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नए रूप में नया सफर - निशा के हाथों का जादू

 अगली सुबह निशा ने विजय को जल्दी उठा दिया। "भैया उठो, उठो, कितना सोते हो! देखो दस बज गए हैं।"

विजय आँखें मलते हुए बोला, "क्या हुआ निशा? इतनी सुबह-सुबह क्या शोर मचा रखा है? मुझे तो अभी भी नींद आ रही है।"

"अरे भैया, सुबह क्या हुई! दस बज गए हैं और आज से तुम्हारी ट्रेनिंग शुरू हो रही है, याद है ना?" निशा ने उत्साह से कहा।

"ट्रेनिंग? किस चीज़ की ट्रेनिंग?" विजय ने नींद में पूछा।

"अरे भैया, कल रात की बात भूल गए? आज से तुम छह दिन तक लड़की बनकर रहोगे और तुम्हें लड़की बनना तो मैं ही सिखाऊंगी न।" निशा ने उसे याद दिलाया।

विजय को जैसे नींद से एक झटका लगा हो। उसे कल रात की सारी बातें याद आ गईं। निशा ने उसे धमकी दी थी कि अगर वो उसकी बात नहीं मानेगा तो वो उसकी फोटो और वीडियो सबको दिखा देगी। उसे याद आया कि कैसे निशा ने उसे लड़की के कपड़े पहनने के लिए मजबूर किया था।

"हाँ-हाँ, याद आया। मैं उठ रहा हूँ।" विजय ने हार मानते हुए कहा।

निशा ने विजय को धक्का देकर बाथरूम में धकेलते हुए कहा, "जाओ, पहले नहा धो लो लेकिन उससे पहले ये हेअर रिमूवल क्रीम पूरे शरीर पर लगा लेना और फिर दस मिनट बाद नहा लेना।" विजय ने अचरज से निशा को देखा, उसके चेहरे पर सवाल साफ झलक रहा था।

"क्या हुआ? क्यूं देख रहे हो ऐसे?  कल की बात अलग थी, वो तो बस एक शुरुआत थी। अब तो तुम्हें हर तरह से लड़की बनना होगा। और हाँ,  शरीर पर एक भी बाल नहीं होना चाहिए, समझ गए?" निशा ने सख्त लहजे में कहा।

विजय की आँखों में घबराहट साफ दिख रही थी। "पर निशा... ये.. ये तो बहुत अजीब है।"

निशा ने उसकी बात काटते हुए कहा, "अजीब क्या है इसमें? लड़कियों की तरह स्किन चाहिए तो उसके लिए ये सब करना ही पड़ेगा।"

"लेकिन निशा... दर्द होगा ना?" विजय ने डरते-डरते पूछा।

निशा हँसते हुए बोली, "अरे डरपोक! दर्द नहीं होता इससे। बस थोड़ी जलन हो सकती है, पर वो भी दो-चार मिनट की। जाओ अब, जल्दी करो।

"और हाँ,  शुक्र मानो कि मैं सिर्फ इसी से ही संतुष्ट हूँ।" निशा ने अपने नाखून देखते हुए कहा,  "वरना वैक्स भी करवा सकती थी, और तब पता चलता तुम्हें असली दर्द क्या होता है।"

विजय मन ही मन सोचने लगा कि वो किस चक्कर में फंस गया है।

विजय मन मसोस कर नहाने चला गया। पूरे शरीर की शेविंग करके नहा धोकर जब वो बाहर आया तो निशा ने उसके लिए ब्रा और पैन्टी रखी थी। विजय ने पहले पैंटी पहनी फिर निशा ने एक बॉक्स खोला उसमें से उसने दो ब्रेस्ट फॉर्म निकाले और विजय की छाती पर चिपका दिए। विजय ने पूछा, "ये क्या चिपका रही हो?"

