पूछ ही लिया। उसकी आवाज़ में डर साफ़ झलक रहा था। वो समझ नहीं पा रहा था कि निशा अचानक ऐसा क्यों कर रही है।
"बस बीबी जी, थोड़ा सा खेल रहे हैं।" निशा ने शरारती अंदाज में जवाब दिया। उसके चेहरे पर एक शरारती मुस्कान तैर गई थी। उसने विजय के गालों को सहलाते हुए कहा, "आप तो बहुत प्यारी हो बीबी जी!" विजय अब और भी घबरा गया। निशा की हरकतें उसे समझ नहीं आ रही थीं।
विजय समझ नहीं पा रहा था कि क्या हो रहा है। एक अजीब सी घबराहट और बेचैनी उसके अंदर घर कर रही थी।
निशा ने एक छोटी सी लकड़ी की छड़ी उठाई और विजय के पैरों के तलवों पर धीरे-धीरे फेरने लगी। विजय के शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई।
"ये सजा है आपकी लापरवाही की।" निशा ने धीरे से कहा, उसके चेहरे पर एक शरारती मुस्कान खेल रही थी। "अगली बार से घर की सफाई अच्छे से करना, समझी मेरी प्यारी बीबी जी?"
विजय के पैरों में गुदगुदी हो रही थी, उसके शरीर में एक अजीब सी सिहरन दौड़ गई थी। उसने हिम्मत करके खुद को रोके रखा, लेकिन उसके होंठो पर एक छोटी सी मुस्कान फैल गई।
"जानू, बस करो ना।" विजय ने कहा, उसकी आवाज में गुदगुदी और घबराहट साफ़ झलक रही थी।
"अभी तो बस शुरुआत है बीबी जी।" निशा ने शरारती अंदाज में कहा, उसकी आँखों में एक चमक थी। "अभी तो पूरा दिन पड़ा है। आज मैं आपको सिखाऊंगी कि एक आदर्श पत्नी कैसे बनते हैं।"
निशा की आवाज़ में अजीब सी शरारत थी जो विजय को और भी बेचैन कर रही थी। वह जानता था कि निशा मजाक कर रही है, लेकिन फिर भी उसे एक अजीब सा डर लग रहा था।
"लेकिन जानू, ये तो सजा नहीं मज़ा है," विजय ने अपनी आवाज़ में गुदगुदी छुपाते हुए कहा।
"अच्छा, मज़ा है?" निशा ने आँखें तरेरते हुए कहा, उसके चेहरे पर एक शरारती मुस्कान फैल गई। "तो फिर तो सजा और भी भयानक होनी चाहिए!"
"इतना कहकर निशा ने छड़ी को और तेज़ी से हिलाना शुरू कर दिया। छड़ी के स्पर्श से विजय के शरीर में एक अजीब सी सनसनी फैल गई। वह अब खुद को रोक नहीं पाया और ज़ोर से हंसने लगा।
"हा...हा...हा...जानू...बस करो...हा...हा..."
विजय हँसी से लोटपोट हो रहा था। उसकी आँखों से आंसू बहने लगे थे। निशा उसे देखकर खुद भी मुस्कुरा रही थी। उसे विजय को परेशान करना अच्छा लग रहा था, लेकिन साथ ही उसे उस पर थोड़ा सा तरस भी आ रहा था।
निशा ने कुछ देर और विजय को गुदगुदी की और फिर छड़ी एक तरफ रख दी। विजय अब तक हांफ रहा था, उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे। गुदगुदी की वजह से उसकी साँसे तेज चल रही थी और उसका चेहरा लाल हो गया था।
"तो बीबी जी, कैसी लगी सजा?" निशा ने पूछा, उसकी आँखों में शरारत साफ झलक रही थी।
"बहुत ही... बुरी... जानू," विजय ने हांफते हुए कहा, "अब तो माफ़ कर दो।"
"अच्छा ठीक है," निशा ने हँसते हुए कहा। उसे विजय पर थोड़ा सा तरस आ गया था। "इस बार माफ़ किया। लेकिन अगली बार से घर की सफाई अच्छे से करना, समझी मेरी प्यारी बीबी जी?" निशा ने विजय को प्यार से डांटते हुए कहा। विजय ने सिर हिलाकर हामी भरी। उसे समझ आ गया था कि निशा के साथ शरारत करना उसे भारी पड़ सकता है।
विजय ने सिर हिलाते हुए हाँ में जवाब दिया। उसे समझ आ गया था कि निशा के साथ ये खेल खेलना आसान नहीं होने वाला था।
"चलो अब," निशा ने विजय को कुर्सी से खोलते हुए कहा, "आज तो अभी बहुत काम बाकी है।"
विजय मन ही मन सोचने लगा कि आखिर उसने आज क्या क्या होगा।
"जैसे आपकी मर्ज़ी जानू।" विजय ने थके हुए स्वर में कहा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह निशा की इस नई अदा से कैसे निपटे।
"बहुत अच्छे मेरी प्यारी बीबी जी।" निशा ने विजय की ठोड़ी पकड़ते हुए कहा और फिर बोली, "चलिए अब मैं आपको बताती हूँ कि आज आपको क्या-क्या काम करने हैं।"
निशा ने विजय को दिन भर के काम बताए, जिसमें खाना बनाना, कपड़े धोना, घर की सफाई करना जैसे ढेर सारे काम शामिल थे। विजय यह सब सुनकर हैरान था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर निशा ये सब क्यों कर रही है। क्या वो वाकई में उसे अपनी गुलाम बनाना चाहती है या फिर ये सब सिर्फ एक खेल है?
