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Showing posts from April, 2025

रस्सियों का बंधन और नाचने की सजा - निशा का शातिर दिमाग...

 विजय मन ही मन बहुत पछता रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उसने ऐसा क्या कर दिया जो निशा उसे इतना परेशान कर रही है। निशा, एक शरारती मुस्कान लिए, विजय के पास पहुँची। उसके हाथों में एक मोटी रस्सी थी, जिसकी गांठें देखकर ही विजय का दिल धक-धक करने लगा था। निशा ने विजय को कुर्सी पर बैठाया फिर कुर्सी से बाँधना शुरू कर दिया। पहले उसने उसके हाथ कुर्सी के पीछे कसकर बाँध दिए, रस्सी इतनी कसी हुई थी कि विजय को लगा उसके हाथों का खून जम जाएगा। फिर उसने विजय के पैर बाँध दिए, हर गांठ के साथ विजय की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। विजय को ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी जाल में फँस गया हो, एक अजीब सी घुटन उसके सीने में दस्तक दे रही थी। उसके बाद निशा ने रस्सी को उसकी छाती के चारों ओर कसकर घुमा दिया। रस्सी इतनी कसी हुई थी कि विजय को सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी। अंत में, निशा ने रस्सी को विजय की पीठ के पीछे ले जाकर कुर्सी से बाँध दिया ताकि विजय हिल भी ना सके। पूरी तरह से बंधे हुए विजय की नजरें अब निशा पर टिकी थीं। उसकी आँखों में डर और बेबसी साफ झलक रही थी, उसका चेहरा पसीने से तर था, और उसकी साँसें तेज़ हो ...