निशा ने जवाब दिया, "ये ब्रेस्ट फॉर्म हैं, इन्हें लगाने से तुम्हारी छाती लड़कियों जैसी लगेगी।"  पर उसने विजय को ये नहीं बताया कि उनको जिस ग्लू से चिपकाया है उसको निशा ही छुटा सकती है।

फिर निशा ने विजय को ब्रा पहनने में मदद की निशा ने उसे एक अलमारी खोलने को कहा।

"इसमे क्या है?" विजय ने पूछा।

"इसमें तुम्हारे लिए कुछ कपड़े हैं। आज से छः दिनों तक तुम्हारी बस यही अलमारी होगी और तुम छः दिनों तक यही कपड़े पहनोगे।" निशा ने कहा।

विजय ने डरते-डरते अलमारी खोली। उसमें तरह-तरह के लड़कियों के कपड़े भरे हुए थे - सूट, सलवार कमीज, लेगिंग्स, कुर्तियाँ, दुपट्टे, लहंगे और साड़ियां, सब कुछ।

"ये तुम क्या मजाक कर रही हो, निशा?" विजय ने घबराते हुए कहा, "मैं ये सब नहीं पहनूँगा।"

"अरे भैया, मजाक की बात नहीं है।" निशा ने गंभीरता से कहा, "जब छह दिन तक लड़की बनकर रहना है, तो ढंग से तो रहो और अपने कपड़े तो कुछ टाइम के लिए भूल जाओ। और हाँ, एक बात और, तुम्हारी अलमारी जिसमें तुम्हारे सारे कपड़े हैं, वो मैंने लॉक कर दी है और उसकी चाबी मेरे पास रहेगी। तो अब आपके पास और कोई चारा नहीं है।"

विजय मन ही मन सोच रहा था कि आखिर वो किस मुसीबत में फंस गया है। लेकिन अब उसके पास कोई चारा नहीं था। उसे अगले छह दिनों तक निशा की कठपुतली बनकर रहना होगा। उसने एक-एक करके सारे कपड़े देखे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या पहने और क्या छोड़े।

"निशा, प्लीज यार, मुझे ये सब नहीं करना।" विजय ने मिन्नत की, "तुम जो चाहो, मैं करूँगा, पर ये सब नहीं।"

"देखो भैया, ज्यादा नाना-नाकुर मत बनाओ। और हाँ,और जल्दी से कुछ पहनो, नहीं तो मैं खुद तुम्हें पहनाऊंगी।"

विजय समझ गया कि अब बहस करने का कोई फायदा नहीं है। उसने निशा से कहा कि वो ही कुछ चुन ले।

"अच्छा, ठीक है।" निशा ने इशारा करते हुए कहा, "तुम ये पीले रंग का सूट पहनो ये तुम पर बढिय़ा लगेगा।"

विजय ने देखा कि निशा जिस सूट की बात कर रही है,वो सुन्दर थी और भारी भी। दरअसल वो एक ब्राइडल टाइप की शरारा सूट था "निशा, ये तो बहुत ज़्यादा भारी लग रहा है।" "अरे बाप रे, ये कैसे पहनते हैं?" विजय ने परेशानी से कहा।

"अरे भैया, चिंता मत करो।"

मैं तुम्हें पहनने में मदद कर दूंगी।" निशा ने कहा और फिर वो विजय को शरारा पहनाने लगी। शरारा नीचे से फैला होता है तो विजय को अजीब लग रहा था।

शरारा पहनाने के बाद निशा ने विजय को कुर्ती दी। विजय ने जैसे ही कुर्ती पहनने की कोशिश की, उसे समझ आ गया कि ये काम इतना आसान नहीं है।

विजय को सूट पहनने में थोड़ी दिक्कत हो रही थी, लेकिन निशा ने धैर्य से उसे पहनाया।

"वाह! भैया, तुम तो बहुत सुंदर लग रही हो!" निशा ने विजय को देखते हुए कहा।"

विजय ने हिचकिचाते हुए आईने में देखना चाहा मगर निशा ने मना कर दिया और कहा कि पहले पूरा तैयार तो हो जाओ फिर आखिर मे देखना।

"निशा, ये तो बहुत ज़्यादा टाइट है।" विजय ने कहा, "मुझे साँस लेने में तकलीफ हो रही है।"

"अरे भैया, थोड़ा एडजस्ट कर लो।" निशा ने कहा, "लड़कियों को तो हर वक़्त ऐसे ही रहना पड़ता है।"

विजय ने जैसे-तैसे करके वो कमीज भी पहन ली। अब बारी थी दुपट्टे की। उसने कई बार दुपट्टा बाँधने की कोशिश की, लेकिन वो बार-बार उसके कंधे से गिर रहा था।

निशा विजय को देखकर हँस पड़ी। "वाह भैया, क्या खूब लग रहे हो! एकदम लड़की लग रहे हो!" फिर निशा ने कहा कि दुपट्टा बाद मे सेट होगा इसलिए उसे छोड़ दो।

"ये हँसने वाली बात नहीं है, निशा।" विजय ने गुस्से से कहा, "मुझे बहुत अजीब लग रहा है।"