निशा ने विजय को बाथरूम दिखाते हुए कहा, "जल्दी से नहा धोकर तैयार हो जाओ, पतिदेव इंतज़ार कर रहे हैं तुम्हें अपने हाथों से तैयार करने को।" विजय ने नहाने के लिए हाँ में हाँ मिलाई लेकिन निशा की बात सुनकर वो चौंक गया। निशा ने आगे कहा, "और एक बात आज बाथरूम से केवल तौलिया लपेट कर आना बाहर, ल़डकियों की तरह ब्रेस्ट से नीचे तक।" विजय ने शरमाते हुए निशा की तरफ देखा, उसके मन में तरह-तरह के ख्याल आने लगे।
विजय के तो जैसे पैरों तले जमीन खिसक गई। क्या वो सचमुच ये सब करने वाला था? क्या वो सचमुच निशा के सामने तौलिया लपेट कर जाएगा? उसे बहुत अजीब लग रहा था, शर्म भी आ रही थी। पर उसे ये भी पता था कि अगर उसने निशा की बात नहीं मानी तो वो फिर से कोई न कोई शरारत करेगी।
"जल्दी करो बीबी जी, मुझे देर हो रही है।" निशा ने आवाज दी, उसकी आवाज में हँसी साफ झलक रही थी।
विजय ने हिम्मत करके बाथरूम में कदम रखा। नहाते समय वो बार-बार सोच रहा था कि आखिर वो खुद को इस स्थिति में कैसे फँसने दिया।
नहा धोकर विजय ने एक तौलिया अपनी चौड़ी छाती पर लपेटा और झिझकते हुए बाथरूम से बाहर आया। उसकी नजरें जमीन पर गड़ी हुई थीं, दिल तेज़ी से धड़क रहा था। निशा बेड पर बैठी हुई थी, एक नज़र उस पर पड़ी तो उसकी आँखों में शरारती चमक आ गई। उसके होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान खेल रही थी।
"वाह मेरी प्यारी बीबी जी, आप तो बहुत खूबसूरत लग रही हो।" निशा ने कहा, उसकी आवाज में एक अजीब सा मजाक और छेड़छाड़ का भाव था जो विजय को और भी शर्मिंदा कर रहा था।
विजय शर्म से पानी पानी हो रहा था। खुद को आईने में देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी, उसे अपनी ही हालत पर हंसी आ रही थी मगर साथ ही एक अजीब सी घबराहट भी हो रही थी। वो खुद को बहुत ही अजीब स्थिति में महसूस कर रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे, क्या बोले।
"चलिए अब," निशा ने उठते हुए कहा, उसकी आवाज में अब एक अलग ही दृढ़ता थी, "आपको तैयार होना है ।" फिर उसने अलमारी मे से एक हल्के नीले रंग की भारी ब्राइडल साड़ी निकाली जिसमें हेवी वर्क किया हुआ था और इसके ब्लाउज मे भी पीछे केवल स्ट्रिंग ही थी ताकि वो टाइट रहे। साड़ी चमकदार और खूबसूरत थी और उस पर जटिल कढ़ाई की गयी थी। निशा ने कहा कि आज बीबी जी को ये वाली साड़ी पहननी है। फिर उसने मैचिंग कलर की लेस वाली ब्रा और पैन्टी दी पहनने को। विजय मन ही मन झिझक रहा था लेकिन निशा के सामने कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था तो उसने वो पहन ली।
"जानू, ये साड़ी भी बहुत भारी है।" विजय ने साड़ी हाथ में लेकर कहा, उसके चेहरे पर हल्की सी झुंझलाहट और घबराहट साफ़ झलक रही थी। "क्या मैं कोई हल्की सी साड़ी नहीं पहन सकता? मुझे डर लग रहा है कि कहीं मैं इसे संभाल न पाऊं और कहीं गिर न जाऊं।"
निशा ने प्यार से मुस्कुराते हुए विजय का हाथ थामा और कहा, "अरे बीबी जी, शादी के बाद पत्नी हमेशा भारी साड़ी ही पहनती है।" विजय का चेहरा देखकर निशा समझ गई कि उसे थोड़ी और तसल्ली देने की ज़रूरत है।
"और वैसे भी," निशा ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, "कल तुम इतनी भारी साड़ी पहन चुके हो तो तुम्हें डरना नहीं चाहिए। कल तो तुमने घंटों उस साड़ी को संभाला था, और इतनी खूबसूरती से। मुझे यकीन है कि आज भी तुम इसे बखूबी से संभाल लोगे।"
निशा ने धीरे से विजय के हाथों को ऊपर उठाया और उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान बिखेरते हुए कहा, "पहले ब्लाउज पहनो, फिर पेटीकोट।" उसकी आवाज़ में एक अजीब सी मिठास थी जो विजय के दिल को छू गई। विजय ने आज्ञाकारी भाव से निशा के कहे अनुसार पहले ब्लाउज पहना। मैचिंग रंग का ब्लाउज उसके गेहुँए रंग पर कल से भी ज्यादा खिल रहा था। निशा ने ब्लाउज को पीछे से पकड़ा और धीरे-धीरे उसके हुक बंद किए। उसके स्पर्श मात्र से विजय के रोम-रोम में एक सिहरन दौड़ गई। हुक बंद करने के बाद निशा ने ब्लाउज की बैक स्ट्रिंग को कसकर बाँधा ताकि ब्लाउज विजय के शरीर पर अच्छी तरह से फिट रहे और हिलते-डुलते ढीला न हो। वह चाहती थी कि विजय हर रूप में परफेक्ट लगे।
इसके बाद निशा ने पेटीकोट निकाला और विजय को पकड़ाते हुए कहा, "ये लो, इसे पहनो।" विजय ने शरमाते हुए पेटीकोट लिया और उसे पहनने लगा। पेटीकोट उसके पतले कमर पर बहुत सुंदर लग रही थी। विजय ने पेटीकोट पहना तो निशा ने पेटीकोट के नारे को कसकर बाँधा और एक बार उसे ऊपर से नीचे तक घुमा कर देखा कि कहीं कुछ ढीला तो नहीं है। उसकी नजरें बड़े ही गौर से विजय के बदन पर टिकी थीं।
अब बारी थी विजय को खूबसूरत साड़ी पहनाने की ।
फिर निशा ने साड़ी का पल्लू पकड़ा और धीरे से उसे उठाते हुए विजय की ओर बढ़ी। विजय शरमा रहा था लेकिन निशा की आँखों में शरारत भरी मुस्कान देखकर उसका भी चेहरा खिल उठा। निशा ने साड़ी को विजय की कमर पर लपेटा और प्लेट्स बनाते हुए उसे पिन से टक करने लगी। हर एक प्लेट को बड़ी ही सावधानी से सेट करते हुए निशा ने एक-एक करके बहुत सारी पिनों का इस्तेमाल किया ताकि साड़ी खुल न सके और विजय को किसी भी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े। पिन लगाते हुए निशा ने विजय की आँखों में देखते हुए कहा, "देखना,आज यह साड़ी तुम पर कल से भी ज्यादा खिलेगी। मैंने सारी प्लेट्स को अच्छे से सेट कर दिया है, अब ये हिलेंगी भी नहीं।" उसकी आवाज़ में प्यार और शरारत का अजीब सा मिश्रण था जो विजय के दिल को छू गया।
साड़ी पहनने के बाद अब मेकअप का समय आ गया था। निशा ने सबसे पहले विजय के चेहरे पर फाउंडेशन लगाया, उसके रंग को निखारने और त्वचा को एक समान बनाने के लिए। फिर उसने कॉम्पैक्ट पाउडर का इस्तेमाल किया, जो फाउंडेशन को सेट करने और चेहरे से अतिरिक्त चमक को दूर करने में मदद करता है।
इसके बाद, निशा ने विजय की आँखों पर ध्यान केंद्रित किया। उसने आईलाइनर का उपयोग करके उसकी आँखों को एक सुंदर आकार दिया, जिससे वे बड़ी और अधिक आकर्षक लग रही थीं। मस्कारा की एक परत ने उसकी पलकों को लंबा और घना बना दिया, जिससे उसकी आँखों में एक नई चमक आ गई।अंत में, निशा ने विजय के होंठों पर लिपस्टिक लगाई। निशा ने पूरे मेकअप को नयी बहू के हिसाब से ही किया था, ताकि विजय सुंदर और आकर्षक लगे।
विजय खुद को आईने में देखता ही रह गया। उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था। वह इतना अलग और इतना सुंदर कभी नहीं लगा था। निशा के मेकअप ने उसके चेहरे की खूबसूरती को और भी बढ़ा दिया था।
"वाह जानू, आपने तो कमाल कर दिया। मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि ये मैं ही हूँ!" विजय ने निशा की तारीफ करते हुए कहा।
"अरे बीबी जी, आप जानू की जान हैं तो सुन्दर तो लगेंगी ही और अभी और चीजें बाकी है।" निशा ने शरारती अंदाज़ में कहा, "अभी तो तुम्हें गहने पहनने हैं।"
निशा विजय को बेड पर बिठाकर उसके गहने निकाल लायी। उसने विजय को सबसे पहले मांग टीका, फिर बड़ी गोल नथ, झुमके और हार पहनाया। ब्राइडल चूड़ा और हेवी पायल तो वो पहले से ही पहना था।फिर उसे कमरबंद भी पहना दिया।