"अरे भैया, गुस्सा क्यों होते हो? अभी तो तुम्हें मेकअप करना है, बाल बनाने हैं, गहने पहनने हैं।" निशा ने कहा, "चिंता मत करो, मैं तुम्हें एकदम सुंदर लड़की बना दूंगी। उसके बाद दुपट्टा भी मैं ही सेट कर दूंगी। "

विजय को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। वो खुद को इस स्थिति में लाने के लिए खुद को कोस रहा था।

निशा ने अपने मेकअप किट से फाउंडेशन निकाला और विजय के चेहरे पर धीरे-धीरे लगाना शुरू कर दिया। विजय शुरुआत में तो थोड़ा विरोध करता रहा, "अरे यार, ये सब क्या कर रही हो? मुझे अच्छा नहीं लगता ये सब।" लेकिन निशा ने उसकी एक न सुनी और अपने काम में लगी रही।

फाउंडेशन के बाद, निशा ने पाउडर से विजय का चेहरा सेट किया, उसके बाद गालों पर हल्का सा ब्लशर लगाया। विजय आईने में खुद को देख रहा था, और उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या प्रतिक्रिया दे। निशा ने फिर आईलाइनर से उसकी आँखों को एक नया आकार दिया, और मस्कारा से उसकी पलकों को घना बना दिया। विजय को अपनी आँखों में एक अलग ही चमक दिखाई दे रही थी।

अंत में, निशा ने लिपस्टिक निकाली और विजय के होंठों पर लगाई। जब निशा ने मेकअप खत्म किया, तो विजय खुद को आईने में देखता ही रह गया। उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था। वह खुद को पहचान ही नहीं पा रहा था। उसका चेहरा बिल्कुल बदला हुआ लग रहा था, एक अलग ही चमक और आकर्षण था उसके चेहरे पर।

जब निशा ने मेकअप खत्म किया, उसके बाद उसने एक और बॉक्स खोला और उसमे से एक लंबी, काली कर्ली और रेशमी विग निकाली। यह विग बिल्कुल असली बालों जैसी लग रही थी। निशा ने सावधानी से विजय के सिर पर एडजस्ट कर उसी ग्लू से चिपका दी जिससे उसने ब्रेस्ट चिपकाई थी। ग्लू की गंध से विजय को थोड़ी घबराहट हो रही थी, लेकिन उसने हिम्मत करके कुछ नहीं कहा।

अब बारी थी गहनों की। निशा ने एक और छोटा सा बक्सा खोला, जिसमें से तरह-तरह के गहने निकले - झुमके, गले के लिए हार , ढेर सारी रंग-बिरंगी चूडियां और ज्यादा घुँघरू वाली पायल। विजय समझ गया कि निशा उसे ये सब भी पहनाएगी।

"निशा, ये सब ज़रूरी है क्या?" विजय ने डरते-डरते पूछा। उसे ये सब पहनना बिलकुल पसंद नहीं आ रहा था, लेकिन निशा की ज़िद के आगे उसकी एक न चली।

"बिल्कुल ज़रूरी है, भैया।" निशा ने गंभीरता से कहा, "अगर तुम सचमुच लड़की बनकर रहना चाहते हो, तो तुम्हें हर तरह से लड़की लगना होगा।"

निशा ने बड़े प्यार से विजय को कानों में झुमके पहनाए। विजय के कान में पहले से ही छेद थे तो कोई प्रॉब्लम नहीं थी फिर बड़ी से नथ पहना दी और उसकी चैन सेट कर दी। फिर उसने हार निकाला और विजय के गले में डाल दिया । विजय के हाथों में तो ढेर सारी चूड़ियाँ पहना दीं। ये वही पंजाबी ब्राइडल वाला चूड़ा की तरह ही थी ताकि थोड़ा ब्राइडल टाइप लुक लगे अब बची थीं घुँघरू वाली पायल। पायल इतनी भारी थीं कि विजय को चलने में भी दिक्कत हो रही थी और बहुत ज्यादा आवाज कर रही थीं।विजय को इतना भारी और असहज लग रहा था कि उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। उसे अहसास हुआ कि लड़की होना इतना आसान भी नहीं है। बस अब एक चीज़ की कमी बची है और उसने मांग टीका उसके सिर पर लगाया । फिर निशा ने शरारा सूट का दुपट्टा विजय के सिर पर पल्लू की तरह सेट किया और उसको एक बार ऊपर से नीचे तक देखा।