"बस, अब तुम बिल्कुल तैयार हो।" निशा ने विजय को आईने के सामने खड़ा करते हुए कहा, "देखो, एक बार खुद को। आज तो तुम किसी परी से कम नहीं लग रहे हो।"
विजय ने जब खुद को आईने में देखा तो वह दंग रह गया। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह वही है। साड़ी, गहने और मेकअप ने उसे बिल्कुल बदल दिया था। वह किसी अप्सरा से कम नहीं लग रहा था।
"वाह मेरी प्यारी बीबी जी, आप तो बिल्कुल परी लग रही हो।" निशा ने विजय के गालों को चूमते हुए कहा।
"जानू... बस करो ना... मुझे शर्म आ रही है..." विजय ने निशा की आँखों में झाँकते हुए कहा।
"अरे मेरी शर्मीली बीबी जी," निशा ने विजय की ठोड़ी को सहलाते हुए कहा।
फिर निशा भी नहाने चली गई और पति जैसा दिखने के लिए उसने विजय का एक कुर्ता-पायजामा पहन लिया।
निशा बाथरूम से बाहर आई तो विजय उसे देखता ही रह गया। नीले रंग के कुर्ते-पायजामे में निशा बिल्कुल लड़कों जैसी लग रही थी।
"क्या देख रहे हो बीबी जी?" निशा ने विजय को घूरते हुए पूछा, उसकी आवाज़ में शरारत साफ़ झलक रही थी।
"कुछ नहीं जानू," विजय ने नज़रें चुराते हुए कहा, "तुम बहुत अलग लग रही हो।"
"अलग मतलब?" निशा ने आँखें तरेरते हुए पूछा।
"मतलब...मतलब...अच्छे लग रहे हो।" विजय ने हकलाते हुए कहा।
निशा हँसते हुए बोली, "चलो अब काम पर ध्यान दो।"अब बारी थी बीबी जी से घर के कुछ कठिन काम कराने की और ना कर पाने पर सजा देने की।
"सबसे पहले रसोई की सफाई करो, फिर मेरे लिए गरमा गरम चाय और नाश्ता बनाओ।" निशा ने हुक्म देते हुए कहा, "और हाँ, ध्यान रहे, चाय बिल्कुल वैसी ही बननी चाहिए जैसी मुझे पसंद है, वरना..."
निशा ने अपनी बात पूरी नहीं की और विजय को एक शरारती मुस्कान देकर रसोई की तरफ इशारा किया।विजय मन ही मन घबरा गया।
"क्या हुआ बीबी जी, डर लग रहा है?" निशा ने विजय की बेचैनी भांपते हुए कहा, "डरो मत, मैं हूँ ना तुम्हारी मदद करने के लिए।"
यह कहकर निशा विजय के पास आई और उसके कान में धीरे से फुसफुसाई, "अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो सजा भुगतने के लिए तैयार रहना।"
विजय सिहर उठा। उसे समझ आ गया था कि आज का दिन उसके लिए बहुत मुश्किल होने वाला है। उसने कपड़ा उठाया और लग गई सफाई में क्योंकि फिर चाय और नाश्ता भी बनाना था।
रसोई में घुसते ही विजय को एहसास हुआ कि यह काम उतना आसान नहीं होगा जितना उसने सोचा था। बर्तन सिंक में ढेर लगे थे, चूल्हा गंदा था और फर्श पर चायपत्ती बिखरी हुई थी। निशा उसके पीछे-पीछे रसोई में आई और दरवाजे के पास खड़ी होकर उसे काम करते देखने लगी।
"जल्दी करो बीबी जी, मुझे देर हो रही है।" निशा ने घड़ी देखते हुए कहा।
विजय ने बर्तन समेटने शुरू किए, लेकिन उसकी नज़र बार-बार निशा पर जा रही थी जो उसे घूर रही थी। उसकी नजरों में शरारत के साथ-साथ एक अजीब सी चमक थी जो विजय को डरा रही थी।
"अरे क्या देख रहे हो बीबी जी?" निशा ने विजय को घूरते हुए पकड़ लिया।
"कुछ नहीं जानू... बस ऐसे ही..." विजय ने नजरें चुराते हुए कहा।
"ऐसे ही मत देखा करो, मुझे शर्म आती है।" निशा ने नखरे से कहा और विजय की तरफ एक फ्लाइंग किस उड़ा दी।
विजय का दिल धक से रह गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि निशा के साथ क्या हो रहा है। वो एक पल तो उसे काम करने के लिए डाँट रही थी और अगले ही पल उस पर इतना प्यार लुटा रही थी।
"अरे सुनो तो बीबी जी .." निशा ने विजय का ध्यान भंग करते हुए कहा, "चाय में चीनी कम डालना, मुझे मीठा कम पसंद है और नाश्ते मे क्या बना रही हो ।"
"वो...वो...जानू पराठे बना रही हूँ।" विजय ने हकलाते हुए कहा, "आपको पसंद है ना?"
"हाँ, पराठे तो मुझे बहुत पसंद हैं," निशा ने जवाब दिया, "पर ध्यान रहे, कुरकुरे होने चाहिए, जैसे मुझे पसंद हैं।"
विजय ने मन ही मन सोचा, "ये तो मुझे सचमुच अपनी असली बीवी समझने लगी है।"
उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसे कैसा महसूस हो रहा है। एक तरफ उसे ये सब बहुत अजीब लग रहा था, वहीं दूसरी तरफ उसे निशा का ये अंदाज़, उसकी शरारतें, सब कुछ थोड़ा बहुत अच्छा भी लग रहा था। मतलब कि अब वो थोड़ा थोड़ा अपने आपको निशा की पत्नी ही समझ रहा था।
निशा की नजरें लगातार उस पर टिकी हुई थीं, जैसे वो उसकी हर हरकत पर नजर रखे हुए हो। विजय को ये एहसास हो रहा था कि निशा उसे परख रही है,
"जानू ,आप बस देखते ही रहोगे या कुछ मदद भी करोगे?" विजय ने हिम्मत करके पूछा।
"मदद?" निशा हँस पड़ी, "अरे मेरी प्यारी बीबी जी , आज तो तुम्हें मेरी सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, इसका पूरा फ़ायदा उठा लो।"
यह कहकर निशा रसोई से बाहर चली गई। विजय अकेला रह गया था अपनी उलझनों के साथ। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे।
कुछ देर बाद निशा फिर से रसोई में आई। इस बार उसने अपने हाथों में एक छोटी सी लकड़ी की छड़ी पकड़ी हुई थी। विजय उसे देखकर घबरा गया।
"ये...ये क्या है जानू?" विजय ने डरते हुए पूछा।
"अरे डरो मत बीबी जी," निशा मुस्कुराई, "ये मेरा खास हथियार है। अगर तुमने कोई गलती की, कोई काम ठीक से नहीं किया, तो मुझे इससे तुम्हें सजा देनी पड़ेगी।"
यह कहकर निशा ने शरारत से अपनी आँखें मारीं।
विजय का चेहरा पिलपिले नींबू की तरह पीला पड़ गया। सजा? किस बात की सजा? उसने तो अभी तक कोई गलती की ही नहीं थी। कम से कम उसे तो ऐसा ही लग रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि निशा आखिर चाहती क्या है।
"जानू, प्लीज ऐसी बातें मत करो, मुझे डर लगता है।" विजय ने गिड़गिड़ाते हुए कहा।
"अरे डरने की क्या बात है बीबी जी," निशा ने विजय की ठोड़ी को अपनी उँगलियों से ऊपर उठाते हुए कहा, "अगर तुम अच्छी बीबी बनकर मेरी हर बात मानोगे, तो तुम्हें किसी सजा की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।"
निशा की आँखों में एक अजीब सी चमक थी। एक शरारती चमक, जो विजय को बेचैन कर रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। एक तरफ तो वो निशा के इस रवैये से डरा हुआ था, वहीं दूसरी तरफ उसे उसका ये अंदाज़, उसकी शरारतें, सब कुछ थोड़ा बहुत अच्छा भी लग रहा था।
"अच्छा, अब तुम जल्दी से काम ख़त्म करो," निशा ने विजय के गाल पर हल्के से चुटकी लेते हुए कहा, "मुझे भूख लगी है, मैं तुम्हारे हाथों का बना गरमा गरम नाश्ता करना चाहती हूँ।"
यह कहकर निशा रसोई से बाहर चली गयी। विजय अकेला रह गया था अपनी उलझनों और उस अजीब से डर के साथ।
उसके जाने के बाद विजय ने एक गहरी साँस ली। उसका दिल अभी भी तेज़ी से धड़क रहा था। निशा का यह रूप उसे बिल्कुल नया और अनजान लग रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे, कैसे करे।
"अरे राम! ये चाय! ये तो बिल्कुल जल गयी!" विजय का ध्यान भटका और चाय की याद आई। उसने जल्दी से चूल्हे की तरफ देखा तो पाया कि चाय बर्तन के किनारों से चिपकने लगी थी और उसमे से जलने की गंध आ रही थी।
"हे भगवान! अब क्या होगा? निशा जान जाएगी तो बहुत गुस्सा होगी।" विजय घबराहट में इधर-उधर देखने लगा।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि जली हुई चाय का क्या करे। तभी उसके दिमाग में एक तरकीब आई। उसने जल्दी से एक और बर्तन लिया और उसमें थोड़ी सी चाय डाली। फिर उसने उसमें थोड़ा पानी मिलाया और उसे दोबारा उबलने के लिए रख दिया।
"शायद इससे काम चल जाए," उसने मन ही मन सोचा।
कुछ देर बाद चाय तैयार हो गई। विजय ने उसे कप में डाला और ऊपर से थोड़ा सा दूध मिलाया ताकि जले हुए रंग का पता न चले। फिर उसने नाश्ता तैयार किया और ट्रे में सजाकर लिविंग रूम में ले गया जहाँ निशा इंतज़ार कर रही थी।
"लाओ बीबी जी , मुझे बहुत भूख लगी है।" निशा ने मुस्कुराते हुए कहा।
विजय ने धीरे से ट्रे टेबल पर रखी। उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। उसे डर था कि अगर निशा को चाय के बारे में पता चल गया तो क्या होगा।
"क्या हुआ बीबी जी , आज इतने चुप क्यों हो?" निशा ने विजय को घूरते हुए पूछा।
"कुछ नहीं जानू , बस ऐसे ही।" विजय ने नज़रें चुराते हुए कहा।
"ऐसे ही मत देखा करो, मुझे शर्म आती है।" निशा ने नखरे से कहा और चाय की चुस्की लेने लगी।
विजय की नज़रें निशा के चेहरे पर टिकी हुई थीं। वो ये जानने के लिए बेताब था कि उसे चाय कैसी लगी।
निशा ने एक घूँट चाय पी और फिर उसके चेहरे के हावभाव बदल गए। विजय का कलेजा धक से हो गया। उसे लगा कि अब निशा का गुस्सा फूट पड़ेगा।
"ये क्या बनाया है बीबी जी?" निशा ने आँखें तरेरते हुए कहा, "ये चाय है या..."