"बस, अब हो गया।" निशा ने आखिरकार कहा, "अब जाओ, आईने में देखो खुद को।"

निशा विजय को धीरे-धीरे आईने के पास ले गई और खुद को देखा। उसकी आँखें अविश्वास से भरी थीं, वो खुद को पहचान ही नहीं पा रहा था। शरारा सूट ने उसके शरीर को एक नया आकार दिया था, मेकअप ने उसके चेहरे की खूबसूरती को निखार दिया था, गहनों ने उसे एक नारी की शोभा दी थी और विग ने उसके लुक को पूरी तरह से बदल दिया था। वो आईने में खुद को देखता रहा, एक सुन्दर सी लड़की उसकी ओर देख रही थी। उसके लंबे, घने बाल, गुलाबी होंठ, और चमकती आँखें, सब कुछ इतना असली लग रहा था। विजय ने कभी सोचा भी नहीं था कि वो इतना अलग और खूबसूरत दिख सकता है।

"ये मैं हूँ?" विजय ने हैरानी से पूछा।

"हाँ भैया, ये आप ही हो।" निशा हँसते हुए बोली

विजय मन ही मन सोच रहा था कि वो किस मुसीबत में फंस गया है। लेकिन अब उसके पास कोई चारा नहीं था। उसे अगले छह दिन तक निशा की कठपुतली बनकर रहना होगा। विजय को समझ नहीं आ रहा था कि ये सब हो कैसे गया। अभी कुछ देर पहले तक वो अपनी ज़िन्दगी में मस्त था और अब उसे एक लड़की बनकर रहना होगा, वो भी अगले छह दिन तक। विजय को निशा की बात पर यकीन नहीं हो रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि एक तो वह लड़की जैसा ही लग रहा था और दूसरा यह कि वह इतनी सुंदर लड़की कैसे लग रही है। लेकिन उसे ये मानना पड़ा कि निशा ने उसे सच में बहुत सुंदर बना दिया था। उसका चेहरा एकदम बेदाग और चमकदार था, उसके होंठ गुलाबी और मुलायम थे,और उसकी आँखें किसी हिरणी जैसी सुंदर लग रही थीं।

  उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था कि यह वह खुद है या कोई और।"अच्छा ठीक है, अब मुझे जाने दो।" विजय ने कहा। उसे लगा कि निशा ने उसे तैयार कर दिया है तो अब उसे जाने देगी।

"अरे जनाब,कहाँ चल दिये अब तो असली ट्रैनिंग शुरू होगी, अभी तो बहुत काम बाकी है।" निशा ने कहा, "अभी तो तुम्हें लड़कियों की चलना सिखाना है, बात करना सिखाना है, अदाएं और नजाकत भी सिखानी हैं। "

विजय ने निशा को हैरानी से देखा। "ये सब क्यों?" उसे समझ नहीं आ रहा था कि निशा उसे और क्या सिखाना चाहती है।

"अरे भैया, जब छह दिन तक लड़की बनकर रहना है, तो ढंग से तो रहो।" निशा ने कहा, "वरना लोग क्या कहेंगे?" निशा ने विजय को समझाया कि अगर वो सही से लड़की बनकर नहीं रहेगा तो लोग उसे पहचान लेंगे और तब मुसीबत हो जाएगी।

"चलो पहले अब तुम्हें चलना सिखाती हूँ लेकिन उससे पहले ये पहन लो। " निशा ने विजय को हील वाली सैन्डल दी। विजय ने जैसे ही उन सैन्डल पर नजर डाली, उसके चेहरे पर घबराहट छा गई। वो सैन्डल साधारण नहीं थीं, उनकी हील कम से कम तीन इंच ऊँची थी!

"ये क्या? मैं इस पर कैसे चल पाऊँगा? ये तो बहुत ऊंची हैं। " विजय ने घबराहट भरी आवाज़ में कहा, उसका गला मानो सूख गया हो। उसे समझ नहीं आ रहा था कि निशा ऐसा क्यों कर रही है। क्या वो उसका मजाक उड़ा रही थी?