"या?" विजय ने डरते-डरते पूछा।
"या ज़हर?" निशा ने एक शरारती मुस्कान के साथ कहा।
विजय समझ गया कि निशा को चाय के जले होने का पता चल गया है।
"वो...वो...जानू...गलती से..." विजय हकलाने लगा।
"गलती से? अच्छा तो अब तुम मुझसे झूठ भी बोलोगे?" निशा ने नकली गुस्से से कहा।
"नहीं जानू, सच में गलती से हो गया।" विजय ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, "मुझे माफ़ कर दो ना।"
निशा विजय को ऐसे देखकर हँस पड़ी। उसे विजय की यह मासूमियत बहुत प्यारी लग रही थी।
"अच्छा बाबा, माफ़ किया।" निशा ने विजय के गाल खींचते हुए कहा, "लेकिन सजा तो मिलेगी।"
"सजा?" विजय के चेहरे का रंग फिर से उड़ गया।
"हाँ सजा।" निशा ने अपनी आँखों में शरारत समेटे हुए कहा, "और सजा ये है कि तुम अभी के अभी सारी चाय पी जाओगे।"
यह कहकर निशा ने विजय के हाथ में चाय का कप थमा दिया। विजय बेचारा क्या करता, उसे मजबूरन सारी चाय पीनी पड़ी।
चाय का कड़वापन उसके गले में उतर रहा था लेकिन निशा की नजरों के आगे उसके पास और कोई चारा नहीं था। निशा उसे देखकर मुस्कुरा रही थी और यही मुस्कान विजय के लिए सबसे बड़ी सजा थी।
निशा की इस अदा से विजय का दिल मचल गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह निशा के इस रूप पर शरमिंदा हो या खुश। उसने चुपचाप चाय पी ली और पराठा खाने लगा।
"अच्छा है," निशा ने कहा, "अब लगता है तुम्हें अपनी गलतियों से कुछ सीख मिल रही है।"
विजय ने मन ही मन सोचा, "गलतियाँ? मैंने तो अभी तक कुछ किया ही नहीं।"
नाश्ता खत्म करके निशा ने विजय को घर के दूसरे काम करवाने शुरू कर दिए।
कपड़े धोने से लेकर घर की सफाई तक, निशा ने विजय से हर वह काम करवाया जो आमतौर पर वह खुद करती थी। विजय भी क्या करता, उसे तो निशा की हर बात माननी ही थी। उसे डर था कि अगर उसने ज़रा भी आनाकानी की तो निशा उसे कोई न कोई शरारतपूर्ण सजा दे देगी। लेकिन निशा कहां मानने वाली थी वह उसकी हर छोटी-छोटी गलती पर निशा उसे सजा देने से बाज नहीं आ रही थी। सजाये भी अजीबो गरीब थीं कभी उसे एक टांग पर खड़ा कर देती तो कभी कान पकड़ के उठक बैठक करवाती तो कभी अजीबोगरीब मुद्रा में खड़ा कर देती।
विजय को समझ नहीं आ रहा था कि निशा आखिर चाहती क्या है। उसे एक तरफ तो ये सब बहुत अजीब लग रहा था, वहीं दूसरी तरफ उसे निशा का ये अंदाज़, उसकी शरारतें, सब कुछ थोड़ा बहुत अच्छा भी लग रहा था।
दोपहर का समय हो गया था। विजय सारा दिन काम करते-करते थक गया था। उसे बहुत ज़ोर की भूख लग रही थी। निशा ने बोला कि जाओ अब रसोई में खाना बना लो और विजय लाचारी उसका मुहँ देखने लगा था। पर वो चला गया खाना बनाने।
बीबी जी खाना कब तक बनेगा?" निशा ने रसोई में झाँकते हुए पूछा। विजय की हालत पर थोड़ा तरस खाकर निशा ने भी खाना बनाने मे थोड़ी मदद कर दी। थोड़ी देर बाद विजय ने टेबल पर खाना लगाया । खाने में दाल, रोटी, सब्ज़ी और सलाद था। विजय ने भूख से बिलकुल बेहाल होकर खाना खाना शुरू कर दिया।
"आराम से खाओ, बीबी जी," निशा हँसते हुए बोली, "कोई तुम्हारा खाना नहीं छीन रहा है।"
"बहुत भूख लगी थी, जानू," विजय ने मुँह में रोटी डालते हुए कहा, "सारा दिन काम करवाया है तुमने।"
"तो क्या हुआ?" निशा ने आँखें तरेरते हुए कहा, "पत्नियों का यही तो काम होता है, अपने पतियों का हर काम करना ।"
खाना खाने के बाद निशा ने विजय से बर्तन धुलवाए और रसोई साफ़ कारवाई।
"अच्छा अब जाओ, जाकर आराम करो।" निशा ने विजय को हल्के से धक्का देते हुए कहा, "देखो तो तुम्हारे चेहरे पर कितना थकान है।"
विजय मन ही मन मुस्कुराई। निशा का यह फ़िक्र करना, उसे अच्छा लग रहा था।
"जाओ ना अब।" निशा ने फिर से कहा।
"ठीक है जानू।" विजय ने कहा और अपने कमरे की तरफ चल दी।
अपने कमरे में आकर विजय बिस्तर पर लेट गयी। उसका मन अभी भी बहुत उलझन में था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा है।
"क्या वो सचमुच खुद को एक पत्नी समझने लगी है?लेकिन हाँ, एक बात तो है," विजय ने मन ही मन सोचा, "उसकी यह शरारतें, उसका यह अंदाज़, उसे बुरा क्यों नहीं लग रहा ।"
यह सोचकर विजय मुस्कुरा दिया । लेकिन उसका ये सोचना अब बदलने वाला था।
आधे खाने बाद निशा उसके कमरे में आयी और कहा "बीबी जी, ज़रा ये पर्दे भी बदल दो, ये तो बहुत गंदे हो गए हैं।" निशा ने आदेश दिया।
विजय ने मन ही मन सोचा, "पर्दे बदलना? ये तो मैंने आज तक कभी किया ही नहीं।" वो जान बूझ के कठिन काम ढूँढ के ला रही थी उसे परेशान करने को।
लेकिन निशा के सामने कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं हुई। उसने उठकर अनिच्छा से पर्दे बदलने शुरू कर दिए।
"अरे वाह, बीबी जी! आप तो बहुत तेज़ हो गए हो।" निशा ने ताना मारते हुए कहा, "लगता है, मेरी ट्रेनिंग का असर होने लगा है।"
विजय ने मन ही मन सोचा, "ट्रेनिंग? ये तो सचमुच मुझे अपना नौकर समझने लगी है।"
"क्या सोच रहे हो, बीबी जी?" निशा ने पूछा, "जल्दी से काम खत्म करो, अभी तो बहुत काम बाकी है।"
विजय ने मन मसोस कर यह बात ज़ाहिर नहीं होने दी। उसने चुपचाप पर्दे उतारे और नए पर्दे लगाने लगा। निशा यह सब देखकर मुस्कुरा रही थी। उसे विजय को इस तरह काम करते देखना बहुत अच्छा लग रहा था।
"वाह बीबी जी, तुम तो बहुत होशियार हो देखो कैसे पर्दे लगाएँ हैं ।" निशा ने विजय की ओर घूरते हुए देखा। दरअसल विजय ने उल्टे पर्दे लगा दिए जो साइड बाहर की तरफ होनी चाहिए वो अन्दर की तरफ थी। निशा की बात सुनकर विजय ने पलट कर देखा, और शर्म से पानी पानी हो गया। उसे अपनी बेवकूफी पर बहुत गुस्सा आ रहा था। "अरे ये मैं क्या कर दिया!" विजय ने मन ही मन सोचा।
निशा विजय को शर्म से लाल होते देख कर ज़ोर से हंस पड़ी। "अरे बीबी जी, इतना भी शरमाते नहीं हैं। होता है कभी-कभी। लेकिन अगली बार से ध्यान रखना,लेकिन याद रखने के लिए मुझे तुम्हें सजा देनी पड़ेगी।" निशा की आँखों में शरारत थी। विजय समझ गया कि निशा कुछ उल्टी पुलटी सजा देगी। निशा ने भी सोचा कि अभी शाम होने मे दो घंटे हैं तो कोई ऐसी सजा दी जाए जो लंबे टाइम तक चले।
विजय के मन में एक अजीब सी घबराहट थी। समय धीरे-धीरे रेंग रहा था और उसे डर था कि कहीं निशा फिर से उस पर सुबह वाला हथकंडा ना आजमा ले। याद करते ही उसके चेहरे पर शर्म और गुस्सा एक साथ उभर आया। उसे याद आया कि कैसे निशा ने उसके हाथ दुपट्टे से बाँध दिए थे और वो बेबस खड़ा रहा था। उसने सोचा, "अगर उसने फिर से ऐसा किया तो?" बस यही सोचकर उसकी घबराहट और बढ़ गयी।
उसने निशा की तरफ देखा जो खिड़की के बाहर देख रही थी। उसके चेहरे पर एक शरारती मुस्कान थी। विजय को समझते देर ना लगी कि निशा कुछ न कुछ प्लान कर रही है। डर के मारे उसकी आवाज़ थोड़ी लड़खड़ा गयी, "निशा, तुम...तुम सुबह की तरह मेरे हाथ तो नहीं बाँधोगी ना?"