"अरे, ये तो पहननी ही पड़ेगी।" निशा ने हँसते हुए कहा, जैसे ये कोई मजाक की बात हो। "लड़कियाँ हील्स पहनती हैं, ये तो तुम्हें भी पता होगा और अगर नहीं पहनोगे तो नीचे से ड्रेस भी जमीन पर रगड़ जाएगी। इतनी मेहनत से मैंने ये ड्रेस तुम्हारे लिए चुनी है, क्या तुम इतनी सुन्दर ड्रेस गंदी करना चाहते हो?" निशा की आवाज़ में अब थोड़ी शरारत  भी झलक रही थी।

"नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं।" विजय ने जल्दी से कहा। उसे समझ आ गया था कि निशा की बात मानने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं है।

"तो फिर जल्दी से पहनो इन्हें।" निशा ने सैन्डल उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा।

विजय ने हिचकिचाते हुए सैन्डल अपने हाथों में लीं। वो इतनी ऊँची हील्स पहली बार देख रहा था। उसने ध्यान से देखा तो पाया कि हील्स तो बहुत पतली थीं, मानो बस एक पतली सी सुई पर टिकी हों। उसे समझ नहीं आ रहा था कि लड़कियाँ आखिर इन पर कैसे चल लेती हैं।

"देखो, ऐसे डरो मत।" निशा ने विजय की हालत देखते हुए कहा। "मैं तुम्हें चलना सिखा दूंगी।"

निशा ने विजय को एक हाथ पकड़ने को कहा और दूसरे हाथ से उसकी कमर थाम ली।

"अब धीरे-धीरे एक-एक कदम आगे बढ़ाओ।" निशा ने निर्देश देते हुए कहा।

विजय ने हिम्मत करके एक कदम बढ़ाया। उसकी हालत उस बछड़े जैसी हो रही थी जो पहली बार चलना सीख रहा हो। वो इधर-उधर डगमगा रहा था।

"आराम से, घबराओ मत।" निशा ने उसे सम्भालते हुए कहा।

विजय ने धीरे-धीरे एक और कदम बढ़ाया। इस बार वो थोड़ा संतुलन बनाने लगा था।

"शाबाश! ऐसे ही करते रहो।" निशा ने उसे प्रोत्साहित किया।

विजय धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा। कुछ देर की प्रैक्टिस के बाद वो थोड़ा-बहुत चलने लगा था, हालाँकि अभी भी वो अजीब तरीके से चल रहा था।

"लड़कियाँ ऐसे नहीं चलतीं जैसे तुम चल रहे हो।" विजय को देखकर उसकी हँसी छूट गई थी। वह शरारा सूट पहनकर हील्स में अजीब तरह से चल रहा था। उसके कदम भारी लग रहे थे और वह बार-बार लड़खड़ा रहा था। शरारा सूट का घेरा और दुपट्टा उसे संभालना मुश्किल हो रहा था।

निशा ने उसे समझाते हुए कहा, "देखो, सबसे पहले अपनी कमर सीधी करो।" विजय ने उसकी बात मानते हुए अपनी कमर सीधी की। "अब अपने कदमों पर ध्यान दो। छोटे-छोटे और नाप-तोल कर कदम उठाओ।" निशा ने उसे आगे चलकर दिखाया कि कैसे चलना है।

विजय ने शिकायत भरे लहजे में कहा, "अरे यार, इतनी भारी ड्रेस में मैं ढंग से चल तक नहीं पा रहा और तुम मुझे नजाकत से चलना सिखा रही हो!"

निशा ने फिर से हंसते हुए कहा, "अरे तो क्या हुआ? लड़कियाँ हर दिन ऐसे ही चलती हैं। थोड़ी प्रैक्टिस करोगे तो तुम भी सीख जाओगे और थोड़ा हाथों का उपयोग करो और ड्रेस को थोड़ा उठा कर चलो ।"

उधर विजय ने जब चलना शुरू किया तो उसके कदमों की लय में एक नया संगीत जुड़ गया था। उसकी कलाईयों में सजी चूड़ियाँ और पायल हर हलचल पर मधुर झंकार कर रही थीं, जो हवा में घुलकर विजय के पास पहुँच रही थी। यह अहसास विजय के लिए बिलकुल नया था। उसे कभी इस तरह की आवाज़ें अपने आस-पास महसूस नहीं हुई थीं। एक अजीब सी बेचैनी और साथ ही एक सुंदर सा एहसास उसके अंदर घर कर रहा था। विजय थोड़ा शरमा रहा था, क्योंकि उसे एहसास हो रहा था कि यह आवाज़ें उसके चलने की वजह से ही आ रही हैं। वह धीरे-धीरे चलने की कोशिश कर रहा था, ताकि उसकी चूड़ियाँ और पायल ज्यादा आवाज़ न करें।