निशा ने विजय की तरफ देखा और हँसते हुए कहा, "अरे नहीं विजय, मैं तो कुछ और सोच रही थी।" विजय को थोड़ी राहत मिली, पर निशा की अगली बात सुनकर उसके होश उड़ गए। "मगर बीबी जी को तो ये सजा पसंद है ना? तो फिर वही सही।" निशा ने एक शरारती मुस्कान के साथ कहा, "मगर इस बार मैं उससे भी ज़्यादा करूंगी। हाथ के साथ पैर भी और बहुत कुछ... मतलब पूरा बांधने वाला गेम!"
विजय के चेहरे का रंग उड़ गया। उसकी आँखें बड़ी हो गयीं। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या कहे। उसने मन ही मन सोचा, "ये लड़की तो बिलकुल पागल है!"
विजय को अपनी बेवकूफी पर बहुत गुस्सा आ रहा था। "अरे ये मैंने क्या कर दिया!" विजय ने मन ही मन सोचा।
निशा ने शरारत से कहा। "तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हें एक नया गेम बताती हूँ ।"
विजय घबरा गया। निशा की बातों से उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। "नया गेम?" उसने पूछा, "कैसा गेम?"
"अरे, तुम चिंता मत करो," निशा ने हँसते हुए कहा, "ये गेम तुम्हें बहुत पसंद आएगा।"
यह कहकर निशा बाहर चली गई और कई रस्सियाँ ले आई। विजय रस्सी देखकर और भी घबरा गया। "ये... ये रस्सी किस लिए लाई हो?" उसने डरते-डरते पूछा।
"अरे, ये तो गेम के लिए है," निशा ने हँसते हुए जवाब दिया, "इससे मैं तुम्हें बाँधूंगी और तुम्हें एक घंटे मे इन रस्सियों को खोलना होगा। अगर नहीं खोल पाए तो गेम हार जाओगे और उसकी सजा अलग से तय की जाएगी।" निशा की आवाज़ में एक शरारती लहज़ा था, जैसे वो कोई मज़ाक कर रही हो, पर उसकी आँखों में चमक बता रही थी कि वो वाकई ये करने वाली है।
विजय की आँखें फटी की फटी रह गईं। "मुझे बाँधोगी?" उसने अविश्वास से पूछा। "लेकिन क्यों?" उसके दिमाग में तरह-तरह के ख्याल आने लगे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि निशा अचानक ऐसा क्यों कर रही है। कहीं ये कोई मज़ाक तो नहीं?
"क्योंकि ये गेम का हिस्सा है," निशा ने शरारती अंदाज़ में कहा, "और तुम तो जानते हो कि गेम के नियमों का पालन करना कितना ज़रूरी होता है।" वो मुस्कुरा रही थी, पर उसकी मुस्कराहट में अब शरारत के साथ-साथ एक अजीब सी दृढ़ता भी थी।
विजय ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, "मुझे माफ़ कर दो, प्लीज़।" उसे अब अपनी गलती का एहसास हो रहा था। काश उसने पहले ही मना कर दिया होता। ना वो हाथ बाँधने वाली बात कहता, ना ये सब झेलता।
निशा विजय को ऐसे देखकर हँस पड़ी। उसका चेहरा देखने लायक था - डर, घबराहट और पछतावे से भरा हुआ। मगर वो रुकने वाली नहीं थी। ये तो बस शुरुआत थी, आगे-आगे और भी मज़ा आने वाला था।
"अरे बाबा, इतना डरते क्यों हो?" निशा ने विजय का हाथ पकड़ते हुए कहा, "मैं तुम्हें कोई दर्द नहीं दूंगी, बस थोड़ा सा बाँधूंगी।" उसकी आवाज़ में अब भी हंसी थी, पर साथ ही एक अलग तरह की कोमलता भी थी, जैसे वो उसे आश्वस्त कर रही हो कि सब ठीक होगा।
विजय को निशा की बातों पर यकीन नहीं हो रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि निशा आखिर करना क्या चाहती है। लेकिन उसके पास और कोई चारा भी नहीं था। उसे निशा की बात माननी ही पड़ेगी।
"अच्छा ठीक है," विजय ने मन मसोस कर कहा, "लेकिन ज़्यादा कसकर मत बाँधना। मुझे थोड़ी तकलीफ होती है।" विजय को अपनी बात पूरी कहने से पहले ही निशा हँसते हुए बोली, "अरे वाह, मेरी बीबी जी को डर लग रहा है! चिंता मत करो जानू, मैं तुम्हें ऐसे कस कर बाँधूंगी कि तुम आसानी से ना खुल पाओ।" निशा ने शरारत से अपनी आँखें मारते हुए कहा, "और हाँ, हाथ और पैर के साथ-साथ मुँह और आँखों पर भी पट्टी भी ताकि गेम थोड़ा मुश्किल हो जाए और तुम्हें छुड़ाने में मुझे और भी मज़ा आए।" निशा की बात सुनकर विजय के चेहरे का रंग उड़ गया। "नहीं नहीं, मुँह और आँखों पर पट्टी नहीं।" विजय ने घबराहट में कहा। "मुझे अँधेरे और बंधे होने से डर लगता है।" विजय ने अपनी बात को समझाते हुए कहा। लेकिन निशा ने हँसते हुए कहा, "चिंता मत करो जानू, सब कुछ होगा ताकि तुम्हें पूरा मजा आए।"
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