"अरे भैया, शरमाओ मत।" निशा ने विजय को चिढ़ाते हुए कहा, "जब तक तुम ठीक से चलना नहीं सीख जाओगे, तब तक ये आवाज़ ज्यादा आती रहेगी।"

निशा ने विजय को लड़कियों की तरह चलना सिखाना शुरू कर दिया। उसे बता रही थी कि कदम कैसे रखने हैं, हाथ कैसे हिलाने हैं और कमर कैसे मटकाकर चलना है। निशा ने विजय को बताया कि लड़कियां चलते हुए अपने हाथों को कैसे हिलाती हैं, कैसे वो अपनी नज़रें नीची रखती हैं और कैसे वो छोटे-छोटे कदम रखती हैं।

उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था कि यह वह खुद है या कोई और। विजय को शुरू-शुरू में बहुत अजीब लग रहा था, लेकिन धीरे-धीरे वो निशा की बातों को समझने लगा। वो कोशिश कर रहा था कि वो बिल्कुल वैसे ही चले जैसे निशा उसे सिखा रही थी। उसे ये सब बहुत अटपटा लग रहा था, लेकिन उसे निशा की बात माननी ही थी।

"बहुत बढ़िया, भैया!" निशा ने विजय की पीठ थपथपाते हुए कहा, "अब तुम थोड़े-थोड़े लड़की जैसे चलने लगे हो। बस थोड़ी और प्रैक्टिस की ज़रूरत है।"

चलना सीखने के बाद निशा ने विजय को बात करना सिखाना शुरू कर दिया। निशा ने विजय से कहा कि अब उसे लड़कियों की तरह बात करना सिखाएगी।

"लड़कियाँ ऐसे रूखे स्वर में बात नहीं करतीं।" निशा ने विजय को समझाया, "उनकी आवाज़ में मिठास होती है और वो हमेशा प्यार से बात करती हैं।" निशा ने विजय को बताया कि लड़कियों का लहज़ा नर्म होता है और वो प्यार से बात करती हैं।

"और हाँ, लड़कियाँ कभी भी ऊँची आवाज़ में बात नहीं करतीं।" निशा ने आगे कहा, "उनकी आवाज़ हमेशा धीमी और मधुर होती है।"

विजय को समझ नहीं आ रहा था कि वो अपनी आवाज़ को कैसे बदलें। उसने कभी भी इस तरह से बात करने की कोशिश नहीं की थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो अपनी आवाज़ कैसे बदलेगा, क्योंकि उसे तो सिर्फ़ अपनी आवाज़ में बात करना आता था।

"कोशिश करो, भैया।" निशा ने विजय को प्रोत्साहित किया, "तुम कर सकते हो।"

विजय ने बहुत कोशिश की, लेकिन उसकी आवाज़ में वो मिठास नहीं आ रही थी जो निशा चाहती थी।


"कोई बात नहीं, भैया।" निशा ने विजय को दिलासा देते हुए एक स्टूल पर बिठाया और कहा, "धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। मगर ज़रूरी चीज़ ये है कि अब से आप 'करूँगा' कि जगह 'करूंगी' बोलोगे, 'चलता हूँ' कि जगह 'चलती हूँ' बोलोगे, मतलब लड़कियों की तरह बोलोगे।" विजय को समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है और वो कहाँ फंस गया है, लेकिन निशा की बात मानने के अलावा उसके पास और कोई चारा भी नहीं था।

इतना समझाने के बाद अगले कुछ घंटों तक, निशा ने विजय को लड़कियों की तरह रहना सिखाया। उसने विजय को बताया कि लड़कियां कैसे चलती हैं, कैसे बैठती हैं, कैसे बात करती हैं, और कैसे बर्ताव करती हैं। निशा ने विजय को बताया कि उसे अपनी आवाज़ को पतला और मीठा कैसे करना है, और कैसे अपनी बॉडी लैंग्वेज को ज़्यादा फेमिनिन बनाना है। उसे खाना-पीना, उठना-बैठना, बात करना - सब कुछ लड़कियों की तरह सिखाया।

निशा ने विजय को  लिपस्टिक का सही तरीके से इस्तेमाल करना,आँखों को काजल से कैसे बड़ा और आकर्षक बनाना, और बिंदी को माथे पर सटीकता से लगाना शामिल था। इसके बाद, उसने बड़े ही प्यार से विजय के बालों की एक सुंदर चोटी बनाई, जिससे विजय का रूप और भी निखर गया।

शाम को, जब विजय पूरी तरह से थक चुका था और उसके पैर दर्द कर रहे थे, तब निशा ने उसे आराम करने के लिए कहा।

"जाओ, भैया।" निशा ने प्यार से कहा, "अब तुम आराम करो। कल फिर से सीखना है।"

विजय अपने कमरे में गया और बिस्तर पर गिर गया। उसे अपनी ज़िंदगी में कभी भी इतनी थकान महसूस नहीं हुई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि लड़कियां इतना सारा काम कैसे करती हैं।

"ये निशा भी न..." विजय ने मन में सोचा, "मुझे किस मुसीबत में डाल दिया है! कल से तो मुझे लड़की बनकर ही रहना पड़ेगा।"

रात के समय, निशा ने विजय को उसकी ड्रेस उतारने में मदद की। उसने अलमारी से एक सुंदर गुलाबी रंग की नाइटी निकाली और उसे पहनने के लिए विजय को दी। नाइटी को देखकर विजय थोड़ा हिचकिचाया और उसने निशा से कहा, "निशा, क्या तुम यह विग और ब्रेस्ट फार्म भी उतार दोगी?" निशा ने विजय की बात सुनी और प्यार से जवाब दिया, "अरे भैया, यह विग और ब्रेस्ट फार्म एक खास तरह के ग्लू से चिपकाए गए हैं। इसे सिर्फ़ मैं ही उतार सकती हूँ और मैं इन्हें छठे दिन ही निकालूंगी।"


विजय थोड़ा गुस्सा तो हुआ लेकिन फिर भी उसने हाँ में हाँ मिला दी क्योंकि वो कुछ कर भी नहीं सकता था। विजय मन ही मन सोच रहा था कि यह छह दिन कैसे कटेंगे। और अगली सुबह निशा उसे क्या पहनाएगी और क्या क्या करवाएगी। उसने नाइटी पहनी और सो गया।

सुबह विजय की नींद अपनी पायल की मधुर छन-छन और चूडियों की रुनझुन भरी खन-खन से खुली। ये आवाजें उसे बिल्कुल अपरिचित और अजीब लग रही थीं, मानो किसी ने उसके हाथ-पैरों में घुंघरू बांध दिए हों, जिनकी आवाज उसे अपने होने का अहसास दिला रही थी। नींद में ही उसने अपने हाथों को हिलाया तो चूड़ियों ने फिर से अपनी खनकती हुई आवाज से शोर मचाया। उसकी आँखें पूरी तरह से खुल गईं और वो एक बार फिर उस कठोर हकीकत का सामना कर रहा था जिससे वो जी जान से भागना चाहता था। एक ऐसी हकीकत जिससे वो अंजान था, जिससे उसका कोई वास्ता नहीं था, लेकिन फिर भी वो उसका हिस्सा बन चुका था।

निशा उसके कमरे में नाश्ता लेकर आई थी। उसे देखते ही उसके चेहरे पर एक शरारती मुस्कान फैल गई, "अरे वाह! मेरी प्यारी बड़ी बहना तो सो रही है। उठो राजकुमारी, सुबह हो गई।" निशा का लहजा चिढ़ाने वाला था, उसकी आवाज़ में शरारत साफ़ झलक रही थी, मानो वो जानती हो कि विजय के मन में क्या चल रहा है।  लेकिन विजय को गुस्सा आने के बजाय एक अजीब सी घबराहट होने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि निशा अचानक इतनी खुश क्यों है, और उसका ये अंदाज़ उसे बेचैन कर रहा था। और अब निशा का ये बर्ताव, मानो वो उसके दिल की बात जान गई हो।

विजय उठा और एक झिझक भरी मुस्कान के साथ बोला, "अच्छा हुआ तुम आई। ये पायल और चूड़ियाँ उतार दो ना। एक तो ये बहुत भारी हैं, ऊपर से इनकी आवाज भी मुझे बेचैन कर रही है।" उसकी आवाज में एक अजीब सी वेदना और लाचारी थी, मानो ये कहना चाहता हो कि काश! ये सब इतना आसान होता।

निशा ठहाका लगाते हुए बोली, "अरे पगली, इन्हें थोड़ी निकालते हैं। ये तो अब हमेशा तुम्हारे साथ रहेंगी, तुम्हारी हर ख़ुशी और गम में तुम्हारा साथ निभाएंगी।" निशा की बात सुनकर विजय के चेहरे का रंग उड़ गया। उसके मन में एक अजीब सी सिहरन दौड़ गई, मानो किसी ने उसके अंदर हज़ारों बिजली के झटके एक साथ दौड़ा दिए हों।

विजय मन ही मन सोच रहा था कि कब ये बाकी दिन खत्म होंगे और कब वो इस कैद से आजाद होगा। ये कैद सिर्फ कपड़ों की नहीं बल्कि एक अनजानी डर और बेबसी की थी।

"चलो अब उठो और नाश्ता करो।" निशा ने कहा,

"आज हमें बहुत कुछ करना है। आज मैं तुम्हें सिखाऊंगी कि लड़कियां शादी के बाद ससुराल में कैसे तैयार होती हैं और क्या-क्या काम करती हैं।" निशा ने उत्साह से कहा।

"क्या? शादी? ससुराल?" विजय के चेहरे पर घबराहट साफ़ झलक रही थी। "ये सब क्या बोल रही हो निशा? और क्यूँ?" उसके मन में एक साथ हज़ारों सवाल उठने लगे थे। शादी एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी होती है, और विजय को समझ नहीं आ रहा था कि निशा अचानक ये सब क्यों बोल रही है। क्या वो सच में शादी की बात कर रही थी? या फिर ये उसके किसी मज़ाक का हिस्सा था?

"अरे भैया, घबराओ मत।" निशा ने विजय की घबराहट भांपते हुए हँसते हुए कहा, "मैं तो बस तुम्हें सिखा रही हूँ।" निशा अभी भी मज़ाक के मूड में थी, लेकिन विजय को ये मज़ाक रास नहीं आ रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि निशा आखिर चाहती क्या है। एक तरफ वो शादी और ससुराल की बातें कर रही थी, और दूसरी तरफ कह रही थी कि वो मज़ाक कर रही है।

"लेकिन मुझे ये सब सीखने की क्या ज़रूरत है?" विजय ने पूछा, "मैं तो लड़की बनने वाला नहीं हूँ।" उसकी आवाज में अब एक हल्का सा गुस्सा भी शामिल हो गया था।

"अरे भैया, ज़िन्दगी में कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता।" निशा ने गंभीरता से कहा, "हो सकता है कि कल को तुम्हें किसी लड़के ने इस रूप मे देख लिया और उसे तुमसे प्यार हो जाए और तुम भी उससे लड़की बनकर शादी कर लो।" निशा ने उसे चिढ़ाते हुए कहा।

विजय को निशा की बात सुनकर हंसी आ गई। "ऐसा कभी नहीं होगा।" विजय ने कहा, "और वैसे भी, मान लो अगर ऐसा हुआ भी, तो मैं उससे शादी करने के लिए दुल्हन थोड़ी ना बनूँगा और मैं उसे सब कुछ बता दूँगा।" विजय को अपनी बात पर पूरा भरोसा था।

"सब कुछ?" निशा ने विजय को घूरते हुए पूछा, "मतलब तुम उसे ये भी बताओगे कि तुम छह दिन तक लड़की बनकर रहे थे?" निशा की बात सुनकर विजय के चेहरे का रंग फिर से उड़ गया।

विजय निशा की बात सुनकर चुप हो गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या जवाब दे। एक अजीब सी उलझन उसके मन में घर कर गई थी।

"देखा, मैं ने पहले ही कहा था न, ज़िन्दगी में कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। दो दिन पहले क्या उसने सोचा था कि उसे ये सब पहनना पड़ेगा?" निशा ने कहा, "इसलिए बेहतर है कि तुम अभी से तैयार रहो। वैसे भी मेरे पास तुम्हें ब्लैकमेल करने के लिए तुम्हारी बहुत सारी अतरंगी फोटो भी तो हैं ही तो करना तो पड़ेगा ही। " निशा की बात में दम तो था लेकिन विजय को ये हज़म नहीं हो रहा था।

विजय मन ही मन सोच रहा था कि निशा सही कह रही है। ज़िन्दगी में कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। इस छोटी सी घटना ने उसे जिंदगी का एक बड़ा सबक सिखा दिया था।

"अच्छा ठीक है।" विजय ने हार मानते हुए कहा, "बताओ, मुझे क्या करना है?" विजय ने फैसला कर लिया था कि वो निशा की हर बात मानेगा।

"बहुत बढ़िया, भैया!" निशा ने खुश होते हुए कहा, "चलो अब नाश्ता करो, फिर मैं तुम्हें सब सिखा दूंगी।"

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